इजराइल पर ईरान के भीषण मिसाइल अटैक के बाद से क्रूड ऑयल की कीमतें करीब 10% बढ़ गई हैं। शुक्रवार को ब्रेंट क्रूड ऑयल 77.63 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड करता दिखा है। वहीं, WTI क्रूड ऑयल 73.69 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड करता दिखाई दिया। क्रूड ऑयल की कीमतों में यह उछाल भारत जैसे देशों के लिये अच्छी खबर नहीं हैं, जो अपनी जरूरत का मैक्सिमम तेल दूसरे देशों से मंगाते हैं। क्रूड ऑयल पेट्रोल-डीजल समेत कई पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का प्राइमरी सोर्स है। यानी क्रूड ऑयल में लगातार इजाफा होता रहा, तो भारत में पेट्रोल-डीजल की महंगाई देखने को मिल सकती है। आइए जानते हैं कि मौजूदा हालात क्या कहते हैं।
मिडिल ईस्ट का मौजूदा संघर्ष भारत के लिये इसलिए भी अधिक घातक है, क्योंकि हम तेल आयात का एक बड़ा हिस्सा इसी क्षेत्र से मंगाते हैं। ईरान के हमले के बाद इजराइल ने जोरदार पलटवार करने की कसम खाई हुई है। अगर इजराइल ईरान के तेल प्रतिष्ठानों पर अटैक करता है, तो क्रूड ऑयल के दाम काफी तेजी से बढ़ेंगे। दोनों देश पूरी तरह से युद्ध का ऐलान कर देते हैं, तो भारत की एनर्जी सिक्योरिटी के लिये अच्छा नहीं होगा।
भारत तेल के लिए मिडिल ईस्ट पर कितना निर्भर है?
भले ही भारत ने रूस से तेल आयात में काफी बढ़ोतरी की है, लेकिन अभी भी हम मिडिल ईस्ट से तेल और गैस आयात पर काफी निर्भर हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के अगस्त आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी लगातार 5 महीनों तक बढ़ने के बाद घटकर लगभग 36% रह गई। जुलाई में, रूसी तेल भारत के तेल आयात का लगभग 44% था। भारत के अगस्त के कच्चे तेल आयात में मिडिल ईस्ट तेल का हिस्सा जुलाई के 40.3% से बढ़कर 44.6% हो गया। हालांकि, अप्रैल से अगस्त के दौरान, इस क्षेत्र की हिस्सेदारी एक साल पहले के 46% से घटकर लगभग 44% हो गई। इराक, सऊदी अरब, यूएई और कुवैत भारत के लिए तेल के प्रमुख मिडिल ईस्ट सप्लायर हैं। भारत अपनी लगभग आधी LNG कतर से आयात करता है। फरवरी में भारत ने कतर के साथ 78 अरब डॉलर का सौदा किया था, ताकि LNG आयात को और 20 वर्षों तक बढ़ाया जा सके।
ईरान-इजराइल युद्ध से कैसे पैदा होगा तेल संकट?
अगर ईरान और इजरायल के बीच एक पूर्ण युद्ध छिड़ जाता है, तो भारत के अधिकांश ऊर्जा आयात को खतरा होगा। ऐसे में ईरान के सहयोगी हिजबुल्लाह और हूथी भी अपने हमलों को तेज करेंगे। इससे लाल सागर और होर्मुज जलडमरूमध्य जैसे महत्वपूर्ण तेल शिपिंग रूट बाधित हो सकते हैं। भारत लाल सागर रूट के जरिए रूस से तेल आयात करता है। युद्ध की स्थिति में शिपमेंट को हमलों से बचाने के लिए केप ऑफ गुड होप का लंबा रूट लेना होगा। वहीं, भारत होर्मुज जलडमरूमध्य रूट के जरिए कतर से अपनी एलएनजी और इराक और सऊदी अरब से तेल प्राप्त करता है। यह रूट बाधित होता है, तो बड़ा नुकसान होगा।
होर्मुज है दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण तेल परिवहन चोक पॉइंट
अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन (EIA) के अनुसार, होर्मुज दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण तेल परिवहन चोक पॉइंट है। चोक पॉइंट व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले वैश्विक समुद्री मार्गों के साथ संकीर्ण चैनल हैं, जो वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। तेल का यह प्रमुक चोक पॉइंट कुछ समय के लिये भी बाधित होता है, तो सप्लाई में डिले हो जाएगा और शिपिंग कोस्ट बढ़ जाएगी, जिसका सीधा असर ग्लोबल एनर्जी प्राइसेस पर पड़ेगा। होर्मुज ओमान और ईरान के बीच स्थित है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। हार्मुज दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण तेल चोकपॉइंट है, क्योंकि यहां से बड़ी मात्रा में तेल का परिवहन होता है। यह फारस की खाड़ी में तेल उत्पादक देशों को दुनिया भर की रिफाइनरियों से जोड़ता है। साल 2022 और 2023 की पहली छमाही में हार्मुज के रूट से सबसे ज्यादा तेल चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया गया था। यह हार्मुज से जाने वाले कच्चे तेल और कंडेनसेट फ्लो का 67 फीसदी था। भारत पहले से ही अपने ऊर्जा आयात के एक महत्वपूर्ण हिस्से के लिए हार्मुज रूट पर निर्भर है। भारत द्वारा आयात किया जाने वाला दो-तिहाई तेल और आधा एलएनजी हार्मुज के माध्यम से आता है।
भारत पर क्या होगा असर?
