Saturday, November 16, 2024
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सूरत में चुनाव से पहले ही जीत गए भाजपा के मुकेश दलाल, कैसे बिना वोटिंग के जीत जाते हैं कैंडिडेट?

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग हो चुकी है और अगले छह चरणों में चुनाव होना बाकी है। इससे पहले बिना वोटिंग के ही सूरत सीट से भाजपा के उम्मीदवार ने जीत दर्ज कर ली है। आखिर कैसे बिना चुनाव के जीत जाते हैं उम्मीदवार? जानिए-

Written By: Kajal Kumari @lallkajal
Updated on: April 23, 2024 13:45 IST
how candidates win before waiting- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO वोटिंग से पहले कैसे जीत जाते हैं उम्मीदवार

सूरत में वोटिंग से पहले ही भाजपा के उम्मीदवार मुकेश दलाल ने सोमवार, 22 अप्रैल को चुनाव जीत लिया और जैसे ही ये जानकारी सबके सामने आई कि मुकेश दलाल को निर्विरोध चुन लिया गया है, उन्हें बधाइयां मिलनी शुरू हो गईं। हो भी क्यों ना, मुकेश दलाल पिछले 12 साल में निर्विरोध लोकसभा चुनाव जीतने वाले पहले उम्मीदवार बन गए हैं। साल 1951 से अब तक के चुनाव में बिना किसी चुनावी जंग में उतरे संसदीय चुनाव जीतने वालों की संख्या करीब 35 हो गई है।

बता दें कि इस बार का लोकसभा चुनाव सात चरणों में हो रहा है और पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को संपन्न हो चुका है। चुनाव संपन्न होने से पहले ही बीजेपी ने इस जीत के साथ अपना खाता खोल लिया है। अब फाइनल नतीजे क्या होंगे ये तो किसी को नहीं पता लेकिन मुकेश दलाल की जीत के साथ ही भाजपा ने पहला मुकाम हासिल कर लिया है। सूरत लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर नीलेश कुंभानी चुनावी मैदान में उतरे थे, लेकिन डिस्ट्रिक रिटर्निंग ऑफिसर ने प्रथम दृष्टया उनके नामांकन पत्र की जांच में पाया कि प्रस्तावकों के हस्ताक्षर में कुछ गलतियां थीं और इस कारण चुनाव आयोग ने नीलेश कुंभानी का नामांकन रद्द कर दिया था।

इसके साथ ही बड़ी बात ये हुई कि सूरत लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले बाकी अन्य उम्मीदवारों ने भी सोमवार, 22 अप्रैल को अपना नामांकन पत्र वापस ले लिया, जिसकी वजह से बीजेपी के उम्मीदवार मुकेश दलाल को निर्विरोध रूप से विजेता घोषित कर दिया गया है। इससे पहले बीजेपी के 10 उम्मीदवारों ने अरुणाचल प्रदेश में निर्विरोध जीत दर्ज की थी।

इन उम्मीदवारों के नामांकन भी हुए निरस्त

बरेली लोकसभा सीट से बसपा प्रत्याशी छोटेलाल गंगवार का नामांकन पत्र खारिज हो गया है। 20 अप्रैल को नामांकन पत्रों की जांच में बसपा प्रत्याशी के नामांकन पत्रों में त्रुटि मिलने के कारण इसे खारिज कर दिया गया है। 

कोकराझार से लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ने जा रहे सांसद नबा कुमार सरानिया का नामांकन पत्र भी 21 अप्रैल को रद्द कर दिया गया। रिटर्निंग ऑफिसर प्रदीप कुमार द्विवेदी ने बताया कि सरानिया का नामांकन पत्र अवैध पाया गया और इस वजह से यह कार्रवाई की गई। बता दें कि गण सुरक्षा पार्टी (जीएसपी) के प्रमुख सरानिया 2014 से कोकराझार सीट पर निर्दलीय सांसद हैं।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने प्रदेश की 29 में से खजुराहो सीट समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ी थी। यहां से समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार मीरा दीपनारायण यादव ने नामांकन भरा था जिनका नामांकन रद्द हो गया है। उनके नामांकन पत्र रद्द होने की वजह ये बताई जा रही है कि नामांकन फॉर्म पर प्रत्याशी के दो जगह हस्ताक्षर होते हैं, जिसमें से एक जगह मीरा यादव ने हस्ताक्षर नहीं किए थे। मतदाता पहचान पत्र की सत्यापित प्रति की जगह पुरानी प्रति दे दी गई थी। इसके अलावा, कई निर्दलीय और गैर मान्यता प्राप्त दलों के उम्मीदारों के भी नामांकन रद्द कर दिए गए हैं।

