Election in Pakistan : भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में आज आम चुनाव है। कंगाली, आतंकवाद और कमजोर राजनीतिक परिदृश्य में हो रहे इस चुनाव पर दुनिया की नजर है। बम धमाकों और आतंकी हमलों के साए में हो रहे इस चुनाव में नवाज शरीफ, बिलावल भुट्टो प्रधानमंत्री पद के तगड़े दावेदार हैं, वहीं इमरान खान को पाकिस्तान की आवाम पहली पसंद के रूप में देखती है। लेकिन राजनीतिक दांवपेंच में इमरान खान पूरी तरह चित्त हो चुके हैं। उन पर इतने मुकदमे लाद दिए गए हैं कि वे जेल से बाहर निकलकर चुनाव ही नहीं लड़ सकते हैं यही नहीं, उनकी पार्टी को भी छिन्न भिन्न कर दिया गया है। चुनाव लड़ने वालों को जेल में बंद किया जा रहा है या धमकी दी जा रही है।
इमरान की पार्टी ने चुनाव चिह्न 'बल्ला' मांगा था, वो भी नहीं मिला। ऐसी राजनीतिक सरगर्मियों के बीच यह जानना जरूरी है कि पड़ोसी मुल्क में चुनाव कैसे होता है, किस तरह वोट डाले जाते हैं। भारत से यह चुनाव प्रक्रिया कितनी अलग है। कितनी सीटों पी प्रधानमंत्री चुना जाता है। जानिए पाकिस्तान में चुनावी प्रक्रिया से जुड़ी ऐसी ही अहम जानकारियां।
आज आम चुनाव के लिए पाकिस्तान तैयार है। बड़ी मुश्किल से फरवरी महीने की 8 तारीख चुनाव आयोग ने तय की थी। पाकिस्तान में मतदान के लिए 26 करोड़ बैलेट पेपर छापे गए हैं। इसका कुल वजन करीब 2100 टन है। जबकि नई सरकार चुनने के लिए कुल 22 करोड़ जनसंख्या में से 12.69 करोड़ मतदाता नई सरकार चुनेंगे।
भारत से कितनी अलग है पाकिस्तान में चुनाव की प्रोसेस?
पाकिस्तान में आज भी बैलेट पेपर पर चुनाव होता है। जबकि भारत में EVM का लंबे समय से इस्तेमाल हो रहा है। यही कारण है कि पाक में चुनाव में बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं आम हैं। यही नहीं अशांत खैबर पख्तूनख्वा में तो 80 फीसदी मतदान केंद्र अति संवेदनशील हैं। पाकिस्तान में अब सवाल यह उठता है कि EVM से चुनाव क्यों नहीं कराए जाते? दरअसल, पाकिस्तान में इमरान खान जब पीएम थे, तब उन्होंने कोशिश की थी कि चुनाव EVM से कराए जाएं। इसके लिए इमरान की सरकार ने 2 मई 2021 के दिन EVM से वोटिंग के लिए संसद में एक प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन इस प्रस्ताव का तब पाकिस्तान के 11 विपक्षी दलों के सांसदों ने जोरदार विरोध किया था।
पाकिस्तान में एक ही दिन में आ जाते हैं चुनाव परिणाम, आखिर कैसे?
पाकिस्तान में बैलेट पेपर से मतदान कराए जाने के बाद भी वोटिंग के दिन ही काउंटिंग भी हो जाती है और आमतौर पर परिणाम भी आ जाते हैं। यह सबसे बड़ा सवाल है। क्योंकि पाकिस्तान की जनसंख्या में वोट देने वाले भी करोड़ों में हैं। ऐसे में परिणाम एक ही दिन में आ जाने के पीछे कारण यह है कि पोलिंग बूथ पर ही अधिकारी अपने हाथ से वोटों की गिनती कर लेते हैं और चुनाव के दिन देर रात तक नतीजे घोषित कर दिए जाते हैं। जबकि भारत में जब बैलेट पेपर से चुनाव होते थे, तब भी मतपेटियों को सील लगाकर जिला मुख्यालयों पर ले जाया जाता था। इसके बाद काउंटिंग होती थी, पर पाकिस्तान में ऐसा नहीं है। वहां वोटिंग के बाद ही बूथ पर ही काउंटिंग कर ली जाती है। हालांकि तब भी अगर तय समय पर परिणाम नहीं आते हैं तो रिटर्निंग ऑफिसर को चुनाव आयोग को इसकी लिखित जानकारी देनी होती है।
कितनी सीटें मिलने पर बनती है पाकिस्तान में सरकार?
भारत की तरह पाकिस्तान में भी आम चुनाव होते हैं। लेकिन भारत से छोटा देश और कम जनसंख्या होने के कारण यहां सीटों की संख्या भारत के 543 के मुकाबले कम हैं। पाकिस्तान में कुल 342 सीटें हैं, इनमें से 272 सीटों पर सीधे चुनाव होता है। इनमें से 60 सीटें महिलाओं के लिए पहले से रिजर्व हैं। चुनाव में जनता नेशनल असेंबली के लिए वोटिंग कर रही है। इसमें पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के 272 सांसद चुने जाने हैं। चुनाव का परिणाम आने के बाद फिर जिस भी पार्टी या गठबंधन के पास बहुमत होगा, उस पार्टी की सरकार बनेगी।
पाकिस्तान में सरकार बनाने के लिए कौन कौनसी पार्टियां अहम?