भारत के तेल और गैस आयात में बाधा आने पर अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। क्रूड ऑयल महंगा होने से महंगाई बढ़ेगी और यह RBI को ब्याज दरें उच्च रखने को मजबूर कर सकता है। भारत की अर्थव्यवस्था आयातित ऊर्जा पर बहुत अधिक निर्भर है, जिस पर कई उद्योग निर्भर हैं। तेल और गैस की उच्च कीमतों या सप्लाई में कमी का सीधा प्रभाव महंगाई बढ़ने के रूप में होगा, जो हाल ही में कम हो रही है। अभी हम साल के आखिर तक RBI द्वारा ब्याज दर घटाने की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन महंगाई बढ़ने पर ऐसा नहीं होगा। सरकार ईंधन को काफी हद तक सब्सिडी देती है, इसलिए तेल की कीमतों में उछाल से उसे अपने अन्य खर्चों को दोबारा कैलकुलेट करने पर मजबूर होना पड़ेगा। इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण और राजकोषीय घाटा विशेष रूप से प्रभावित हो सकता है। मॉर्गन स्टेनली की एक रिपोर्ट के अनुसार, क्रूड ऑयल में 10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई को 0.2 से 1.4 प्रतिशत अंक तक प्रभावित कर सकती है। भारत के लिहाज से देखें, तो प्रत्येक 10 डॉलर प्रति बैरल का इजाफा महंगाई को 0.5 फीसदी बढ़ा सकता है। ICRA के अनुसार, ईरान-इजरायल संघर्ष के बढ़ने से भारत के आयात बिल पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे चालू वित्त वर्ष में शुद्ध तेल आयात बिल 2023-24 के 96.1 अरब डॉलर से बढ़कर 101-104 अरब डॉलर हो सकता है।
लंबे समय से सस्ता रहा है क्रूड ऑयल
क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में उल्लेखनीय गिरावट के कारण अगस्त 2024 में भारत का तेल आयात साल-दर-साल 32.4% तक गिर गया। ईरान-इजराइल के मौजूदा संघर्ष से पहले लंबे समय तक कच्चे तेल की कीमतें निचले स्तर पर रही हैं। भारतीय ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को इसका काफी फायदा हो रहा है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से इन कंपनियों का मुनाफा काफी बढ़ा है। अगर मौजूदा संघर्ष नहीं होता, तो दिवाली तक पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती की उम्मीद भी की जा रही थी। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सचिव पंकज जैन ने दो सप्ताह पहले कहा था कि अगर कच्चे तेल की कीमत लंबे समय तक कम रहती हैं, तो तेल कंपनियां फ्यूल की कीमतें कम करने पर विचार करेंगी। हाल के हफ्तों में कच्चे तेल की कीमतों में कमी से रिटेल ऑटो फ्यूल पर मार्जिन में सुधार हुआ है, जिससे सरकारी कंपनियों को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में प्रति लीटर 2-3 रुपये तक कटौती करने का हेडरूम मिलता है। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने पिछले सप्ताह यह बात कही था। यदि युद्ध छिड़ जाता है, तो तेल कंपनियां कीमतें कम नहीं कर पाएंगी और उन्हें कीमतें बढ़ानी पड़ सकती हैं।