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Explainer: साढ़े चार साल से नजरअंदाज किए जा रहे टीएस सिंहदेव को कांग्रेस ने क्यों बनाया उपमुख्यमंत्री? यहां जानिए अंदर की पूरी कहानी

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने बुधवार को राज्य के मंत्री टीएस सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बनाए जाने का ऐलान किया गया। पार्टी के इस फैसले के बाद राज्य के राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव आएगा।

Written By: Sudhanshu Gaur @SudhanshuGaur24
Published : Jun 29, 2023 13:41 IST, Updated : Jun 29, 2023 14:50 IST
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Image Source : INDIA TV टीएस सिंहदेव

रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजनीति में बुधवार को बड़ा बदलाव किया गया। यह बदलाव कांग्रेस पार्टी के लिए साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है। कांग्रेस आलाकमान ने भूपेश बघेल सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय समेत कई मंत्रालय संभाल रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बना दिया। इस फैसले से जितनी राहत कांग्रेस को मिली होगी, उतनी ही बेचैनी भारतीय जनता पार्टी की बढ़ी होगी। माना जा रहा था कि चुनाव के दौरान बीजेपी टीएस सिंहदेव का मुद्दा जनता के बीच लेकर जा सकती थी। कांग्रेस को भी इस बात की पूरी आशंका थी। यह मुद्दा उसके लिए घातक होता, उससे पहले ही पार्टी ने बीजेपी के प्लान पर पानी फेर दिया। 

कौन हैं टीएस सिंहदेव, जिन्हें सरकार में सौंपी गई नंबर 2 की कुर्सी?

टीएस सिंहदेव का जन्म साल 1952 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुआ था और उनका पूरा नाम त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव है। उन्होंने भोपाल के हमीदिया कॉलेज से इतिहास में MA किया है। उनकी राजनीतिक शुरुआत सन 1983 से अंबिकापुर नगरपालिका से मानी जाती है। वह यहां परिषद के पहले अध्यक्ष चुने गए थे। टीएस सिंह के परिवार की सरगुजा राजघराने के दौर में खूब तूती बोलती थी। यह राजघराना शुरुआत से कांग्रेस के साथ जुड़ा हुआ था। सिंहदेव इसी राजघराने के 118वें महाराज हैं। उनके समर्थक उन्हें महाराज कहकर संबोधित करते हैं, लेकिन वह कई मौकों पर खुद को महाराज ना बुलाने की अपील कर चुके हैं। इसके अलावा राज्य की राजनीति में उन्हें 'बाबा' भी कहा जाता है। 

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Image Source : FILE
टीएस सिंहदेव

प्रचंड बहुमत के पीछे माना गया था 'महाराज' का दिमाग 

नवंबर 2000 में जब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश से अलग हुआ तब राज्य की राजनीति में बड़ा फेरबदल देखने को मिला। राज्य के गठन के बाद कांग्रेस ने सरकार बनाई और अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। यहां की राजनीति में बीजेपी का दबदबा रहा है। अजीत जोगी के बाद बीजेपी के डॉ. रमन सिंह 2003 से 2018 तक सीएम बने रहे। 2018 के विधानसभा चुनावों में बड़ा बदलाव हुआ और प्रदेश में फिर से कांग्रेस की सरकार आई। प्रदेश में कांग्रेस ने 90 सीटों में से 68 सीटों पर पताका फहराया। इस बड़ी सफलता के पीछे टीएस सिंहदेव का बड़ा हाथ रहा। उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि आलाकमान महाराज को सीएम का पद सौपेंगा, लेकिन हुआ इसके उलट। कांग्रेस ने तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल को कमान सौंप दी और टीएस सिंहदेव को बघेल सरकार की कैबिनेट में जगह दी गई। इस फैसले के बाद से बाबा के आलाकमान से नाराज होने की खबरें लगातार आती रहीं। कई बार उनके बगावत की भी बात चली लेकिन यह बात केवल अफवाह ही साबित हुई। 

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Image Source : TWITTER
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव

