Average Monsoon Indian Farmers: 1 जून को सीजन की शुरुआत के बाद से भारत में औसत मानसूनी बारिश हुई है, इस चिंता के बावजूद कि अल नीनो मौसम पैटर्न(El Nino Weather Pattern) के कारण इस साल कम बारिश हो सकती है। मानसून के आगमन में देरी के कारण जून के मध्य तक बारिश की भारी कमी हो गई, लेकिन जून के आखिरी सप्ताह से भारी बारिश ने बारिश की कमी को दूर कर दिया। हालांकि औसत मानसूनी बारिश आमतौर पर भारतीय किसानों के लिए अच्छी होती है, लेकिन इस साल असमान ने नई चिंताएं पैदा कर दी हैं। कुछ उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी राज्यों में अत्यधिक बारिश हुई है, जबकि दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्र असामान्य रूप से शुष्क रहे हैं। आसान भाषा में कहें तो कहीं अधिक तो किसी स्थान पर बेहद कम बारिश हुई है।
कहां हुई अधिक बारिश?
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के आंकड़ों के मुताबिक, इस सीजन में अब तक देश के केवल एक तिहाई हिस्से में औसत बारिश हुई है। आंकड़ों से पता चलता है कि इस बीच, भारत के लगभग 34% हिस्से में कम बारिश और 32% में अत्यधिक बारिश हुई है। हरियाणा, पंजाब, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में इस सीज़न में अब तक सामान्य से लगभग दोगुनी बारिश हुई है। झारखंड, बिहार, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और केरल में सामान्य से 41% तक कम बारिश हुई है।
गर्मी में बोई जाने वाली फसलों पर कितना प्रभाव?
धीमी शुरुआत के बाद पिछले एक पखवाड़े में चावल, कपास, तिलहन और दालों की बुआई में तेजी आई है, लेकिन बुआई अभी भी पिछले साल की स्पीड से पीछे है। भारी बारिश ने पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तरी राज्यों में नई रोपी गई चावल की फसलों को नुकसान पहुंचाया है और कई किसानों को दोबारा रोपाई करने पर मजबूर कर दिया है। दूसरी ओर कम बारिश के कारण महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और पश्चिम बंगाल सहित राज्यों में चावल, मक्का, कपास, सोयाबीन, मूंगफली और दालों की बुआई में देरी हुई है। महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में गन्ना उत्पादक भी चिंतित हैं कि फसल की महत्वपूर्ण वृद्धि अवधि के दौरान कम वर्षा से पैदावार कम हो सकती है और चीनी उत्पादन कम हो सकता है। ये सबसे अधिक गन्ना पैदा करने वाले राज्य की कैटगरी में आते हैं।
कौन सी फसलें सर्वाधिक प्रभावित हैं?
असमान वर्षा से चावल, सब्जियाँ और दालें काफी प्रभावित होती हैं। उत्तरी राज्यों में धान के खेत एक सप्ताह से अधिक समय से जलमग्न हैं, जिससे नए रोपे गए पौधे नष्ट हो गए हैं, और किसानों को पानी कम होने का इंतजार करने के लिए मजबूर होना पड़ा है ताकि वे दोबारा रोपाई कर सकें। पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सहित अन्य प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों में किसानों ने धान की नर्सरी तैयार कर ली है, लेकिन अपर्याप्त वर्षा के कारण रोपाई नहीं कर पाए हैं। नई दिल्ली द्वारा चावल खरीद मूल्य बढ़ाने के बाद चावल की खेती का रकबा बढ़ने की उम्मीद थी, लेकिन उद्योग के अधिकारियों का अनुमान है कि अब इसमें मामूली कमी आएगी। किसानों ने अब तक 2022 की तुलना में 6% कम क्षेत्र में धान की रोपाई की है।
टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च और पालक जैसी सब्जियाँ भी अनियमित वर्षा डिस्ट्रीब्यूशन से प्रभावित होती हैं। उत्तर भारत में खड़ी फसलें बाढ़ से क्षतिग्रस्त हो गई हैं, जबकि दक्षिणी भारत में बुआई में देरी हुई है, जिसके चलते टमाटर सहित कुछ सब्जियों की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं। भारत की बड़ी शाकाहारी आबादी के लिए महत्वपूर्ण प्रोटीन स्रोत दालों की बुआई में भी देरी हुई है। दलहन मुख्य रूप से वर्षा आधारित फसलें हैं, और देरी से पैदावार सामान्य से कम होने की संभावना है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, अब तक पिछले वर्ष की तुलना में 13% कम क्षेत्र में दालें बोई गई हैं। सोयाबीन और कपास के रोपण क्षेत्र में क्रमशः 2% और 12% की कमी आई है।
देरी से बुआई करने से पैदावार का क्या मतलब है?
जुलाई के मध्य के बाद रोपण में देरी से आमतौर पर भारत के अधिकांश हिस्सों में कम पैदावार होती है। जैसे-जैसे मध्य सितंबर आता है, कई क्षेत्रों में तापमान बढ़ना शुरू हो जाता है, जो देर से बोई गई फसलों में फली बनने और फली भरने को नुकसान पहुंचा सकता है। मौसम एजेंसियों ने पूर्वानुमान लगाया है कि El Nino अगस्त और सितंबर में वर्षा को कम कर सकता है, जब फसलें पकने के कगार पर पहुंचती हैं और पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। इस दौरान कम वर्षा से भी उत्पादन में कमी आ सकती है।
सर्दियों में बोई जाने वाली फसलों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
ग्रीष्मकालीन फसलें बोने में देरी से कटाई में देरी होती है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः गेहूं, रेपसीड और चना जैसी शीतकालीन फसलों की बुआई देर से होती है। सर्दी की फसलों के लिए ठंड का मौसम महत्वपूर्ण है, लेकिन हाल के वर्षों में फसल तैयार होने के चरण के दौरान तापमान अधिक होने के कारण उपज में कमी आई है। मौसम एजेंसियों ने भारतीय सर्दियों के महीनों के दौरान एक मजबूत El Nino की भविष्यवाणी की है, और इसका मतलब सामान्य से अधिक तापमान का होना है, जो गेहूं और रेपसीड की पैदावार में कमी ला सकती है। भारत एक वर्ष से अधिक समय से गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए संघर्ष कर रहा है, और आगामी सीजन में कम उत्पादन उन प्रयासों को जटिल बना सकता है। कम रेपसीड उत्पादन के कारण वनस्पति तेल के आयात में वृद्धि की आवश्यकता हो सकती है।
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