भारत में हुई नोटबंदी (Demonetization) ने आज यानी 8 नवंबर 2023 को सात साल पूरे कर लिए हैं। आज से ठीक सात साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे देश के नाम एक खास संबोधन में 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोट को तुरंत प्रभाव से लीगल टेंडर से हटाने का ऐलान किया था। उसकी जगह 500 रुपये के नए नोट जारी किए गए। 1000 के नोट बंद ही कर दिए गए। फिर कई नए नोट जैसे 200 रुपये, 20 रुपये, और 10 रुपये के भी आए। बाद में तब से अबतक नोटबंदी पर काफी चर्चा हो चुकी है। इस पर तमाम अलग राय और तर्क सामने आए। लेकिन इस नोटबंदी ने कई सारी पॉजिटिव इम्पैक्ट भी डाला है। कई बड़ी उपलब्धि (Demonetization advantage) भी हासिल करने में मदद मिली है।
डिजिटल पेमेंट को लगे पंख
नोटबंदी एक तरह से भारत में डिजिटल ट्रांजैक्शन (digital transaction) या पेमेंट में आई क्रांति की बड़ी वजह बनी। कैश की किल्लत में लोगों ने साल 2016 में डिजिटल पेमेंट का रुख किया। आज भारत इस सेगमेंट में दुनिया में सबसे आगे जा चुका है। भारत सरकार ने यूपीआई प्लेटफॉर्म को पेश किया जिससे तुरंत पेमेंट बिना किसी अतिरिक्त लागत के हो जाता है। यूपीआई ने तो डिजिटल पेमेंट में क्रांति ला दी। साल 2026 में पीआईबी की तरफ से बताए गए डिजिटल ट्रांजैक्शन के आंकड़ों पर नजर डालें तो अक्टूबर, 2016 में डिजिटल पेमेंट ट्राजैक्शन की संख्या 79.67 करोड़ थी।
अक्टूबर 2016 में, BHIM-UPI पर ट्रांजैक्शन की संख्या सिर्फ 1.031 लाख थी, जिसका मूल्य महज 48 करोड़ रुपये था। आज साल 2023 की पहली छमाही में यूपीआई से ट्रांजैक्शन (UPI transaction) की संख्या बढ़कर 51.91 अरब हो गई है। 2023 की पहली छमाही में मोबाइल से 52.15 अरब लेन-देन हुए। इसकी कुल वैल्य 132 खरब रुपये है। आप इन आंकड़ों से समझ सकते हैं कि कितना बड़ा बदलाव इस क्षेत्र में आया है।
नोटबंदी पहले भी दो बार हो चुकी है
ऐसा नहीं है कि साल 2016 में की गई नोटबंदी देश में पहली ऐसी घटना थी। इससे पहले भी साल 1946 में, 1,000 रुपये और 10,000 रुपये के करेंसी नोट को चलन से अलग कर दिया गया था। हालांकि तब इस बैन का ज्यादा असर नहीं पड़ा था, क्योंकि तब लोगों के पास इतने बड़े वैल्यू के नोट ही उपलब्ध नहीं थे। हालांकि, 1954 में 5,000 रुपये की अतिरिक्त मुद्रा की शुरूआत के साथ दोनों नोटों को बहाल कर दिया गया था। साल 1934 में 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों की घोषणा की गई और चार साल बाद 1938 में 10,000 रुपये के नोटों की घोषणा की गई।
इसके बाद, 1978 में भी नोटबंदी हुई थी। तब भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10,000 रुपये के चलन को बाहर करते हुए मुद्रा बैन की घोषणा की थी। इस बैन का एकमात्र मकसद देश में काले धन समूह पर अंकुश लगाना था। साल 1978 और 2016 के प्रतिबंध में समानताएं थी। मोरारजी देसाई द्वारा की गई नोटबंदी से भी अर्थव्यवस्था में काले धन के चलन से बाहर होने की उम्मीद थी। इसलिए, उच्च मूल्य बैंक नोट (विमुद्रीकरण) अधिनियम लागू किया गया था।
ब्लैक मनी की भी हुई खूब वसूली
नोटबंदी (Demonetization) के बाद 99% से ज्यादा अमान्य धन व्यक्तियों द्वारा बैंकों को वापस कर दिया गया था। नोटबंदी से सरकारी अधिकारियों को बेहिसाब नकदी के सोर्स का पता लगाने में मदद मिली। जिन व्यक्तियों के पास बड़ी धनराशि थी, उन्हें अपनी आय के स्रोत का खुलासा करना पड़ता था और उस पर टैक्स चुकाना पड़ता था। साल 2019 में, तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने सभी काले धन विरोधी उपायों के जरिये 1.3 लाख करोड़ रुपये के ब्लैक मनी की वसूली की घोषणा की थी।
आतंकवाद और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाया
भारत में विमुद्रीकरण ने आतंकवादी समूहों की फंडिंग और सभी गैरकानूनी गतिविधियों पर रोक लगाने में बड़ी मदद की। पिछले कई सालों से नोटबंद के बाद इन गतिविधियों में काफी कमी आई है। ये देश में नोटबंदी का असर था। इससे मनी लॉन्ड्रिंग कृत्यों पर भी अंकुश लगा और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के लिए कैश का पता लगाना आसान हो गया और अवैध मनी लॉन्ड्रिंग का रास्ता कठिन हो गया।
टैक्स भरने वालों की संख्या बढ़ी
नोटबंदी (Demonetization) का एक पॉजिटिल असर यह भी हुआ कि देश में टैक्सपेयर्स की संख्या में तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई। वित्त वर्ष 2017-2018 के दौरान आयकर विभाग ने अपने आधार में 1.07 करोड़ नए करदाताओं को जोड़ा था जो वित्त वर्ष 2016-2017 के मुकाबले में वित्त वर्ष 2017-2018 में दाखिल रिटर्न की संख्या में लगभग 25% की वृद्धि देखी गई। आज साल 2023 में देश में टैक्सरपेयर्स की संख्या 8.5 करोड़ से भी ज्यादा है।