अगर आपने अब तक इलेक्ट्रिक गाड़ियां इस्तेमाल करना शुरू नहीं किया है, तो आप अपने बच्चों के हेल्थ से खिलवाड़ कर रहे हैं। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। अमेरिकन लंग एसोसिएशन द्वारा जारी किए गए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों में स्विच करने से दुनियाभर के लाखों लोगों के स्वास्थ्य को वरदान मिलेगा। खास तौर पर उन बच्चों को फायदा पहुंचेगा, जो फेफड़ों से संबंधित बीमारियों से जूझ रहे हैं।
डराने वाले हैं आंकड़े
अमेरिकन लंग एसोसिएशन की यह रिपोर्ट उस मॉडल पर आधारित है, जिसमें 2035 तक जीरो टेलपाइप इमीशन (tailpipe emission) अचीव करने का जिक्र है। जीरो इमीशन अचीव करने के बाद बच्चों में होने वाले करीब 2.7 मिलियन यानी 27 लाख अस्थमा अटैक को कम किया जा सकेगा। यही नहीं, 1.47 लाख ब्रोंकाइटिस के मामलों में भी कमी आ सकती है। पेट्रोल-डीजल की गाड़ियों से इलेक्ट्रिक गाड़ियों में स्विच करने पर 2.67 मिलियन यानी 26 लाख से ज्यादा बच्चों में अपर रेसपाइरेटरी दिक्कतों को रोका जा सकेगा। वहीं, 1.87 मिलियन यानी करीब 19 लाख बच्चों में लोअर रेसपाइरेटरी की दिक्कतों को कम किया जा सकेगा।
बच्चों को ज्यादा खतरा
लंग एसोसिएशन की यह रिपोर्ट बताती है कि EV में स्विच करना बच्चों के लिए कितना जरूरी है, क्योंकि बच्चों का शरीर एक व्यस्क के शरीर के मुकाबले अलग रेट से डेवलप होता है। बच्चों को वायु प्रदुषण से सबसे ज्यादा खतरा रहता है क्योंकि उनके फेफड़े अभी भी बढ़ रहे होते हैं।
साइंटिस्ट का मानना है कि जलवायु परिवर्तन में CE यानी कंब्शन इंजन वीकल का बड़ा योगदान है। गाड़ियों से निकलने वाले धुएं की वायु प्रदुषण में 25 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी होती है। यही कारण है कि दुनियाभर की सरकारें इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा दे रही हैं। इलेक्ट्रिक गाड़ियों से बहुत ही कम मात्रा में प्रदूषण फैलाने वाले तत्व वातावरण में पहुंचते हैं। बच्चों के फेफड़े सेंसेटिव होने की वजह से उनमें सांस लेने की दिक्कत होने का सबसे बड़ा खतरा रहता है।
जीरो इमीशन वीकल पर जोर
रिपोर्ट के मुताबिक, 2035 तक अमेरिका में केवल इलेक्ट्रिक पैसेंजर गाड़ियां बेची जाएंगी। वहीं, 2040 तक हैवी ड्यूटी गाड़ियां भी इलेक्ट्रिक ही होंगी। अमेरिकी सरकार 2050 तक केवल इलेक्ट्रिक गाड़ियों वाले प्लान पर काम कर रही है। यही नहीं, इन गाड़ियों को चार्ज करने के लिए इस्तेमाल होने वाली बिजली भी बिना धुएं वाले पावरग्रिड से मिलेगी।
हालांकि, इतना बड़ा ट्रांसफोर्मेशन आसान नहीं होने वाला है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कीमत ज्यादा होने की वजह से इनकी डिमांड पर असर पड़ेगा। हालांकि, इलेक्ट्रिक गाड़ियों की सेल हर साल बढ़ रही है। पिछले साल इलेक्ट्रिक गाड़ियों की सेल में 2022 के मुकाबले 8 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। यह कम है, लेकिन यह दर्शाता है कि लोगों का रूझान अब इलेक्ट्रिक गाड़ियों की तरफ बढ़ रहा है।
भारत में आसान नहीं है राह
भारत जैसे देश में पूरी तरह से इलेक्ट्रिक गाड़ियों में स्विच करना आसान नहीं है। यह कई फैक्टर पर निर्भर करता है, जिनमें इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर गाड़ियों की कीमत, डिमांड आदि शामिल हैं। हालांकि, केन्द्र सरकार इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी भी देने का फैसला किया है, जो इलेक्ट्रिक गाड़ियां खरीदने वाले ग्राहकों को मिलती है। इसके अलावा नए बन रहे एक्सप्रेस-वे और हाईवे में इलेक्ट्रिक वीकल चार्ज करने के लिए प्वाइंट बनाए जा रहे हैं। इसके अलावा देश की ऑयल कंपनियां भी अपने पेट्रोल पंप पर इलेक्ट्रिक वीकल चार्ज करने का प्वाइंट बना रही हैं। साथ ही, कई स्टार्ट-अप कंपनियां टू-वीलर्स के लिए बैटरी स्वैपिंग सेट-अप भी लगा रही हैं।
अमेरिकन लंग एसोसिएशन की यह रिपोर्ट आम लोगों की आखें खोलने के लिए काफी है। पेट्रोल-डीजल-गैस से चलने वाली गाड़ियों की संख्यां भी दिनों-दिन बढ़ रही हैं, जिसकी वजह से आने वाले 10 साल में वातावरण और भी ज्यादा दूषित हो जाएगा। वातावरण का दूषित होना बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बनेगा। ज्यादातर बच्चे अस्थमा या अन्य रिस्पाइरेटरी बीमारियों से जूझेंगे। इसका एक ही समाधान जीरो-इमीशन वाली गाड़ियों की तरफ रूख करना होगा।
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