2018 से लगातार हो रही थी महाराज को सीएम बनाने की मांग 

कांग्रेस ने साल 2018 में सरकार बनाई थी। उसके बाद से लगातार टीएन सिंह को सीएम बनाने की मांग की जाती रही। बार-बार कहा गया कि आलाकमान ने ढाई-ढाई साल के फार्मूले के तहत भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन ढाई साल बाद भी उन्हें नहीं हटाया गया। इसके बाद महाराज के समर्थकों ने उन्हें सीएम बनाने की मांग और भी तेज कर दी, लेकिन आलाकमान इस बात को नजरअंदाज करता रहा। लेकिन अब ऐसा क्या हो गया जो दिल्ली ने रायपुर में टीएन सिंह को नंबर दो की कुर्सी सौंप दी। इसके पीछे का कारण रहा हाल ही में उनके आये कई बयान और वीडियो। इन वीडियो में उनके कई ऐसे बयान थे जो अगर सच हो जाते तो पार्टी के लिए चुनावों में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता।

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को था बगावत का डर 

बीते दिनों सरगुजा संभाग में कांग्रेस के संभागीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस दौरान टीएस सिंहदेव के समर्थकों की नाराजगी खुलकर सामने आई। मंच पर भी ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का भी जिक्र किया गया। इसके साथ ही टीएस सिंहदेव ने कहा था कि कई राजनीतिक दलों ने उनसे संपर्क साधा है। उन्होंने कहा कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व भी उनसे संपर्क में है। इस बयान के बाद अटकलें लगने लगीं कि पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के 'महाराज' की तरह कहीं छत्तीसगढ़ के महाराज भी बगावत ना कर जाएं और पार्टी के लिए सबसे आसान चुनावी मैदान में से एक राज्य में मुश्किलें खड़ी कर दें। इसके बाद से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व उनकी नाराजगी दूर करने के फार्मूले पर काम करने लगा था और इसी के तहत उन्हें उपमुख्यमंत्री जैसे पद की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई।

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टीएस सिंहदेव

विधानसभा चुनाव ना लड़ने की जताई थी आशंका 

वहीं फरवरी के महीने में रायपुर में हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान टीएस सिंहदेव के एक बयान ने सुर्खियां बनाई थीं। उस दौरान उन्होंने कहा था कि मैं भी सीएम बनना चाहता हूं। इसके बाद उन्होंने कहा कि 2023 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने पर भी संशय है। बाबा ने कहा था कि मैं विधानसभा चुनाव के लिए पहले से तैयारी शुरू कर देता हूं लेकिन इस बार अभी तक तैयारी नहीं की है। कार्यकर्ता और समर्थकों से चर्चा के बाद ही मैं इस बार का चुनाव लड़ने का फैसला करूंगा। इसके बाद कहा जाने लगा था कि बाबा पार्टी से नाराज हैं और जल्द ही कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। टीएस सिंहदेव कोई फैसला लेते उससे पहले कांग्रेस पार्टी ने बड़ा फैसला लेना ठीक समझा और उन्हें उपमुख्यमंत्री बना दिया। पार्टी अब इस फैसले से कार्यकर्ताओं में एकजुटता दिखाने की कोशिश कर रही है। 

पार्टी ने चुनाव तक थामी गुटबाजी 

पार्टी का यह फैसला चुनावों में कितना असर दिखाता है यह तो वक़्त ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस ने राज्य में चुनाव तक पार्टी के अंदर बगावती सुर और गुटबाजी थाम दी है। सूत्र बताते हैं कि टीएस सिंहदेव को यह एहसास था कि कांग्रेस से अलग जाकर उनकी राजनीति इतनी फलफूल नहीं पाएगी इसलिए वह उससे अलग नहीं होंगे। इसके साथ ही महाराज की गिनती पार्टी के सबसे वफादार सिपाहियों में होती है और वह नहीं चाहते कि अपनी राजनीति के अंतिम दिनों में उन पर किसी तरह का लांछन लगे। इसलिए वह पार्टी में रहकर ही संघर्ष करते रहे और सरकार के कार्यकाल के आखिरी साल में इसका फल उन्हें मिल ही गया। 

 

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