किसी भी समाज में जब कोई बदलाव होता है तो लोग उसे बहुत ही ज्यादा रेजिस्टेंस के साथ स्वीकार करते हैं, क्योंकि पुराने सिस्टम की आदत कुछ इस कदर लग जाती है की नई व्यवस्था को अपनाने से हम परहेज करने लगते हैं। ऐसा ही कुछ इन दिनों गुजरात में बिजली विभाग द्वारा शुरू किये गए प्रीपेड स्मार्ट मीटर्स के साथ भी होते हुए दिखाई दे रहा है। आइए, समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर जनता स्मार्ट मीटर्स का विरोध क्यों कर रही है।
जनता क्यों कर रही है स्मार्ट मीटर्स का विरोध?
अभी तक जो सामने आया है उसके मुताबिक, विरोध का कारण स्मार्ट मीटर का रेग्युलर मीटर की तुलना में तेज चलना बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इसकी वजह से बिल दोगुना आ रहा है। लोगों की बातें सुनकर ऐसा लगता है जैसे सभी मीटर खराब हैं और इन स्मार्ट मीटर्स के आने से पूरी व्यवस्था चरमरा जाएगी। जिस तरह से लोगों के विरोध की रील्स वायरल हो रही हैं, पहली नजर में ऐसा ही लगता है। स्थानीय न्यूज चैनल्स में भी ज्यादा बिल आने की कहानियां छाई हुई थीं लेकिन इसके पीछे का कारण कोई नहीं दिखा रहा था।
स्मार्ट मीटर तेज चलने की खबर महज अफवाह?
जब पूरे मामले की पड़ताल की गई और सभी तथ्यों को वेरिफाई किया गया तो जो बातें सामने आईं उनसे पता चला कि स्मार्ट मीटर के तेज चलने के बारे में सारा प्रचार भ्रांतियों से भरा हुआ है। यही वजह है कि तथ्यों को सही से रखना बहुत जरूरी है। यह पता चला कि लोगों के मन में शंका न बढ़े, इसके लिए हर 100 मीटर्स के क्लस्टर में रैंडम बेसिस पर 5 पुराने मीटर्स भी लगे होंगे जो कि नए प्री-पेड मीटर्स के साथ भी जुड़े होंगे ताकि रीडिंग्स को कम्पेयर किया जा सके। तो फिर ये भ्रान्ति पैदा कहां से हुई कि ये मीटर तेज चल रहे?
लोगों के मन में सवाल उठने की क्या है वजह?
मीटर्स के तेज चलने की भ्रांति की सबसे बड़ी वजह यह है कि जिन घरों में भी पायलट प्रोजेक्ट के तहत नए मीटर लगाए गए हैं वहां उन घर वालों की सुविधा के लिए पुराने मीटर के यूसेज को उस वक्त सेटल नहीं किया गया। घर वालों की जानकारी में लाने के बाद उस यूसेज चार्ज को 180 दिनों में डिवाइड करके नए मीटर के यूसेज के साथ डेली बेसिस पर जोड़ना शुरू किया गया जिससे लोगों को लगा कि 10 दिन में इतना एक्स्ट्रा पैसा कहां से लग गया।
पहले से ही रिचार्ज करवाना होता है प्रीपेड मीटर
इसके अलावा प्री-पेड मीटर्स में ये व्यवस्था की गई है कि ग्राहक को मोबाइल फोन की ही तरह मीटर पहले से रिचार्ज करवाना होगा और यदि उसका उपयोग प्री-पेड एमाउंट से 300 रुपये ज्यादा होने तक उसकी बिजली नहीं कटेगी, यानी उतना क्रेडिट उसे मिलेगा। हालांकि 300 रुपये का अमाउंट पार करने के बाद बिजली कट जाएगी और रिचार्ज करवाने पर कनेक्शन ऑटोमैटिकली दोबारा शुरू हो जायेगा। दिलचस्प बात यह है कि 300 रुपये माइनस में जाने के बाद भी बिजली विभाग ग्राहक को 5 दिन का ग्रेस पीरियड दे रहा है। अगर इस अवधि में भी रिचार्ज नहीं होता है तब बिजली कटेगी।
वडोदरा में हुए किस्से से समझें पूरा मामला
सारा मामला वडोदरा के एक किस्से से समझते हैं। वडोदरा में एक महिला ये कहते हुए दिख रही है कि उसका बिल डबल से भी ज्यादा हो गया। उसकी हकीकत ये है कि महिला ने रिचार्ज अमाउंट इस्तेमाल करने के बाद 300 रुपये की लिमिट भी क्रॉस कर ली। 5 दिन का ग्रेस भी बीत गया और उसके बाद 3 दिन की छुट्टी आ गई (नियम के अनुसार छुट्टी के दिन भी बिजली नहीं काटी गई)। बाद में जब बिजली कट गई तब उसने सब-डिवीज़न ऑफिस में जा कर रिचार्ज करवाया।
महिला का कनेक्शन शुरू हो गया पर उसके 1500 के रिचार्ज में से 300 रुपये का एक्सेस एमाउंट+8 दिन (जिसमें लिमिट क्रॉस करने के बावजूद बिजली नहीं काटी गई) का एक्सेस यूसेज चार्ज तुरंत कट गया। अब जानकारी के आभाव में उसे लगा उसका बिल ज्यादा आ रहा है, पर बाद में जब उसे असली वजह के बारे में बताया गया तो उसका कन्फ्यूज़न दूर हो गया। हालांकि तब तक खबर इतनी वायरल हो गई की दूसरे जिलों से भी लोगों को लगने लगा की उनका मीटर भी तेज चल रहा है। इसी को कहते हैं ‘Fear of Unknown’, यानी कि जब भी कोई नया सिस्टम आता है तो उसको लेकर संशय बना रहता है।
सरकार को जागरूकता फैलाने की जरूरत
ऐसे में कहा जा सकता है कि सरकार को इसके बारे में और ज्यादा जागरूकता फैलाने की जरूरत है क्योंकि यह सिस्टम सचमुच में उपयोगी है क्योंकि:
- इससे बिजली के उपयोग की रियल टाइम जानकारी हमें मिलेगी और हम उसे कंट्रोल भी कर पाएंगे।
- सरकार के लेवल पर डिस्ट्रीब्यूशन लॉसेस भी कम होंगे।
- विभाग के हाथ में पैसा होगा तो सर्विसेज भी और बेहतर होंगी।
बिहार, असम और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में स्मार्ट मीटर का सिस्टम सफलतापूर्वक लागू हुआ है। नोएडा की भी बड़ी कॉलोनियों में यह सिस्टम सफलतापूर्वक चल रहा है तो गुजरात में क्यों नहीं? वैसे गुजरात के सूरत में इस सिस्टम को सबसे अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। वहां सबसे पहले ये मीटर GEB की कॉलोनी में लगाए गए और बाद में सूरत के पाल इलाके में जहां लोग जानकारी को जल्दी स्वीकार कर पाए। इस तरह देखा जाए तो स्मार्ट मीटर का विरोध भ्रांतियों पर आधारित है और जागरूकता की कमी से ऐसा हो रहा है।