बिना वोटिंग के 1951 से अब तक 35 उम्मीदवार जीते

ये पहली बार नहीं है कि चुनाव से पहले मुकेश दलाल ने जीत दर्ज की है, साल 2012  में समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार डिंपल यादव ने कन्नौज लोकसभा उपचुनाव निर्विरोध रूप से जीता था, यह सीट अखिलेश यादव के यूपी के सीएम बनने के बाद खाली हो गई थी। इससे पहले वाईबी चव्हाण, पी.एम. सईद, एससी जमीर, फारूख अब्दुल्ला जैसे उम्मीदवारों ने भी जीत हासिल की थी और नौ कैंडिडेट ऐसे थे जिन्होंने उपचुनाव में वोटिंग से पहले ही जीत दर्ज की थी।

कौन नहीं लड़ सकता है चुनाव

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 84-ए के अनुसार जो व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है, उसे चुनाव लड़ने का कोई अधिकार नहीं है। लोकसभा, विधानसभा चुनाव में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी की न्यूनतम उम्र 25 वर्ष निर्धारित की गई है, इससे कम उम्र का शख़्स चुनाव नहीं लड़ सकता है। इसके साथ ही लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 4(डी) के अनुसार, जिस व्यक्ति का नाम संसदीय क्षेत्र की मतदाता सूची में नहीं है, वह चुनाव नहीं लड़ सकता है। साथ ही वह व्यक्ति जिसे किसी मामले में दो साल या उससे अधिक की सज़ा हुई है, वह चुनाव नहीं लड़ सकता है।

नामांकन पत्र दाखिल करने के क्या हैं नियम

चुनाव लड़ने के लिए किसी भी उम्मीदवार को नामांकन पत्र भरना होता है। उसके प्रस्तावक नामांकन पत्र भरने के बाद रिटर्निंग ऑफिसर या चुनाव की अधिसूचना में निर्दिष्ट सहायक रिटर्निंग ऑफिसर को सौंप सकते हैं। किसी भी उम्मीदवार को अपना नामांकन पत्र निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि से पहले या उससे पहले पहुंचाना आवश्यक है।

चुनाव आयोग के मुताबिक, उम्मीदवार को नामांकन पत्र दाखिल करते समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए। इसके साथ ही रिटर्निंग अधिकारी को नामांकन प्रस्तुत करते समय उसी समय प्रारंभिक जांच करनी चाहिए और यदि कोई प्रथम दृष्टया गलती उसे दिखाई देती है, तो उसे उम्मीदवार के ध्यान में लाना चाहिए। नामांकन पत्र में लिपिकीय या मुद्रण संबंधी गलतियों को नजरअंदाज किया जा सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उम्मीदवार को नामांकन पत्र दाखिल करते समय सावधानी नहीं बरतनी चाहिए और रिटर्निंग ऑफिसर को ऐसी गलतियों को उम्मीदवार के ध्यान में नहीं लाना चाहिए।

क्यों निरस्त हो जाते हैं नामांकन पत्र

प्रत्याशी का सिक्योरिटी डिपॉजिट जमा किया होना चाहिए।
प्रत्याशी के असली हस्ताक्षर होने चाहिए।
प्रस्तावक के हस्ताक्षर, असली हस्ताक्षर होने चाहिए और मतदाता सूची में उसका नाम होना चाहिए। 
यदि यह साबित हो जाए कि प्रत्याशी के बदले किसी और ने हस्ताक्षर किए हैं तो नामांकन खारिज हो जाता है।

 

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