दुनियाभर में कुल देशों की संख्या 195 है। इनमें कुछ देश बहुत अमीर, कुछ अमीर, कुछ मध्यम, कुछ गरीब और कुछ बहुत गरीब हैं। जहां लक्जमबर्ग, मकाऊ, आयरलैंड, सिंगापुर, कतर अमीर देशों की लिस्ट में आते हैं तो वहीं दूसरी ओर दक्षिण सुडान, बुरुंडी, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, कांगो, मोजाम्बिक आदि दुनिया के सबसे गरीब देशों में लिस्ट में शुमार हैं। सोमवार को तुर्की के डेरन एसमोग्लू, ब्रिटेन के साइमन जॉनसन और जेम्स रॉबिनसन ने वेल्थ में वैश्विक असमानता पर रिसर्च किया और पता लगाया कि आखिर कुछ देश बहुत अमीर और कुछ देश बहुत गरीब क्यों होते हैं? इन तीनों अर्थशास्त्रियों को इस स्टडी के लिए इकोनॉमी में 2024 के नोबेल मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन्होंने किसी देश की समृद्धि के लिए सामाजिक संस्थाओं के महत्व पर जोर दिया। इन्होंने अपनी रिसर्च में पाया कि कानून के खराब शासन वाले समाज और जनसंख्या का शोषण करने वाले देश विकास या बेहतर बदलाव नहीं कर पाते।
उपनिवेशवाद से किसी को फायदा तो किसी को नुकसान
डेरन एसमोग्लू, साइमन जॉनसन और जेम्स रॉबिनसन ने स्टडी के बाद कहा कि जब यूरोपीय लोगों ने दुनिया के एक बड़े हिस्से पर उपनिवेश स्थापित किया, तो उन समाज में संस्थाएं बदल गईं। ये कहीं-कहीं बहुत बड़ा बदलाव था, लेकिन ऐसा हर जगह नहीं हुआ। उन्होंने अपनी रिसर्च में बताया कि कुछ जगहों पर उपनिवेशवाद का उद्देश्य स्वदेशी आबादी का शोषण करना और सिर्फ अपने फायदे के लिए वहां के संसाधनों का इस्तेमाल करना था। बाकी जगहों पर, उपनिवेशवादियों ने यूरोपियन माइग्रेंट्स के लॉन्ग टर्म बेनिफिट्स के लिए समावेशी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्थाएं बनाई गईं।
कुछ देश बहुत अमीर और कुछ देश बहुत गरीब क्यों
इस धरती पर जहां कुछ देश बहुत अमीर हैं तो वहीं कुछ देश बहुत गरीब भी हैं। अलग-अलग देशों के बीच इस विशाल अंतर को समझाते हुए उन्होंने कहा कि उपनिवेशीकरण से पहले कभी समृद्ध रहे मेक्सिको जैसे कुछ देश अब गरीब देशों में बदल गए हैं। अलग-अलग देशों की समृद्धि में अंतर का एक कारण उपनिवेशीकरण के दौरान शुरू की गई सामाजिक संस्थाएं हैं। समावेशी संस्थाएं अक्सर उन देशों में शुरू की गईं जो उपनिवेशीकरण के समय गरीब थे, जिसके परिणामस्वरूप समय के साथ ऐसे देश अब समृद्ध बन गए हैं।
नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने तर्क दिया कि कुछ देश शोषणकारी संस्थाओं और कम आर्थिक विकास वाली स्थिति के जाल में फंस जाते हैं। ये शोषणकारी संस्थाएं, समावेशी संस्थाओं को शुरुआत से ही सभी के लिए लॉन्ग टर्म बेनिफिट्स पैदा होने की बातें बताते हैं और फिर सत्ता में बैठे लोगों को शॉर्ट टर्म बेनिफिट्स ही प्रदान करते हैं।
गरीब देशों की स्थिति क्यों नहीं सुधर रही
विजेताओं ने बताया कि जब तक राजनीतिक व्यवस्था ये गारंटी देती रहेगी कि गरीबी काबू में रहेंगे, तब तक कोई भी व्यक्ति उनके द्वारा किए जाने वाले भविष्य के आर्थिक सुधार के वादों पर भरोसा नहीं करेगा। यही कारण है कि गरीब देशों की स्थिति में कोई सुधार नहीं होता है। हालांकि, बदलाव के लिए भरोसेमंद वादा करने में राजनेताओं की असमर्थता ये भी समझा सकती है कि कभी-कभी लोकतंत्रीकरण क्यों होता है।
लोकतंत्र स्थापित करना एकमात्र रास्ता
जब किसी देश में क्रांति की संभावना उत्पन्न होती है तो सत्ता में बैठे लोगों का सुख-चैन गायब हो जाता है। राजनेता कभी भी सत्ता नहीं गंवाना चाहते, इसलिए वे आर्थिक सुधारों का वादा कर जनता को खुश करने की कोशिश करेंगे, लेकिन लोगों को इस बात पर भरोसा करना बहुत मुश्किल होता है कि हालात सुधरने के बाद उन्हें दोबारा कभी बुरी परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। ऐसे में सत्ता में बदलाव होना और लोकतंत्र स्थापित करना ही एकमात्र रास्ता बच जाता है। अर्थव्यवस्था में पुरस्कार समिति के अध्यक्ष जैकब स्वेन्सन ने कहा कि अलग-अलग देशों में भारी वित्तीय अंतर को कम करना मौजूदा समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। इस अंतर को कम करने के लिए सामाजिक संस्थाओं के महत्व पर जोर दिया गया है।