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Explainer: 2011 के जातिगत जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया?

जातिगत जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक करने को लेकर सियासी गलियारों में अक्सर चर्चा होती है। लेकिन साल 2011 के जातिगत जनगणना के आंकड़ों को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया।

Written By: Rituraj Tripathi @riturajfbd
Published on: September 01, 2024 13:15 IST
manmohan singh- India TV Hindi
Image Source : PTI मनमोहन सिंह

नई दिल्ली: जातिगत जनगणना की मांग लंबे समय से हो रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 2011 में भी जो जातिगत जनगणना हुई थी, उसके आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया। दरअसल इसके पीछे कई विसंगतियां थीं, जिसने डाटा को सार्वजनिक करने में मुश्किल पैदा की। 

क्या है जातिगत जनगणना का इतिहास?

भारत में जब ब्रिटिश शासन था, उस दौरान जनगणना करने की शुरुआत हुई थी। ये साल 1872 की बात थी। इसके बाद साल 1931 तक अंग्रेजों ने जितनी बार भी भारत की जनगणना कराई, उसमें जाति से जुड़ी जानकारी को भी दर्ज़ किया गया। 

आजादी के बाद साल 1951 में जब पहली बार जनगणना हुई तो जाति के नाम पर केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को वर्गीकृत किया गया। इसके बाद जातिगत जनगणना से परहेज किया गया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून के हिसाब से जातिगत जनगणना नहीं की जा सकती। इसके पीछे का कारण ये बताया गया कि संविधान जनसंख्या को मानता है, जाति या धर्म को नहीं।

इसके बाद दौर आया साल 1980 का। भारत में कई राजनीतिक दलों का उदय हुआ। उनकी राजनीति का मुख्य केंद्र बिंदु जाति था। ऐसे में जातिगत आरक्षण को लेकर अभियान शुरू हुए।

फिर दौर आया साल 2010 का, बड़ी संख्या में सांसदों ने जातिगत जनगणना की मांग की। इस दौरान कांग्रेस की सरकार थी, जो इसके लिए राजी हो गई और साल 2011 में सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना करवाई गई। लेकिन इस प्रक्रिया में हासिल किए गए जाति से जुड़े आंकड़े सार्वजानिक नहीं किए गए।

2011 के जातिगत आंकड़ों को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? 

इस प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों ने कहा कि जाति के आंकड़ों में कई विसंगतियां थीं क्योंकि आबादी के एक बड़े हिस्से ने अपनी जातियों की पहचान करने के लिए अलग-अलग तरीके चुने। कुछ ने उप-जाति का उल्लेख किया, जबकि अन्य ने अपने समुदायों की पहचान जाति के रूप में की। आरजीआई को इसे सुलझाना पड़ा। बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने जनगणना से जाति डेटा को वर्गीकृत करने के लिए अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व वाली एक समिति का गठन किया।

इसके बाद जुलाई 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में भी इस बारे में जानकारी दी थी। सरकार ने कहा था कि 2011 की जातिगत जनगणना के आंकड़ों को जारी करने की कोई योजना नहीं है। इससे पहले साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक शपथ पत्र में केंद्र ने कहा था कि 'साल 2011 में जो जातिगत जनगणना करवाई गई, उसमें कई कमियां थीं। इसके आंकड़ें गलतियों से भरे और अनुपयोगी थे।' केंद्र सरकार ने ये भी कहा था कि जातिगत जनगणना करवाना प्रशासनिक रूप से कठिन है।

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