
Explainer: रूस और अमेरिका के बीच बढ़ती नजदीकी ने पूरे वैश्विक समीकरण को बदल दिया है। अमेरिका और रूस के रिश्तों की नई शुरुआत और गहराती दोस्ती से चीन सबसे ज्यादा चिंता में है। रूस-यूक्रेन युद्ध के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो रूस और अमेरिका की नजदीकी ने यूरोप को बैकफुट पर धकेल दिया है। वहीं अमेरिका की रूस को करीब लाने की चाल ने चीन में भी खलबली मचा दी है। मगर अमेरिका और रूस की नजदीकी भारत के लिए कितना फायदेमंद या नुकसानदेह है, एक्सपर्ट इस बड़े वैश्विक बदलाव को किस रूप में देखते हैं, आइये आपको विस्तार सहित बताते हैं।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अभिषेक श्रीवास्तव विदेश मामलों को काफी गहराई से अध्ययन करते हैं और पल-पल की घटनाओं पर बारीक नजर रखते हैं। उन्होंने अमेरिका और रूस की नजदीकी के हर पहलुओं पर इंडिया टीवी से विस्तार से बातचीत की है।
रूस और अमेरिका के परिप्रेक्ष्य में
1.प्रोफेसर अभिषेक श्रीवास्तव का कहना है कि रूस और अमेरिका के बीच नजदीकी बढ़ने से भारत को कई स्तर पर फायदा है। हालांकि अभी देखना होगा कि रूस-अमेरिका के संबंध कहां तक बढ़ते हैं और कब तक टिकाऊ रहते हैं। उन्होंने कहा कि रूस भारत का पारंपरिक मित्र है और अमेरिका के साथ हमारे रणनीतिक रिश्ते हैं। मगर जब अमेरिका और रूस में यूक्रेन युद्ध को लेकर बाइडेन के शासनकाल में तनातनी थी तो भारत के सामने रूस और अमेरिका दोनों से रिश्ते निभाने में चुनौतीपूर्ण स्थिति थी। हालांकि भारत ने बेहतर सूझबूझ और अद्वितीय कूटनीति के साथ अपने पारंपरिक दोस्त रूस के साथ रिश्ता निभाया और रणनीतिक मित्र अमेरिका को भी साधे रखा। अमेरिका ने जब रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिये तो भी भारत ने रूस से तेल खरीदकर उससे अपनी दोस्ती निभाई और इसका भारत का आर्थिक लाभ भी हुआ। हालांकि अमेरिका इससे नाखुश जरूर था, मगर भारत ने उसके साथ भी संतुलन बनाए रखा। अब जब रूस और अमेरिका दोनों साथ होंगे तो भारत को रूस के साथ अपने रिश्ते खुलकर और साथ ही मजबूती के साथ निभाने में सहजता होगी। इससे भारत-रूस के रिश्तों में पहले से अधिक प्रगाढ़ता आएगी।
चीन-पाकिस्तान के परिप्रेक्ष्य में
2. दूसरा प्वाइंट यह है कि अमेरिका और रूस दोनों का भारत को साथ मिलना रणनीतिक और कूटनीतिक रूप से चीन पर बढ़त को मजबूत करेगा। ऐसी परिस्थिति में चीन भारत के साथ अब पहले की तरह ज्यादा पंगे नहीं लेना चाहेगा। अब चीन एलएसी पर भारत के साथ शांति रखना चाहेगा। वह भारत के साथ अपने रिश्तों को सुधारकर चलेगा। क्योंकि चीन के लिए रणनीतिक रूप से रूस-अमेरिका की दोस्ती अच्छी नहीं है। इधर चीन के भारत पर हावी नहीं हो पाने से पाकिस्तान की स्थिति भारत के सामने और अधिक कमजोर होगी। इसका एक पहलू यह भी है कि ट्रंप और मोदी के रिश्ते बेहतर हैं। अपने पहले कार्यकाल में ट्र्ंप पाकिस्तान को होने वाली आतंकी फंडिंग पर प्रतिबंध भी लगा चुके हैं। इसलिए अमेरिका से भी पाकिस्तान को डर कर रहेगा।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में
3. रूस-अमेरिका और भारत की तिकड़ी अब एक नये वर्ल्ड ऑर्डर को तैयार करेगी, जिसमें भारत की भूमिका सबसे अहम होगी। प्रोफेसर अभिषेक श्रीवास्तव ने कहा कि अमेरिका द्वारा रूस से नजदीकी बढ़ाने पर यूरोपीय देशों का झुकाव अब भारत और चीन की तरफ ज्यादा होगा। हालांकि भारत की स्थिति पहले से ही यूरोप, एशिया, अफ्रीका, अरब और पश्चिमी देशों में बेहतर है। मगर इस घटना से यूरोप का पूरा झुकाव, उम्मीदें और भरोसा भारत पर बढ़ेगा। पश्चिम एशिया से लेकर अफ्रीका, अरब में भी भारत की स्थिति मजबूत होगी। यह भारत के लिए सिर्फ रणनीतिक रूप से ही नहीं, बल्कि व्यापारिक और कूटनीतिक रूप से भी फायदेमंद होगा।
ऊर्जा और डिफेंस के परिप्रेक्ष्य में
अमेरिका और रूस के बीच नजदीकी बढ़ने से भारत को ऊर्जा और डिफेंस के परिप्रेक्ष्य में पहले से कहीं ज्यादा सतर्क रहना होगा। क्योंकि इस क्षेत्र में अब भारत के लिए चिंता हो सकती है। अब तक भारत रूस से सस्ता तेल लेता रहा है और वह अमेरिका पर भी ऊर्जा के लिए निर्भर है। इसके साथ ही डिफेंस के क्षेत्र में देखें तो रूस और अमेरिका दोनों से भारत हथियार का बड़ा खरीददार रहा है। रूस और अमेरिका में दुश्मनी होने का फायदा भी भारत को मिलता रहा है। मगर अब दोनों देश ऊर्जा और रक्षा के क्षेत्र में अपने रेट को बढ़ा सकते हैं। ऐसे में भारत को सबसे ज्यादा सतर्क रहना होगा। दोनों देशों को ऊर्जा और रक्षा के क्षेत्र में साध कर चलना होगा।
यूरोप और फ्रांस
व्यापार और डिफेंस के क्षेत्र में भारत के रिश्ते फ्रांस और यूरोप के साथ अधिक मजबूत हो सकते हैं। भारत के पास इसका फायदा उठाने का मौका होगा। अगर अमेरिका और रूस अपने हथियारों के दाम ज्यादा बढ़ाते हैं तो भारत फ्रांस की तरफ देख सकता है। इसके अलावा फ्रांस भारत में कई रक्षा उत्पादन कंपनियों में सहयोगी बना है। इससे वह अपने हथियारों को बेचने के लिए यूरोप को बड़ा बाजार बना सकता है। क्योंकि इस वक्त यूरोप को हथियारों की सबसे ज्यादा जरूरत होगी।