राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन के प्रेस सचिव, नोबेल विजेता रहे माइक्रोफाइनेंस के अग्रणी मुहम्मद यूनुस शेख हसीना के इस्तीफा देकर देश छोड़ने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व करेंगे। आबेदीन ने मंगलवार को न्यूज एजेंसी एपी के जरिए ये जानकारी दी है कि विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों से बातचीत के बाद ये निर्णय लिया गया है। बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने छात्र नेताओं और तीनों सैन्य सेवाओं के प्रमुखों के साथ बैठक करने के बाद मुहम्मद यूनुस को इस पद पर नियुक्त किया, स्थानीय मीडिया ने मंगलवार देर रात एक बयान और राष्ट्रपति कार्यालय के अधिकारियों के हवाले से यह खबर दी।
कभी जिम्मेदारी लेने से किया था इनकार
बांग्लादेश में हिंसा और विरोध प्रदर्शन और तख्तापलट कोई नई बात नहीं है। इसी कड़ी में 17 साल बाद बांग्लादेश में एक बार फिर इस साल के जुलाई महीने में छात्रों ने आरक्षण को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू किया जिसने हिंसक रूप ले लिया और सैकड़ों लोगों की जान चली गई। इसके बाद देश में बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल मची है, पीएम रहीं शेख हसीना देश छोड़कर भाग गई हैं। ऐसे में अब अंतरिम सरकार चलाने की जिम्मेदारी उन्हीं मोहम्मद यूनूस को सौंपी गई है, जिन्होंने 17 साल पहले बांग्लादेश के प्रधान मंत्री के पद को ठुकरा दिया था।
जनवरी 2007 में भी ऐसी ही स्थिति बन गई थी जब सेना ने बांग्लादेश की सत्ता पर कब्जा कर लिया था और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और खालिदा जिया दोनों ही भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद थीं। उस वक्त भी सेना ने देश को चलाने के लिए बांग्लादेश के नोबेल प्राइज विनर मोहम्मद यूनुस को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाने की कोशिश की थी लेकिन मोहम्मद यूनुस ने तब इतनी बड़ी जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया था।
नोबेल पुरस्कार विजेता हैं मोहम्मद युनूस
अब इस बार पीएम शेख हसीना के इस्तीफे के बाद सेना ने कमान अपने हाथ में ली और फैसला लिया कि अब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के चीफ एडवाइजर मोहम्मद युनूस होंगे और युनूस ने भी ये जिम्मेदारी स्वीकार कर ली है और अब वे चीफ एडवाइजर बनेंगे। अंतरिम सरकार की कमान संभालने की खबर सामने आने के बाद मोहम्मद यूनुस की पूरी दुनिया में उनकी चर्चा हो रही है। वैसे बांग्लादेश और पूरी दुनिया के लिए मोहम्मद यूनुस कोई अनजान शख्स नहीं हैं। वे नोबेल पुरस्कार विजेता हैं जिन्हें गरीबी मिटाने के सिद्धांत के लिए ये पुरस्कार दिया गया है।
कैसे इतना बड़ा नाम बने मोहम्मद युनूस
शेख हसीना के सबसे कट्टर विरोधी कहे जाने वाले मोहम्मद यूनुस आज बांग्लादेश की राजनीति में बड़ा नाम बन गए हैं। हिंसा और प्रदर्शन के बाद अंतरिम सरकार की बागडोर संभालने वाले युनूस इतना बड़ा नाम कैसे बने और शेख हसीना से उनकी क्या दुश्मनी है और ये कैसे और कब शुरू हुई, ये बातें भी काफी रोचक हैं। कभी शेख हसीना के पिता मुजिब-उर-रहमान के खास और कट्टर समर्थक रहे युनूस शेख हसीना के भी खास थे। कभी शेख हसीना ने यूनुस की खूब तारीफ की थी और दुनिया से गरीबी हटाने वाला शख्स बताया था।
