Friday, November 22, 2024
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Explainer: चीन UAE के साथ जंगी अभ्यास के बहाने खाड़ी देशों में तोड़ रहा अमेरिकी वर्चस्व, जानिए कैसे बदल रहे समीकरण?

खाड़ी देशों पर अमेरिका का परंपरागत वर्चस्व है। इस दबदबे को चीन तोड़ने की कोशिश में है। यूएई और चीन पहली बार युद्धाभ्यास कर रहे हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि समीकरण बदल रहे हैं। जिनपिंग जहां मिडिल ईस्ट में अपनी पैठ बढ़ा रहे हैं, वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन अपनी पकड़ बरकरार रखने के लिए कूटनीतिक कवायदें कर रहे हैं।

Written By: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Updated on: August 02, 2023 10:03 IST
जिनपिंग Vs बाइडन: खाड़ी देशों पर दिलचस्प है वर्चस्व की लड़ाई- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV जिनपिंग Vs बाइडन: खाड़ी देशों पर दिलचस्प है वर्चस्व की लड़ाई

China-America-Middile East: चीन अब मिडिल ईस्ट में अपनी दखल और ज्यादा बढ़ाता जा रहा है। पहले दक्षिण एशियाई देश, फिर अफ्रीकी देशों के बाद अब चीन मिडिल ईस्ट के देशों में अपनी पैठ बढ़ाने और अमेरिका का वर्चस्व तोड़ने की कवायद में लगातार जुटा हुआ है। गरीब देशों को तो वह कर्ज के जाल में फंसाता है, वहीं यूएई, अरब, ईरान जैसे देशों के साथ वह अपने कारोबारी और रणनीतिक संबंध बढ़ाकर अमेरिका को किनारा करने की जुगत में जुटा हुआ है। यूएई और चीन के बीच जंगी अभ्यास को इसी कड़ी के रूप में देखा जा सकता है। ये पहली बार है जब चीन और यूएई साथ में मिलकर जंगी अभ्यास करेंगे।

चीन ने मिडिल ईस्ट के देशों के साथ संबंध बढ़ाकर दो बातें साफ कर ​दी हैं। पहला तो चीन द्वारा इन अमीर देशों के साथ वह कारोबारी संबंध बढ़ाकर, तेल जरूरतों को पूरा करने और ऐसे रणनीतिक संबंध बनाने की कोशिश है, जिससे अमेरिका को तगड़ा झटका लग सकता है। दूसरा, मिडिल ईस्ट के देशों में अमेरिका की पकड़ और उसके वर्चस्व को सीधी चुनौती अब चीन की ओर से मिलने लगी है। यह बात अमेरिका भी समझता है।

यूएई के 90 फीसदी हथियार अमेरिकी, पर जंगी अभ्यास चीन के साथ

शिया देश ईरान और सुन्नी देश सऊदी अरब के बीच दोस्ती कराकर चीन ने अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। चीन इसी हौसले के दम पर अब खाड़ी देशों में अपनी पैठ और पकड़ दोनों मजबूत कर रहा है। यही कारण है कि चीन संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई के साथ पहली बार हवाई अभ्यास करने जा रहा है। यूएई को रक्षा क्षेत्र में अमेरिका का करीबी समझा जाता है। चीन उस यूएई के साथ जंगी अभ्यास कर रहा है, जिसकी सेना में शामिल 90 फीसदी हथियार अमेरिकी हैं। ऐसे में चीन के साथ इस युद्धाभ्यास को यूएई की रक्षा नीति में बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है।

मिडिल ईस्ट में अमेरिका अपनी पकड़ कमजोर नहीं करना चाहता

जहां चीन खाड़ी देशों में अपनी पैठ मजबूत करअमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे रहा है, वहीं अमेरिका ने खाड़ी देशों में चीन की बढ़ती पकड़ को कमजोर करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। बाइडन प्रशासन के कई बड़े अधिकारी खाड़ी देशों में मोर्चा संभाले हुए हैं। जब अरब और ईरान के बीच चीन ने दोस्ती कराई थी, तब आनन फानन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन सउदी अरब पहुंच गए थे। साथ ही अमेरिकी प्रशासनिक अधिकारियों और मंत्रियों को भी अरब से 'डैमेज कंट्रोल' करने के लिए भेजा था। अरब, यूएई, कुवैत जैसे अमीर देश अब तक अमेरिका के परंपरागत दोस्त रहे हैं। लेकिन हाल के समय में समीकरण बदलने लगे हैं।

जानिए चीन की खाड़ी देशों में क्यों बढ़ रही दिलचस्पी?

