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Explainer: कई मायने में परमाणु बम से भी खतरनाक हैं क्लस्टर बम, इसे कहिये तबाही का मंजर और खौफ का दरिया

क्लस्टर बमों की गिनती दुनिया के सबसे खतरनाक बमों मे है। यह जब फटते हैं तो परमाणु बमों की तर्ज पर इनमें हजारों छोटे-छोटे बम निकलते हैं, जो जहां गिरते हैं वहां तबाही का सैलाब ला देते हैं। पहले क्लस्टर बम का इस्तेमाल द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी और रूस ने किया था। अब रूस-यूक्रेन युद्ध में क्लस्टर के इस्तेमाल का खतरा है।

Written By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Updated on: July 17, 2023 10:49 IST
क्लस्टर बम- India TV Hindi
Image Source : AP क्लस्टर बम

Explainer: क्लस्टर बम...नाम ही खौफ का पर्याय है। तबाही का एक ऐसा बम, जो परमाणु तो नहीं, लेकिन एटमिक हथियारों से कई मायनों में कम भी नहीं। क्लस्टर बम ऐसे बम हैं, जो जहां गिराये जाते हैं वहां जलजला ला देते हैं। जमीन को बंजर बना देते हैं और आबादी को वीरान कर देते हैं। क्लस्टर का मतलब गुच्छा या किसी चीज का समूह होता है। यह हवा से विमान के जरिये ऊंचाई से गिराये जाते हैं या समुद्र से दागे जाते हैं। जब एक क्लस्टर बम फटता है तो उससे छोटे-छोटे हजारों नए बम हवा में ही तैयार होकर बर्बादी की बारिश करने लगते हैं। बिलकुल परमाणु बमों की तर्ज पर इनकी संख्या एक से हजारों होती जाती है। रूस-यूक्रेन युद्ध में इन बमों के इस्तेमाल का खतरना बढ़ जाने से इनके बारे में जानना अब जरूरी हो गया है।

यह बम इतने अधिक खतरनाक होते हैं कि पलक झपकते ही तबाही ला सकते हैं। इनमें एक बम से बहुत सारे लघु क्लस्टर बम स्वतः तैयार हो जाते हैं, जो इलाका का इलाका साफ कर देते हैं। इसे दुश्मनों के युद्धक वाहनों को नष्ट करने और लोगों को मारने के लिए बहुतायत इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके साथ ही हवाई पट्टी को उड़ाने, विद्युत ट्रांसमिशन लाइनों को नष्ट करने, जमीनी-बारूदी सुरंगों को तितर-बितर करने, रासायनिक और जैविक हथियारों को ठिकाने लगाने में भी इन क्लस्टर बमों का इस्तेमाल किया जाता है।

जमीन से एक किलोमीटर ऊंचाई तक उठ सकता है बम

क्लस्टर बमों में विस्फोट होने के बाद वह 100 से 1000 मीटर की ऊंचाई तक जा सकते हैं। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये कितने खतरनाक होते हैं। यह बहुत बड़े इलाके को अपने दायरे में ले लेते हैं। इसे लड़ाकू विमानों और समुद्री युद्धपोतों से दागा जाता है। क्लस्टर बम बेहद खतरनाक माने जाते हैं। यह जिस इलाके में गिरते है, वहां जबरदस्त तबाही मचाते हैं। इस बम की चपेट में आने वाले इलाके में मौजूद लगभग सभी लोगों की मौत हो जाती है या फिर कुछ बच भी गए तो वो गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। जैसे ही कोई एक क्लस्टर बम फटता है, तो उसके अंदर मौजूद बम एक बड़े इलाके में गिरने शुरू हो जाते हैं। क्लस्टर बम से निकलने वाले छोटे बम टारगेट के आसपास के इलाके को भारी नुकसान पहुंचाते हैं।

दागे जाने के दशकों बाद भी तबाही ला सकते हैं क्लस्टर बम
क्लस्टर बमों को कई मायने में परमाणु बमों से भी खतरनाक माना गया है, क्योंकि यह दागे जाने के बाद भी कई दशक बाद तक खतरे की वजह बन सकते हैं। यह बात सुनकर आप चौंक रहे होंगे, मगर यह सच है। दरअसल जब क्लस्टर बम दागे जाते हैं, तो उनमें से निकलने वाले कई छोटे-छोटे क्लस्टर बम बन जाते हैं और उनमें से कुछ बम बिना दगे ही जमीन पर पड़े रहते हैं। यह बम अगले चार-पांच दशकों में कभी भी दग सकते हैं। यह कभी मृत नहीं होते। जैसे ही इनके ऊपर किसी का पैर या कोई हल्का वजन भी पड़ता है, उनमें विस्फोट हो जाता है। ऐसे में यह बड़ी तबाही मचा सकते हैं। इसका सर्वाधिक खतरा उस वक्त होता है, जब युद्ध खत्म होने क बाद प्रभावित लोग और वाहन लौटते हैं। ऐसे लोग जब अपने मकान का पुननिर्माण कर रहे होते हैं, खेतों में काम कर रहे होते हैं या फिर रास्ते में कहीं जा रहे होते हैं तो यदि कोई भी बिना फटा बम ऐसी जगहों पर पड़ा रहता है तो वह अचानक फट जाता है और भारी तबाही मचा सकता है।