पिता के कट्टर समर्थक, बेटी के कैसे बन गए दुश्मन
अर्थशास्त्र के धाकड़ जानकार युनूस ने टेनेसी में पढ़ाने के दौरान बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक अखबार लॉन्च किया था। उसके बाद उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला किया था जिसके बाद शेख हसीना से उनके संबंध बिगड़े। जो शेख हसीना उनकी तारीफ किया करती थीं उनसे ही युनूस की अदावत शुरू हो गई थी। इसका हासिल ये हुआ कि यूनुस पर 100 सेअधिक केस दर्ज हुए थे और उन्हें भ्रष्टाचार के मामले में कोर्ट ने 6 महीने जेल की सजा सुनाई थी।
मोहम्मद यूनुस जो पिता के कट्टर समर्थक थे उन्हें बेटी शेख हसीना ने अपना दुश्मन बना लिया। युनूस का मानना था कि शेख हसीना लोकतंत्र की कातिल हैं और भारत की शह पर तानाशाह बनकर बांग्लादेश की सत्ता को जबरदस्ती हथिया लिया है। उनकी इसी सोच और अपनी नई पार्टी के गठन के बाद हसीना और युनूस के बीच की दुश्मनी बढ़ती चली गई और वे नेताओं की आंखों में भी खटकने लगे थे। शेख हसीना को यूनुस से खुद के लिए राजनीति का खतरा महसूस होने लगा।
हसीना ने कहा था-राजनीति में नए लोग अक्सर खतरनाक होते हैं
शेख हसीना जो युनूस की तारीफ करती थीं उन्होंने अब युनूस का बिना नाम लिए बिना कहने लगीं, "राजनीति में नए लोग अक्सर खतरनाक होते हैं। उन्हें संदेह की नजर से देखा जाना चाहिए। ये देश को फायदा पहुंचाने से अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।" उनकी इन बातों से परेशान होकर युनूस ने अपनी पार्टी की स्थापना के सिर्फ 76 दिन बाद ही 3 मई को पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया और यही नहीं राजनीति से भी संन्यास लेने की घोषणा कर दी।
इसके बावजूद शेख हसीना की अदावत उनके लिए कम नहीं हुई और 2008 में सरकार बनाने के तुरंत बाद हसीना ने यूनुस के पीछे जांच एजेंसियों को लगा दिया। इसके बाद से ही मोहम्मद यूनुस के बुरे दिन शुरू और उन पर कई तरह के सरकार विरोधी आरोप लगाए गए। इस तरह से अब शेख हसीना और मोहम्मद युनूस की दुश्मनी आमने-सामने की हो गई और 2011 में उन्हें जबरदस्ती खुद के ही बनाए ग्रामीण बैंक से निकाल दिया गया।
अमेरिकी दूतालास में परिवार सहित छुपे रहे युनूस
शेख हसीना यूनुस को विदेशी ताकतों की कठपुतली बताने लगीं और उनपर कई तरह के इल्जाम लगातीं रहीं। इसका सबसे बड़ा असर ये हुआ कि साल 2012 ने वर्ल्ड बैंक ने पद्मा नदी पर पुल बनाने के लिए चंदा देने से इनकार कर दिया। इससे हसीना को लगा कि यह काम युनूस का है और वे इतनी खफा हुईं कि उन्होंने कह दिया कि यूनुस ने अपने संबंधों का इस्तेमाल कर वर्ल्ड बैंक को गुमराह किया। युनूस को तब जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं और वे अपने परिवार के साथ ढाका के अमेरिकी दूतावास में छिपे रहे।
जब 10 साल बाद साल 2022 में पद्मा नदी पर ब्रिज बनकर तैयार हो गया तो शेख हसीना ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि यूनुस को पद्मा नदी में डुबा दिया जाना चाहिए और जब उनकी सांस टूटने लगे तब उन्हें ब्रिज पर खींच लेना चाहिए ताकि उन्हें सबक मिले।