  1. पिछले दशक में अमेरिका की प्राथमिकता आतंकवाद के खिलाफ युद्ध था। अमेरिका ने आईएसआईएस से टकराव लिया। इजरायल के पक्ष में अपनी आवाज उठाई। ईरान से बैर लिया। इन सबके बाद अब अमेरिका का ध्यान मिडिल ईस्ट से हटकर चीन की बढ़ती ताकत और यूक्रेन व रूस की जंग की ओर लग गया है। इसी का नतीजा है कि 2022 के बाद से खाड़ी के देशों में अमेरिका की स्थिति कमजोर हुई है। इसी का फायदा उठाकर चीन मिडिल ईस्ट के देशों के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ कर रहा है।
  2. चीन आज अरब देशों से तेल का आज भी बड़ा खरीदार है। भले ही वह रूस और यूक्रेन की जंग के बीच रूस से व्यापक तेल खरीद रहा हो, पर चीन को तेल का स्थाई समाधान मिडिल ईस्ट में ही दिखता है। हालांकि अमेरिका ने मध्य-पूर्व से अभी बोरिया-बिस्तर नहीं समेटा है। अमेरिका आसानी से अपना वर्चस्व खाड़ी देशों से नहीं तोड़ना चाहता। यही कारण है कि खाड़ी के देश हालात को देखते हुए अपनी सुरक्षा से जुड़े विकल्पों को विस्तार दे रहे हैं।
  3. चीन ने खाड़ी देशों के नजदीक समुद्री डकैती विरोधी अभियान, वाणिज्यिक बंदरगाहों का निर्माण और हथियारों की बिक्री के जरिए अपनी उपस्थिति को लगातार बढ़ा रहा है। पिछले साल दिसंबर में पहले चीन-अरब राज्य शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन में शी जिनपिंग ने मुख्य भाषण दिया था। इस दौरान अरब लीग के 21 सदस्य और चीन के बीच अंतरराष्ट्रीय शांति स्थापना, समुद्री सुरक्षा और संयुक्त अभ्यास सहित अधिक सहयोग पर सहमति बनी थी।
  4. उधर, सऊदी अरब भी चीन के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंधों को बढ़ा रहा है। खाड़ी के देशों से तेल खरीदने में चीन बड़ा ग्राहक है। मध्य-पूर्व से अमेरिका की कथित वापसी की धारणा के बीच सऊदी अरब भी नए विकल्पों की ओर बढ़ रहा है। जीसीसी यानी गल्फ कॉपरेशन काउंसिल और चीन के बीच मुक्त बाजार व्यवस्था की बात चल रही है।
  5. ग्लोबल टाइम्स के अनुसार हाल के वर्षों में चीन और जीसीसी देशों के बीच राजनीतिक पारस्परिक भरोसा और मजबूत हुआ है। इस बात को खुद चीनी विदेश मंत्री वांग यी मान चुके हैं। वे कह चुके हैं कि जीसीसी के साथ चीन का व्यावहारिक सहयोग भी गहरा हुआ है।

जंगी अभ्यास: चीनी ड्रोन और फाइटर हैलिकॉप्टर भी हैं यूएई के पास

यूएई और चीन के बीच होने वाले युद्धभ्यास पर एक बार फिर वापस आते हैं। यूएई अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल तो करता ही है, लेकिन अमीराती सेना कई अमेरिकी हथियारों और उपकरणों का भी उपयोग करती है। मिसाल के तौर पर, थाड एंटी-मिसाइल सिस्टम और एएच-64 अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टर शामिल हैं। वहीं, यूएई की सेना के उपयोग किए जाने वाले मुख्य चीन निर्मित हथियार विंग लूंग 1 और विंग लूंग 2 जैसे लड़ाकू ड्रोन हैं। इन्हें चेंग्दू एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री ग्रुप द्वारा बनाया गया है, जो अप्रत्यक्ष रूप से चीनी सरकार के स्वामित्व वाली एक एयरोस्पेस फर्म है। चीन और यूएई के इस जंगी अभ्यास पर अमेरिका की पूरी नजर रहेगी। देखना यह है कि अमेरिका का अगला कदम क्या होगा?

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