नई दिल्ली: दुनिया भर में गर्मी के रिकॉर्ड टूटने के बाद 2024 के भी अब तक का सबसे गर्म साल होने की संभावना जताई जा रही है। इस बीच, भारत की जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट हाल ही में प्रकाशित की गई, जिसमें यह बताया गया है कि हिमालय के ग्लेशियरों के ‘पीछे हटने की रफ्तार’ में तेजी आई है। इसका मतलब यह है कि हिमालय में स्थित ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हो रहा है और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं?
ग्लेशियरों के पीछे हटने का क्या मतलब है?
हिमालय के ग्लेशियरों का पिघलना और उनका क्षेत्र घटना, जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट संकेत हैं। रिपोर्ट के अनुसार, हिमालय में ग्लेशियरों की लंबाई और क्षेत्रफल दोनों में कमी आ रही है। यह प्रक्रिया विभिन्न जगहों और जलवायु परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग होती है। विशेष रूप से, इन ग्लेशियरों के जो हिस्से सबसे निचले और पहले पिघलने वाले भाग होते हैं, वे अब तेजी से पीछे खिसकने लगे हैं। इसका मतलब है कि बर्फ अब पहले से अधिक तेजी से पिघल रही है।
ग्लेशियरों का इस तरह पीछे हटना जलवायु विज्ञान में एक महत्वपूर्ण संकेत है क्योंकि इससे जलवायु से जुड़ी कई घटनाओं के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। जब ग्लेशियरों की बर्फ जल्दी पिघलती है, तो इससे नदियों का जलस्तर बढ़ सकता है और जलवायु के अन्य पहलुओं पर भी गंभीर असर पड़ सकता है।
आंकड़े जुटाने में पेश आती हैं मुश्किलें
ग्लेशियरों के बारे में सटीक आंकड़े जुटाना आसान नहीं है। हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन आम बात है और वहां की भौगोलिक स्थिति भी अध्ययन को चुनौतीपूर्ण बनाती है। इसके अलावा, बर्फ की चादर की मोटाई मापने में कठिनाई होती है, जिसके कारण आंकड़े सीमित हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि मिट्टी के प्रकार, वनस्पति, और मिट्टी की नमी जैसी कारक ग्लेशियर के सिमटने की दर को प्रभावित करते हैं।
सिमटती जा रही है बर्फ की चादर
भारत की जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट के अनुसार, हिमालय के क्षेत्र में बर्फ की चादर 1999 से 2019 के बीच काफी सिमट गई है। यह अध्ययन भारतीय मौसम विभाग के जर्नल मौसम में प्रकाशित हुआ है, जिसमें पाया गया कि तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण क्रायोस्फियर यानी पृथ्वी के जमे हुए पानी वाले हिस्से पर असर पड़ा है। हालांकि, बर्फ के सिमटने का सटीक माप तय नहीं किया जा सका है।
भारत में जलवायु परिवर्तन का असर
संयुक्त राष्ट्र की यूएन फ्रेमवर्क कन्वेन्शन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) की रिपोर्ट में भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर चर्चा की गई है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि जलवायु परिवर्तन का भारत में कृषि, मॉनसून, और विभिन्न उद्योगों पर गंभीर असर पड़ रहा है। उदाहरण के लिए, 2022 के अप्रैल महीने को भारत के उत्तर पश्चिम और मध्य हिस्सों में 122 वर्षों में सबसे गर्म महीनों में से एक माना गया, जहां औसत तापमान 35.9 से 37.8 डिग्री सेल्सियस के बीच था। इससे गेहूं, मक्का जैसी फसलों के उत्पादन में गिरावट देखने को मिली, साथ ही डेयरी और पशुपालन उद्योग पर भी नकारात्मक असर पड़ा।
मॉनसून का पैटर्न भी हुआ असामान्य
भारत में मॉनसून की बारिश का पैटर्न भी असामान्य हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर-पूर्वी भारत, पूर्वी राजस्थान, आंध्र प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, और पश्चिम बंगाल के तटीय इलाकों में भारी और बार-बार बारिश की घटनाएं बढ़ गई हैं। वहीं, दक्षिणी तट के कई इलाकों में मॉनसून के दिन बढ़ गए हैं, जबकि कई अन्य इलाकों में बारिश के दिन घटे हैं। इस रिपोर्ट के परिणामस्वरूप, जलवायु परिवर्तन के असर को लेकर भारत में नई रणनीतियां और उपायों की आवश्यकता महसूस हो रही है, ताकि इस संकट से निपटा जा सके और भविष्य में इन प्रभावों को कम किया जा सके।