Saturday, January 11, 2025
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Explainer: Meta ने बंद किया थर्ड पार्टी फैक्ट चेकर प्रोग्राम, कंपनी ने मानी गलती, भारत में क्या होगा इसका असर?

दिग्गज टेक कंपनी मेटा ने हाल ही में अपना सालो पुराना थर्ड पार्टी फैक्ट चेकर प्रोग्राम बंद करने का फैसला लिया है। कंपनी के इस फैसले के बाद कंटेंट की रियलटी को लेकर दुनिया भर में बहस छिड़ गई है। मेटा ने बताया कि इस प्रोग्राम में कुछ कमियां थीं जिसकी वजह से यह फैसला लिया गया।

Written By: Gaurav Tiwari
Published : Jan 11, 2025 18:13 IST, Updated : Jan 11, 2025 18:13 IST
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Image Source : फाइल फोटो मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि अब एक बार फिर से अपनी रूट्स की तरफ वापस जा रहे हैं।

फेसबुक और इंस्टाग्राम की पेरेंट कंपनी मेटा ने अपना थर्ड पार्टी चेकर प्रोग्राम को बंद करने का फैसला लिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ समारोह से पहले मार्क जुकरबर्ग ने यह बड़ा फैसला लेकर सभी को हैरान कर दिया। मेटा अब थर्ड पार्टी फैक्ट चेकिंग प्रोग्राम को बंद करके अब कम्यूनिटी नोट्स नाम का प्रोग्राम लाने की तैयारी कर रही है। 

आपको बता दें कि पिछले कुछ सालों में कई देशों में फैक्ट चेकर काफी तेजी से उभरे हैं। ये लोग ज्यादातर कंपनी की तरफ से मिलने वाली फंडिंग पर ही निर्भर थे लेकिन अब मार्क जुकरबर्ग के एक फैसले ने इस प्रोग्राम से जुड़े लोगों को बड़ा झटका दे दिया है। 

बता दें कि मेटा अब फैक्ट चेकर प्रोग्राम को बंद करके एक कम्यूनिटी ड्रिवन सिस्टम को लागू करने की तैयारी कर रही है। यह नया सिस्टम काफी हद तक एलन मस्क के माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म एक्स(X) पर मिलने वाले 'कम्यूनिटी नोट्स' की तरह काम करेगा। मेटा के  सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि बदलते राजनीति और सामाजिक बदलाव के बीच में फ्री स्पीच को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई तरह के उठाए जा रहे हैं।

मेटा कम्यूनिटी ड्रिवन सिस्टम को फिलहाल अभी अमेरिका में शुरू कर रहा है लेकिन मेटा की तरफ से यह कंफर्म कर दिया गया है कि इसे जल्द ही दूसरे क्षेत्रों में भी लागू किया जाएगा। लेकिन, कंपनी की तरफ से इसकी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। 

फैक्ट चेकर प्रोग्राम को बंद करते हुए कंपनी ने कहा कि इसे बंद करने का फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि कुछ एक्सपर्ट फैक्ट चेकर में भी कुछ कमियां हैं। इसके अलावा एक्सपर्ट भी अपना एक पूर्वाग्रह रखते हैं जिसकी वजह से वह एक पक्ष की तरफ झुक सकते हैं। इसलिए अब कंपनी कम्युनिटी नोट्स मॉडल को अपनाएगी। वहीं दूसरी तरफ मेटा के इस फैसले का एलन मस्क ने सपोर्ट करते हुए इसे अच्छा कदम करार दिया है।

