Explainer: "चीन से चिक-चिक दूर करो और भारत से भाईचारा बढ़ाओ", अमेरिका की नई कूटनीति का क्या है मकसद?
Explainer: "चीन से चिक-चिक दूर करो और भारत से भाईचारा बढ़ाओ", अमेरिका की नई कूटनीति का क्या है मकसद?
तेजी से बदल रहे वैश्विक भू-राजनीतिक माहौल, आर्थिक और कूटनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर अमेरिका को सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वह अपने ताकतवर दुश्मन देशों से लगातार घिरता जा रहा है। लिहाजा शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए आखिरी वक्त में भारत से दोस्ती संग अमेरिका को चीन से संबंध बहाली की ओर मुड़ना पड़ा है।
लगातार बढ़ रहे वैश्विक तनावों के बीच चीन से संबंध सुधारने के लिए अमेरिका का दांव यूं ही नहीं है, बल्कि तेजी से बदलती वैश्विक कूटनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर इसके कई बड़े मायने भी हैं। बात चाहे रूस-यूक्रेन युद्ध की हो, इजरायल-हमास युद्ध की हो या फिर अमेरिका के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बने उत्तर कोरिया और ईरान की हो...इन सब के पीछे चीन की बड़ी भूमिका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जगजाहिर है। इस वक्त अमेरिका के रिश्ते चीन से लेकर रूस, ईरान और उत्तर कोरिया से बहुत ही खराब हो चुके हैं। चीन अमेरिका का सबसे बड़ा और खतरनाक प्रतिद्वंदी है। इन सभी देशों से एक साथ पंगा लेकर अमेरिका अपनी बादशाहत को कभी आंच नहीं आने देना चाहता।
मगर इसका मतलब यह भी नहीं कि अमेरिका चीन, रूस, उत्तर कोरिया या ईरान जैसे देशों के आगे घुटने टेक दे। अमेरिका को पता है कि कब अपने किस प्रतिद्वंदी को औकात दिखाने के लिए उसे कौन सी चाबी घुमानी है। चीन की टेंशन बढ़ाने के लिए अमेरिका ताइवान को सह देता है और भारत का तनाव बढ़ाने के लिए वह पाकिस्तान को सह देता है। वहीं चीन को होश ठिकाने लगाने के लिए वह भारत पर गर्व करता है। मगर अमेरिका पूरी तरह किसके साथ है, यह राज शायद ही कोई भांप सके। एशिया-प्रशांत क्षेत्र से लेकर दक्षिण चीन महासागर और हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन के दबदबे को रोकने के लिए अमेरिका को भारत जैसे ताकतवर साथी की भी जरूरत है। मगर रूस, उत्तर कोरिया और ईरान व चीन से बिगड़े रिश्तों के बीच संतुलन बनाने के लिए अब उसे चीन की भी जरूरत है। इसलिए अमेरिका नई कूटनीति पर चल पड़ा है...."चीन से चिक-चिक दूर करो और भारत से भाईचारा बढ़ाओ"।
अमेरिका-चीन सम्मेलन की रणनीति
जो बाइडेन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ दो दिन पहले 15 नवंबर को अमेरिका-चीन सम्मेलन में बैठक की। इसके एक दिन बाद बाइडेन कहा कि उनका इरादा चीन के साथ संबंधों को जिम्मेदारी से संभालना है। बाइडेन ने एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपेक) के मुख्यकार्यकारी अधिकारियों के शिखर सम्मेलन में बृहस्पतिवार को कहा, ‘‘मेरा इरादा अमेरिका और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा को जिम्मेदारी से संभालना हैं, इसके बारे में कल मेरे और शी के बीच संक्षिप्त चर्चा हुई थी। पूरी दुनिया हमसे यही उम्मीद रख रही है और मेरा आपसे वादा है कि यह करेंगे।
इसके बाद बाइडेन ने कहा, ‘‘ मैंने कल शी से मुलाकात की और इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि हमारे बीच किसी प्रकार की गलतफहमी नहीं हो। मैंने उनसे दुनिया के किसी भी नेता से अधिक मुलाकात की है क्योंकि जब मैं उपराष्ट्रपति था तब मुझ पर उनके बारे में और जानने समझने की जिम्मेदारी थी। इस सम्मेलन का मतलब साफ है कि दुनिया के ताकतवर देशों के बीच अमेरिका को शक्ति संतुलन बनाए रखना है। अगर रूस-चीन, ईरान, उत्तर कोरिया ने अमेरिका के खिलाफ जो संगठन बनाया है, वह एक हो गए तो बाइडेन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसलिए चीन से अमेरिका ने समय रहते संबंधों को सुधारना ही बेहतर समझा।
अमेरिका चीन से नहीं चाहता संघर्ष
नाजुक वैश्विक परिस्थितियों के बीच अमेरिका चीन से संघर्ष कभी नहीं चाहेगा, क्योंकि ऐसान होने पर रूस, उत्तर कोरिया और ईरान खुलकर चीन के साथ होंगे। इसलिए बाइडेन ने चीन से संघर्ष टालने के लिए राष्ट्रपति शी से कहा कि अमेरिका संघर्ष नहीं चाहता। उन्होंने चीन के साथ सेना से सेना के बीच संचार चैनलों को फिर से शुरू करने की घोषणा की ताकि दुर्योग से गलत आकलन करने के जोखिम को कम किया जा सके। ’’ बाइडन ने कहा, ‘‘हमने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए भी लक्षित कार्रवाई की है। हम अपने मूल्यों और अपने हितों के प्रति दृढ़ रहेंगे।’’ बाइडन ने कहा कि अमेरिका प्रशांत क्षेत्र में शक्तिशाली बना रहेगा। उन्होंने कहा, ‘‘ मेरी राष्ट्रपति शी के साथ संक्षिप्त बातचीत हुई और मैंने उन्हें याद दिलाया कि हमारी प्रशांत क्षेत्र में इतनी दिलचस्पी क्यों है, क्योंकि हम प्रशांत देश हैं और हमारे कारण क्षेत्र में शांति और सुरक्षा है और जिसके कारण आप आगे बढ़ रहे हैं। वह इससे असहमत नहीं हुए।
भारत को क्यों बनाया रणनीतिक साझेदार
अमेरिका ने भारत को अपना रणनीतिक साझेदार चीन को जवाब देने के लिए ही बनाया है। कभी ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ा या हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की दादागिरी रोकने की जरूरत पड़ी तो भारत ही उसके काम आ सकता है। इसीलिए जो बाइडेन ने भारत को अपना रणीतिक साझेदार बनाया है। रणनीतिक साझेदार होने का मतलब है कि किसी भी एक देश पर किसी दूसरे देश द्वारा आक्रमण करने पर वह अपने साझेदार की हर परिस्थिति में रक्षा करेगा। जरूरत पड़ने पर जंग में भी हर तरह से हथियारों और सैन्य मदद करके उसका साथ देगा। भारत-अमेरिका की रणनीति साझेदारी से चीन और पाकिस्तान की हवाइयां उड़ चुकी हैं। क्योंकि इससे सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका की ताकत भी कई गुना बढ़ गई है।
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