प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद देश में एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता पर जोरदार घमासान शुरू हो गया है। दिल्ली में भी अचानक हलचल तेज हो गई है। कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की है। UCC के मुद्दे पर 15 जून से ही 22वें लॉ कमीशन ने प्रक्रिया शुरू कर दी है। यहां ऑनलाइन आम लोगों की राय मांगी जा रही है। वहीं पीएम के बयान के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इमरजेंसी मीटिंग की। 3 घंटे तक चली मैराथन बैठक में पीएम के बयान के मायने तलाशे गए। साथ ही बैठक में तय किया गया कि बोर्ड लॉ कमीशन के अध्यक्ष से मुलाकात करके एक ड्राफ्ट सौंपेगा जिसमें शरीयत के जरूरी हिस्सों का ड्राफ्ट में जिक्र होगा।
भोपाल में एक कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने पहली बार यूनिफॉर्म सिविल कोड पर खुलकर बात की। इस दौरान एक महिला कार्यकर्ता ने उनसे यूनिफॉर्म सिविल कोड पर भी सवाल किया जिसका जवाब देते हुए पीएम ने कहा, ''आजकल समान नागरिक संहिता के नाम पर भड़काया जा रहा है। परिवार के एक सदस्य के लिए एक नियम हो, दूसरे सदस्य के लिए दूसरा नियम हो तो क्या वो घर चल पाएगा? अगर एक घर में 2 कानून नहीं चल सकते तो फिर एक देश में 2 कानून कैसे चल सकते हैं।'' उनके बयान से ये साफ हो गया कि मोदी सरकार जल्द ही इसे लेकर कानून ला सकती है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर प्रक्रिया जारी
22वें लॉ कमीशन ने प्रक्रिया शुरू की, 15 जून से आम लोगों की राय मांगी।
30 दिन तक राय भेज सकते हैं, membersecretary-lci@gov.in पर राय भेजें।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
समान नागरिक संहिता यानी सभी धर्मों के लिए एक ही कानून। अभी होता ये है कि हर धर्म का अपना अलग कानून है और वो उसी हिसाब से चलता है। भारत में आज भी ज्यादातर धर्म के लोग शादी, तलाक और जमीन जायदाद विवाद जैसे मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के मुताबिक करते हैं। मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय के अपने पर्सनल लॉ हैं। जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं। समान नागरिक संहिता को अगर लागू किया जाता है तो सभी धर्मों के लिए फिर एक ही कानून हो जाएगा यानि जो कानून हिंदुओं के लिए होगा, वही कानून मुस्लिमों और ईसाइयों पर भी लागू होगा। अभी हिंदू बिना तलाक के दूसरे शादी नहीं कर सकते, जबकि मुस्लिमों को तीन शादी करने की इजाजत है। समान नागरिक संहिता आने के बाद सभी पर एक ही कानून होगा, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या मजहब का ही क्यों न हो। बता दें कि अभी भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है.
UCC के लागू होने से क्या बदलाव आएगा?
- भारत में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी। इससे वे कम से कम ग्रेजुएट तक की पढ़ाई पूरी कर सकेंगी।
- गांव स्तर तक शादी के रजिस्ट्रेशन की सुविधा पहुंचाई जाएगी। अगर किसी की शादी रजिस्टर्ड नहीं होगी तो दंपति को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा।
- पति और पत्नी को तलाक के समान अधिकार मिलेंगे। एक से ज्यादा शादी करने पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी।
- नौकरीपेशा बेटे की मौत होने पर पत्नी को मिले मुआवजे में माता-पिता के भरण पोषण की जिम्मेदारी भी शामिल होगी। उत्तराधिकार में बेटा और बेटी को बराबर का हक होगा।
- पत्नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी पति की होगी।
- मुस्लिम महिलाओं को बच्चे गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा। उन्हें हलाला और इद्दत से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा।
- लिव-इन रिलेशन में रहने वाले सभी लोगों को डिक्लेरेशन देना पड़ेगा। पति और पत्नी में अनबन होने पर उनके बच्चे की कस्टडी दादा-दादी या नाना-नानी में से किसी को दी जाएगी।
- बच्चे के अनाथ होने पर अभिभावक बनने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी।
UCC के विरोध की वजह क्या?
- मुस्लिमों संगठनों का ज्यादा विरोध
- धार्मिक स्वतंत्रता का हवाला दे रहे
- शरिया कानून का हवाला दे रहे
- धार्मिक आजादी छीने जाने का डर
मोदी के बयान पर सबसे पहले धर्म के नाम पर सियासी तकरीरे देने वाले AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने पलटवार किया। ओवैसी ने कहा कि पीएम मोदी वोट पोलराइज करने की कोशिश कर रहे हैं। ओवैसी ने पूछा कि क्या हिन्दू मैरिज एक्ट खत्म हो जाएगा? क्या मोदी अनडिवाइडिड हिंदू फैमिली एक्ट खत्म कर देंगे? क्या ईसाइयों और दूसरी जनजातियों की परंपराओं पर पबांदी लगा दी जाएगी? ओवैसी के साथ ही कांग्रेस पार्टी को भी पीएम मोदी के बयान में सियासत दिखी। छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि यूनीफॉर्म सिविल कोड से सिर्फ मुसलमान नहीं हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन सभी धर्मों के लोग प्रभावित होंगे इसलिए सरकार को कानून थोपने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बुलाई इमरजेंसी मीटिंग
वहीं, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि ये मुसलमानों पर हिंदू धर्म थोपने जैसा है। अगर इसे लागू कर दिया जाए तो मुसलमानों को तीन शादियों का अधिकार नहीं रहेगा। शरीयत के हिसाब से जायदाद का बंटवारा नहीं होगा। पीएम मोदी के बयान के बाद विपक्ष के साथ-साथ मौलाना मौलवी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सभी का पारा सातवें आसमान पर तमतमा रहा है। हालत ऐसी हो गई कि आनन फानन में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इमरजेंसी बैठक बुला ली। 3 घंटे तक प्रधानमंत्री के बयान का मतलब निकाला जाता रहा और मीटिंग में फैसला किया गया कि-
- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपना एक पूरा ड्राफ्ट तैयार करेगा
- बोर्ड से जुड़े लोग लॉ कमीशन के अध्यक्ष से मिलने का समय मांगेगे
- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपना ड्राफ्ट लॉ कमीशन को देगा
- शरीयत के जरूरी हिस्सों का ड्राफ्ट में जिक्र होगा
UCC का पहली बार कब हुआ था जिक्र?
समान नागरिक संहिता का जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में भी किया गया था। इसमें कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है। इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है। हालांकि, 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया। राव समिति की सिफारिश पर 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया। हालांकि, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों लोगों के लिए अलग कानून रखे गए थे।
आंबेडकर ने क्या कहा था?
वहीं, भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि हमारे पास पूरे देश में एक समान और पूर्ण आपराधिक संहिता है। ये दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में शामिल है। साथ ही हमारे पास संपत्ति के हस्तांतरण का कानून है, जो संपत्ति और उससे जुड़े मामलों से संबंधित है. ये पूरे देश में समान रूप से लागू है। उन्होंने संविधान सभा में कहा कि मैं ऐसे कई कानूनों का हवाला दे सकता हूं, जिनसे साबित होगा कि देश में व्यावहारिक रूप से समान नागरिक संहिता है। इनके मूल तत्व समान हैं और पूरे देश में लागू हैं। डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि सिविल कानून विवाह और उत्तराधिकार कानून का उल्लंघन करने में सक्षम नहीं हैं।