चीन की तरफ से पिछले दिनों एक नया मानचित्र सामने आया था। इस मानचित्र में चीन ने कुछ ऐसे इलाकों को अपने देश की सीमा में दिखाया था, जिसे लेकर उसके पड़ोसियों ने एतराज जताया था। मलेशिया से लेकर भारत तक, जापान से लेकर ताइवान तक, सबसे उसके नए नक्शे को पूरी तरह खारिज कर दिया है। एक्सपर्ट्स की मानें तो चीन एक ऐसे बिगड़ैल बच्चे की तरह बर्ताव कर रहा है जो अपने साथ खेलने वाले बच्चों की चीजें छीनने की कोशिश करता रहता है। कुछ साल पहले तक तो बाकी के मुल्क चीन की इस दादागिरी के खिलाफ बहुत कुछ नहीं बोलते थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।
पड़ोसी देशों ने चीन के नए नक्शे को किया खारिज
चीन के नए नक्शे के खिलाफ आवाज उठाने में जापान, फिलीपींस, मलेशिया, वियतनाम और ताइवान ने भी भारत का साथ दिया है। इन सभी ने चीन के नए मानचित्र को खारिज करते हुए कहा है कि यह यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिश है। सवाल यह उठता है कि चीन की तरफ से ऐसी हरकतें अचानक बढ़ क्यों गई है? आखिर चीन दक्षिणी चीन सागर से लेकर डोकलाम और लद्दाख तक अपने पड़ोसियों से उलझता क्यों जा रहा है? क्या चीन के निशाने पर कुछ और है और उसने निगाहें कहीं और कर रखी हैं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो इन दिनों लगातार उठ रहे हैं।
आंतरिक समस्याओं से ध्यान भटकाने की कोशिश
एक बात तो तय है कि चीन इन दिनों कई मुश्किलों से घिरा हुआ है। एक तरफ देश के आर्थिक हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं तो दूसरी तरफ राष्ट्रपति शी जिनपिंग आलोचनाओं में घिरे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में तो यहां तक कहा जा रहा है कि पिछले कई दशकों से चीन पर एकछत्र राज कर रही कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने जिनपिंग को मुल्क की हालत के लिए जमकर फटकार लगाई है। माना जा रहा है कि आंतरिक समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए ही जिनपिंग की सरकार नए नक्शे जारी करने और बॉर्डर पर पड़ोसियों से उलझने जैसे खेल में लगी हुई है।
तेजी से बढ़ती इकॉनमी की रफ्तार को लगा ब्रेक
कुछ साल पहले तक चीन की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही थी। उसकी तेजी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ साल पहले तक चीन की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही थी। उसकी तेजी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीन की जीडीपी 2002 में जहां 1.66 ट्रिलियन डॉलर थी, वह 20 सालों में बढ़ते-बढ़ते 2022 में लगभग 18 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई। हालांकि पिछले कुछ सालों में इसकी रफ्तार पर ब्रेक लग गई और दिक्कतें यहीं से शुरू हुईं। आज हालत यह है कि कभी 2 डिजिट में बढ़ रही चीन की GDP अब 6 फीसदी की रफ्तार के आसपास रह गई है।
बढ़ती हुई बेरोजगारी ने भी चीन को दी टेंशन
एक समय दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब कहा जाने वाले चीन में इन दिनों बेरोजगारी की समस्या ने भी विकराल रूप धारण कर लिया है। इस भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीन ने युवा बेरोजगारी के आंकड़े जारी करना बंद कर दिया है। इन आंकड़ों को देश की मंदी के प्रमुख संकेत के रूप में देखा था। बता दें कि जून में चीन के शहरी क्षेत्रों में 16 से 24 वर्ष के युवाओं के लिए बेरोजगारी दर 20 फीसदी से भी ज्यादा की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई। आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि चीन की कुल बेरोजगारी दर जुलाई में बढ़कर 5.3 फीसदी हो गई है।
क्या अपनी हरकतों से बाज आएगा ड्रैगन?
अंत में सवाल यह उठता है कि क्या चीन एक बिगड़ैल बच्चे की अपनी भूमिका से बाहर आएगा। इसका जवाब यही कि फिलहाल इसकी संभावना नजर नहीं आ रही। चीन के अंदरूनी हालात जैसे-जैसे जिनपिंग के नियंत्रण से बाहर होते जाएंगे, वैसे-वैसे वह सीमा पर छेड़छाड़ जैसी हरकतें करते नजर आएंगे। हालांकि यह भी तय है कि यदि चीन के अंदरूनी मामले जल्दी नहीं सुलझे तो आने वाले वक्त में जिनपिंग के सारे ऐसे दांव बेकार होने हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आने वाला वक्त चीन के साथ-साथ खुद चीनी राष्ट्रपति के भविष्य के लिए बेहद चुनौतियों भरा है।