नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने 29 हफ्ते की एक प्रेगनेंट महिला को बच्चा गिराने (अबॉर्शन) की इजाजत दे दी है। पति के निधन के कारण महिला सदमे में थी और उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। कोर्ट का कहना था कि अगर प्रेगनेंसी को जारी रखा जाता तो महिला की मानसिक हालत और बिगड़ सकती है।
बता दें कि महिला ने सुसाइड करने वाले विचार जाहिर किए थे। हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि ये फैसला विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में पारित किया गया है। इसे किसी अन्य मामले में मिसाल के तौर पर नहीं लिया जाएगा।
क्या है पूरा मामला?
फरवरी 2023 में महिला की शादी हुई थी। 19 अक्टूबर 2023 को इस महिला के पति की मौत हो गई। पति की मौत के बाद से महिला सदमे में है। उसने याचिका दायर की कि उसकी प्रेगनेंसी को मेडिकल स्तर पर खत्म किया जाए। उसका कहना था कि जब वह अपने मायके आई तो उसे प्रेगनेंसी के बारे में पता चला।
एम्स ने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा?
इस मामले में एम्स द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि महिला डिप्रेशन की स्थिति में है और उसने आत्मघाती भ्रूणहत्या के विचार जाहिर किए हैं। जिसके बाद कोर्ट ने महिला को एम्स में अपनी प्रेगनेंसी को खत्म करने की प्रक्रिया पूरी करने की इजाजत दे दी है।
ये है कानून
प्रेगनेंसी के दौरान अगर केस बिगड़ जाए तो मेडिकल बोर्ड की सलाह से अबॉर्शन हो सकता है। हालांकि अबॉर्शन कराने के लिए रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर (गायनेकोलॉजी, ऑब्स्टेट्रिक्स ट्रेंड) का होना जरूरी है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत, 24 हफ्ते तक की प्रेगनेंसी के अबॉर्शन की इजाजत है लेकिन उससे ज्यादा समय होने पर मेडिकल बोर्ड की सलाह पर कोर्ट से अबॉर्शन की इजाजत लेनी होती है।
क्या कहता है नया कानून?
प्रेगनेंसी स्टेप | एमटीपी एक्ट 1971 में अबॉर्शन की शर्त | एमटीपी (अमेंडमेंट) एक्ट 2020 की शर्त |
12 हफ्ते तक | एक डॉक्टर की सलाह से होता है | एक डॉक्टर की सलाह से होता है |
12 से 20 हफ्ते तक | 2 डॉक्टरों की सलाह से होता है | एक डॉक्टर की सलाह से होता है |
20 से 24 हफ्ते तक | इजाजत नहीं है | रेप विक्टिम, दिव्यांग, शादीशुदा और नाबालिग को इजाजत |
24 हफ्ते से ज्यादा | इजाजत नहीं है | भ्रूण बिगड़ जाए तो मेडिकल बोर्ड की सलाह से हो सकता है |
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