पाकिस्तान में नवाज शरीफ, बिलावल भुट्टो और इमरान खान, ये तीनों ही सबसे अहम दावेदार हैं। इनमें इमरान खान तो जेल में चले गए। अब बचे नवाज और बिलावल। ऐसे में नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग- नवाज, पूर्व पीएम इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) और बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान की पार्टी पीपुल्स पार्टी। इन तीन पार्टियों के उम्मीदवारों के बीच टक्कर है।
अशांत बलूचिस्तान में चुनाव कराना क्यों सबसे बड़ी चुनौती?
अशांत बलूचिस्तान में चुनाव शांति और सुचारू संपन्न होना टेढ़ी खीर है। यहां 80 फीसदी मतदान केंद्र अति संवेदनशील हैं। बलूचिस्तान के कुल 5,028 मतदान केंद्रों में से केवल 961 यानी करीब 19 फीसदी सामान्य हैं।
बलूचिस्तान के गृह मंत्री जुबैर जमाली ने प्रांत में चुनाव के संबंध में कहा कि बलूचिस्तान में सुरक्षा बलों, प्रतिष्ठानों, सरकारी कर्मचारियों और नागरिकों पर हमले की कोशिश के मद्देनजर मतदान के दिन सुरक्षा बहुत कड़ी होगी। बलूचिस्तान में कुल 5,028 मतदान केंद्र हैं। इनमें से केवल 961 को सामान्य के रूप में नामित किया गया है। इसके अलावा 2,337 मतदान केंद्रों को 'संवेदनशील' और 1,730 को अत्यधिक संवेदनशील घोषित किया गया है। मतदान केंद्रों पर सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ाई गई है। खासकर संवेदनशील और अति संवेदनशील क्षेत्रों में। कई इलाकों में इंटरनेट सेवा भी बंद रहेगी।
पीएम पद की दौड़ में ये हैं ताकतवर प्रत्याशी, एक चला गया हाशिए पर
नवाज शरीफ: 4 साल का वनवास काटकर पहुंचे अपने मुल्क
नवाज शरीफ को पहले भी पाकिस्तान में सरकार चलाने का अनुभव है। वे अटलजी के दौर में भी पाकिस्तान के पीएम थे और पीएम मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे। हालांकि भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद वे देश से बाहर चले गए। जब उनके छोटे भाई शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बने, तो वे 4 साल के निर्वासन के बाद लंदन से वापस अपने वतन पाकिस्ताान लौट आए। अब वे अपनी पार्टी की ओर से पीएम पद के प्रत्याशी हैं और सबसे ताकतवर कैंडिडेट हैं प्रधानमंत्री पद के लिए।
बिलावल भुट्टो: विरासत में मिली राजनीति, पर अनुभव में लचर
बिलावल भुट्टो को राजनीति अपने माता पिता से विरासत में मिली है। मां बेनजीर भुट्टो भी पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रह चुकी हैं। वहीं उनके पिता आसिफ अली जरदारी पाकिस्तान के राष्ट्रपति रह चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद भी उनकी बातों, बयानों और उनके कामों उतनी परिपक्वता नजर नहीं आती। शहबाज सरकार में विदेश मंत्री रहे बिलावल भुट्टो अनर्गल बयानों के कारण कई बार खुद ही आलोचनाओं के शिकार हुए।
इमरान खान: क्रिकेट की बुलंदियों के बाद बने पीएम, फिर चले गए जेल
इमरान खान की एक बड़ी खासियत है कि वे पाकिस्तान के जननेता के तौर पर जाने गए। जाहिर है क्रिकेटर के तौर पर जो प्रसिद्धि मिली, उसे राजनीति में भुनाया। हालांकि इस पठान नेता ने जमीनी राजनीति से भी जनता के दिलों में जगह बनाई लेकिन पीएम बनने के बाद भ्रष्टाचार और निजी जीवन के ऐसे विवादों में फंसे कि उन पर कई केस लाद दिए गए। भ्रष्टाचार के आरोपों में वे जेल में बंद हैं। जनता उन्हें क्यों पसंद करती है, यह सवाल लाजिमी है। दरअसल, इमरान खान ने पहली बार आर्मी के खिलाफ बोलने की 'जुर्रत' की। लिहाजा आर्मी और विरोधी पार्टी यानी शहबाज सरकार की मिलीभगत से उन्हें कमजोर किया गया और जेल भेज दिया गया। उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी तोड़ने की कोशिश की गई। ऐसे में जिसे जनता ने चाहा, वो ही पीएम पद की दौड़ से परे हो गया। वहीं पार्टी भी छिन्न भिन्न हो गई।