9 साल पहले हुई थी शुरुआत

आपको बता दें कि मेटा ने पिछले कुछ सालों में अपने अलग अलग प्लेटफॉर्म में कई सारे बदलाव किए हैं। मेटा जब 2016 में सिर्फ फेसबुक के नाम से जाना जाता था तब कंपनी की तरफ से गलत सूचनाओं को रोकने के लिए पहली बार फैक्ट चेकिंग प्रोग्राम को लॉन्च किया गया था। कंपनी ऐसे फैक्ट चेकर्स लोगों के साथ काम करती थी जो International Fact-Checking Network से सर्टिफाइड थे। ये लोग लोगों ऑनलाइन प्लेटफॉर्म में दिखाई जाने वाली चीजों के बारे में अधिक जानकारी देते थे। 

अब कंपनी अपने फैक्ट चेकिंग प्रोग्राम को कम्युनिटी पोस्ट से रिप्लेस कर रही है। यह एक क्राउड सोर्स फैक्ट चेकिंग मॉडल होगा जिसमें यूजर्स यह निर्धारित कर पाएंगे कि कौन सी पोस्ट संभावित और गमुराह करने वाली है। इसमें यूजर्स को किसी नोट्स को पढ़ने के साथ साथ उसे रेट करने का भी ऑप्शन मिलेगा। 

मेटा के चीफ ग्लोबल अफेयर्स ऑफिसर जोएल कैपलन ने कंपनी के इस फैसले पर कहा कि हमने आने वाले कम्यूनिटी नोट्स को X पर काम करते हुए देखा है। वे अपनी कम्यूनिटि को यह तय करने का अधिकार देते हैं कि कौन सी पोस्ट भ्रामक हो सकती है। अब हम भी अधिक अभिव्यक्ति प्रदान करने की योजना बना रहे हैं। 

मेटा ने मानी अपनी गलती

मेटा की तरह से यह भी कहा गया कि उनकी तरफ से कंटेंट को मैनेज करने के लिए जो जटिल सिस्टम तैयार किया गया था उसने बहुत ज्यादा गलतियां की हैं। इसकी वजह से बहुत सारे कंटेंट को सेंसर कर दिया गया है। मेटा ने कहा कि फैक्ट चेकर में कमियां थी और वे राजनीतिक मुद्दों पर पक्षपात कर रहे थे और इस वजह से ज्यादा कंटेंट फैक्ट चेकिंग के दायरे में आ जाते हैं। जुकरबर्ग ने वीडियो जारी करके कहा कि अब हम अपनी रूट्स की तरफ वापस जा रहे हैं। आने वाले समय में पहले वाली गलतियां नहीं होगी। 

फैक्ट चेकर प्रोग्राम बंद होने का भारत में क्या होगा असर?

फिलहाल मेटा की तरफ से यह कहा गया है कि फैक्ट चेकर प्रोग्राम सिरफ अमेरिका में बंद किया जा रहा है लेकिन इससे यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या भारत में इसका असर होगा। आपको बता दें कि मेटा भारत में अपना सबसे बड़ा फैक्ट चेकर प्रोग्राम चलाती है। यहां पर कंपनी 11 स्वतंत्र और सर्टिफाइड फैक्ट चेकिंग संगठनों के साथ काम करती है जो करीब 15 भाषाओं में कंटेंट उपलब्ध कराती है। कई संगठनो की तरह से यह कहा गया है कि फैक्ट चेकिंग प्रोग्राम बंद होने से लोगों को भ्रामक जाल में फंसने का जोखिम बढ़ जाएगा। 

एक्सपर्ट का मानना है कि एक नॉर्मल यूजर के पास ऐसी सामाग्री नहीं होती जिससे वह भ्रामक कंटेंट की पहचान कर पाएं। एक्सपर्ट का मानना है कि इसके बंद होन के बाद अब किसी अवैध या फिर गलत सामाग्री को फैलने से रोकने के लिए जिम्मेदारी अब उपयोगकर्ताओं की होगी। वहीं मेटा के साथ फैक्ट चेकिंग में काम करने वाले कुछ लोगों का कहना है कि भारत में कंपनी की रणनीति का कोई असर नहीं पड़ा लेकिन बावजूद इसके उन्होंने अपने तरीकों में बदलाव लाना शुरू कर दिया है। 

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