रूस और जर्मनी ने किया था दुनिया में सबसे पहले क्लस्टर बमों इस्तेमाल
क्लस्टर बमों का सबसे पहला इस्तेमाल रूस और जर्मनी की सेना ने किया था। यह द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान दागे गए थे। इससे दुश्मन को भारी नुकसान झेलना पड़ा था। अब दुनिया भर में 200 से अधिक प्रकार के क्लस्टर बम बनाए जा चुके हैं। हालांकि इनके इस्तेमाल पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध है। 100 से ज्यादा देश क्लस्टर बमों के इस्तेमाल गको रोकने के लिए संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। अब 36 अफ्रीकी देशों ने भी दुनिया के अनेक हिस्सों में क्लस्टर बम के इस्तेमाल की निंदा करते हुए इस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की है। क्लस्टर बमों के इस्तेमाल से हताहतों की संख्या लगातार बढ़ी है। इनमें बच्चे और महिलाएं भी हैं।

इस्तेमाल और उत्पादन पर है अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध
क्लस्टर बम पर हुई अंतरराष्ट्रीय संधि के मुताबिक क्लस्टर बमों के इस्तेमाल और उसके उत्पादन व भंडारण समेत खरीद-बिक्री तक पर प्रतिबंध लगाया गया है। 112 देश इस संधि पर पहले ही हस्ताक्षर कर चुके हैं। यह अंतरराष्ट्रीय कानून पूरी दुनिया में 2010 से लागू किया जा चुका है। मगर चीन, अमेरिका, रूस, इजरायल, इराक, वियतनाम, अफगानिस्तान, पाकिस्तान जैसे देशों ने अभी इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है। भारत भी अभी इस संधि का हिस्सा नहीं है। क्लस्टर बमों को एक छोटे कनस्तर में पहले भर दिया जाता है। फिर उस कनस्तर को जब विमान से ज़मीन पर गिराया जाता है तो ये फट जाता है। फिर उनमें से छोटे-छोटे बम एक बड़े इलाक़े में फैल जाते हैं जो ज़मीन पर जाकर फट जाते हैं। कुछ बिना फटे निर्जन स्थानों पर पड़े रहते हैं जो बाद में किसानों, राहगीरों और आम नागरिकों की आने वाले दशक में कभी भी जान ले सकते हैं। इसलिए इस पर प्रतिबंध की जरूरत महसूस की गई। हाल के दशकों में कम से कम 24 देशों में क्लस्टर बमों का प्रयोग किया गया है।

अमेरिका ने यूक्रेन को दिया क्लस्टर बम
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान पिछले कुछ माह में जेलेंस्की कई बार रूसी राष्ट्रपति पुतिन की सेना पर क्लस्टर बमों के इस्तेमाल की आशंका जताने के साथ आरोप भी लगा चुके हैं। मगर रूस ने हमेशा इन आरोपों को खारिज किया है। मगर अब अमेरिका ने यूक्रेन को काफी संख्या में क्लस्टर बमों का जखीरा भेजा है। इससे रूस के राष्ट्रपति पुतिन बेहद अक्रोश में आ गए हैं। पुतिन ने अमेरिका और यूक्रेन को धमकाते हुए चेताया है कि कीव ने यदि भूल से भी ऐसी गलती की तो रूस के पास क्लस्टर बमों का जखीरा मौजूद है। फिर उसका बच पाना मुश्किल होगा। रूस की ओर से कहा गया है कि अभी तक हमने इन क्लस्टर बमों का इस्तेमाल नहीं किया है, लेकिन यूक्रेन ने कोई गलती की तो उसे कड़ा जवाब दिया जाएगा।

भारत भी है क्लस्टर बमों का उत्पादक
रूस, अमेरिका, चीन और इजरायल की तरह भारत भी क्लस्टर बमों के बड़े उत्पादकों में शामिल है। यह बात अलग है कि भारत ने इन बमों को अपनी रक्षा के लिहाज से बना रखा है। इसके अलावा इनका इस्तेमाल बारूदी सुरंगों को नष्ट करने में ही ज्यादातर किया जाता है। भारत शांति प्रिय देश है। इसलिए उससे किसी दूसरे देश को तब तक खतरा नहीं है कि जब तक उसके ऊपर कोई हमला नहीं किया जाए। भारत ऐसे क्लस्टर बमों के इस्तेमाल नहीं करने को प्रतिबद्ध है, लेकिन हमले की स्थिति में वह आत्मरक्षा के लिए इन्हें दाग सकता है।

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