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Explainer: अमेरिकी चुनाव में कैसे होती है फंडिंग, कौन जुटाता है इतना सारा चंदा?

अमेरिका में 5 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहा है। मगर क्या आप जानते हैं कि यहां चुनाव के लिए फंड किस तरह से जुटाया जाता है? फंड को इकट्ठा करने की जिम्मेदारी आमतौर पर उम्मीदवार पर ही होती है। यह उसकी क्षमता और नेटवर्क व लोकप्रियता पर निर्भर करता है कि वह किसी से कितना अधिक चंदा जुटा सकता है।

Written By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published on: July 28, 2024 13:54 IST
अमेरिकी चुनाव (प्रतीकात्मक फोटो)- India TV Hindi
Image Source : AP अमेरिकी चुनाव (प्रतीकात्मक फोटो)

Explainer: दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र कहे जाने वाले अमेरिका में 5 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव होना है। मगर क्या आप जानते हैं कि इस देश में चुनाव के लिए फंडिंग कैसे होती है और इसकी व्यवस्था कौन करता है, अमेरिकी चुनाव कितना अधिक महंगा होता है? अगर कोई व्यक्ति अमेरिका में राष्ट्रपति या कांग्रेस का चुनाव लड़ना चाहता है तो फंडिंग के लिए उसके पास क्या जिम्मेदारियां होती हैं...तो आपको बता दें कि सबसे पहले इसके लिए आपको सर्वाधिक धन संचयकर्ता  बनना पड़ेगा। यानि आप सबसे ज्यादा फंड चुनाव के लिए जुटाने की क्षमता रखते हों। इसके साथ ही यहां की फंडिंग में पूरी पारदर्शिता मानदंडों को पूरा करना होता है। इसके लिए जटिल प्रकटीकरण आवश्यकताओं के अनुरूप एक अकाउंटटैंट, ऑडिट और कानूनी टीम होनी चाहिए।

चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति के पास समृद्ध समर्थकों का एक नेटवर्क होना चाहिए, जो आपकी प्रोफ़ाइल बनाने से लेकर सुपर पॉलिटिकल एक्शन कमेटी या सुपर पीएसी नामक स्पष्ट रूप से स्वतंत्र लेकिन प्रभावी रूप से गठबंधन किए गए समूहों के माध्यम से आपके विरोधियों पर हमला करने के लिए असीमित राशि खर्च कर सकते हों। मगर आप जानते हैं कि किसी भी लोकतंत्र में, राजनीतिक फंडिंग के सवाल पर पारदर्शिता, जवाबदेही, स्वतंत्रता के कई सिद्धांतों और अपेक्षाकृत समान अवसर की आवश्यकता के बीच एक जटिल संतुलन कार्य की आवश्यकता होती है।  भारत में विधायिका (कार्यपालिका द्वारा प्रेरित) ने उन बदलावों पर जोर दिया है जो पार्टियों को धन जुटाने के लिए अधिक छूट देते हैं। वहीं दूसरी तरफ न्यायपालिका (सुप्रीम कोर्ट) ने इसे रोक दिया है (जैसा कि चुनावी बांड के मामले में हुआ)। जबकि अमेरिका में विधायिका ने महत्वपूर्ण क्षणों में दान और व्यय पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है, लेकिन वहां की न्यायपालिका ने इसे पलट कर एक और अधिक आरामदायक व्यवस्था बनाई है।

उदाहरण के साथ समझिए

1970 के दशक में वॉटरगेट घोटाले के बाद अमेरिकी कांग्रेस ने संघीय चुनाव अभियान अधिनियम (FECA) पारित किया, जिसने "योगदान सीमाओं और प्रकटीकरण आवश्यकताओं को मजबूत किया। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के लिए वैकल्पिक सार्वजनिक धन की स्थापना की और कानून को लागू करने के लिए संघीय चुनाव आयोग (FEC) का निर्माण किया। मगर कुछ ही साल बाद अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर खर्च की सीमा को पलट दिया कि यह प्रथम संशोधन के तहत बोलने की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। ऐसे में चुनावों में अधिक धन जुटाने और अधिक खर्च करने के द्वार खुल गए। 

अमेरिका में आया सॉफ्ट मनी का दौर

गत तीन दशकों में अमेरिका में सॉफ्ट मनी का दौर आया। ऐसे में अमेरिका ने भी एक नवाचार देखा जिसे "सॉफ्ट मनी" कहा गया। यानि ऐसी नकदी जो सीधे अभियानों में नहीं जाती थी, बल्कि पार्टी के अभियान प्रयासों में सहायता करती थी या चुनावों पर प्रभाव डालने वाले मुद्दों की वकालत के लिए उपयोग की जाती थी। बाद में 2002 में अमेरिकी कांग्रेस ने द्विदलीय अभियान सुधार अधिनियम पारित किया, जिसमें सॉफ्ट मनी पर संघीय प्रकटीकरण आवश्यकताओं को लागू किया गया और किसी भी निगम द्वारा भुगतान किए जाने वाले मुद्दा-आधारित राजनीतिक विज्ञापनों को सीमित किया गया। मगर सुप्रीम कोर्ट ने फिर इसे पलट दिया।  2010 में सिटीजन्स बनाम यूनाइटेड के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र राजनीतिक भाषण के आधार पर एक बार फिर असीमित कॉर्पोरेट स्वतंत्र व्यय और चुनावी संचार की अनुमति दी। इसके परिणामस्वरूप "बाहरी समूहों, विशेष रूप से सुपर पीएसी और राजनीतिक रूप से सक्रिय गैर-लाभकारी संस्थाओं द्वारा खर्च करने में बड़ा धमाका हुआ। जो अब असीमित धन जुटा सकते हैं और खर्च कर सकते हैं, जब तक कि यह उम्मीदवार के अभियान के साथ कागज पर समन्वित नहीं होता है। मगर बाद में इसमें काले धन की भी बाढ़ आने लगी।

2020 में अमेरिका में हुआ क्या बदलाव

इसका परिणाम 2020 में  राजनीतिक धन पर नज़र रखने वाले ओपनसीक्रेट्स के अनुसार  राष्ट्रपति, सीनेट और हाउस चुनावों में राजनीतिक खर्च को संयुक्त रूप से 14.4 बिलियन डॉलर तय किया गया। ऐसे में जो बाइडेन और डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने अभियान के लिए सीधे $1.8 बिलियन डॉलर से अधिक जुटाए, जिसमें बाइडेन को एक बिलियन डॉलर से अधिक और ट्रम्प को शेष राशि मिली। साथ ही बाहरी प्रयासों से उनको परोक्ष रूप से 900 मिलियन डॉलर का फ़ायदा हुआ, जिससे उनके अभियान को सहायता मिली। इसमें बाइडेन को लगभग 600 मिलियन डॉलर मिले और बाकी राशि ट्रम्प को दी गई। ओपनसीक्रेट्स की रिपोर्ट में एफईसी रिकॉर्ड के आधार पर कहा गया है कि "राष्ट्रपति चुनाव 2020 में रिकॉर्ड 5.7 अरब डॉलर खर्च हुए। वहीं कांग्रेस चुनाव की दौड़ में कुल 8.7 अरब डॉलर खर्च हुआ।" ऐसे में सवाल उठता है कि बाकी पैसा कहां से आया, क्या राजनीतिक चंदा पारदर्शी है? 

अमेरिका में क्या है फंड का नियम

यदि आप सीधे किसी उम्मीदवार के अभियान के लिए $50 डॉलर से अधिक की कोई राशि दान करते हैं तो अभियान (प्राप्त कर्ता) को दाता की पहचान और एफईसी में शामिल योगदान की राशि का खुलासा करना होगा। यदि आप सुपर पीएसी को भी दान देते हैं तो उसकी रिपोर्टिंग जरूरी है। मगर यहां ग्रे जोन काले धन के क्षेत्र में है जहां गैर-लाभकारी संगठन दानदाताओं का खुलासा किए बिना पैसा खर्च कर सकते हैं। उदाहरण के लिए 2020 के चुनाव में अनुमान लगाया गया है कि काला धन एक अरब डॉलर से अधिक का था। 

क्या है दान की सीमा

वेबसाइट पर उपलब्ध एफईसी के दिशानिर्देशों के अनुसार, एक व्यक्ति उम्मीदवार की अभियान समिति को $3300 डॉलर की राशि व असंबद्ध पीएसी को $5000 डॉलर प्रति वर्ष, पार्टी की राज्य, जिला और स्थानीय समितियों को $10000 डॉलर, पार्टी की राष्ट्रीय समिति को $41,300 डॉलर का योगदान व राष्ट्रीय समिति को अतिरिक्त $123,900 डॉलर का योगदान कर सकता है। हालाकि सुपर पीएसी अपवाद है, जो "असीमित योगदान स्वीकार कर सकते हैं"। 

कौन दे सकता है योगदान

यह फिर इस बात पर निर्भर करता है कि दानदाता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दे रहे हैं या नहीं। उदाहरण के लिए कॉरपोरेट्स को उम्मीदवार के अभियानों के लिए दान देने की अनुमति नहीं है, लेकिन वे पीएसी को ऐसा कर सकते हैं। इन सबके परिणामस्वरूप एक ऐसा राजनीतिक माहौल तैयार हुआ है, जहां उम्मीदवार के चुनावी वित्त की बात आने पर अमेरिका दानदाताओं की प्रकृति, योगदान की मात्रा और व्यय की प्रक्रिया के बारे में अपेक्षाकृत खुलापन है। लेकिन इसके परिणामस्वरूप अपारदर्शिता भी बढ़ी है, जिसने भ्रष्टाचार को जन्म दिया है। इसने चुनिंदा बड़े दानदाताओं को अद्वितीय राजनीतिक पहुंच और प्रभाव प्रदान किया है और बिना संसाधनों वाले लोगों को चुनावी मैदान में एक बड़ी बाधा के साथ छोड़ दिया है। स्वच्छ लोकतंत्र के निर्माण में पारदर्शिता स्पष्ट रूप से एक आवश्यक शर्त है, लेकिन पर्याप्त शर्त नहीं है। 

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