Babur Road Name Change Explainer: दिल्ली में शनिवार की सुबह सबसे ज्यादा सुरक्षित माने जाने वाले इलाके यानी केंद्रीय सचिवालय के करीब एक घटना घटती है। दरअसल यहां बाबर रोड के साइन बोर्ड पर हिंदू सेना द्वारा एक पोस्टर चिपका दिया गया। बाबर रोड के साइन बोर्ड पर अयोध्या मार्ग का स्टीकर चिपका दिया गया। ये सड़क ऐतिहासिक है। बाबर के नाम पर या औरंगजेब के नाम पर सड़क हो या न हो। ये तय करना सरकार और कानून का काम है। लेकिन अब नाम बदलने के नाम पर बहस छिड़ गई है। लोग बात कर रहे हैं कि नाम बदलना चाहिए या नहीं? क्या नाम बदलना होगा? लेकिन इन सब तमाम बहसों के बीच क्या आपको पता है कि किसी भी सड़क का नाम बदलने की क्या प्रक्रिया है। आखिर किसके पास इसके लिए सिफारिश करनी पड़ती है। आज हम आपको सबकुछ बताने वाले हैं।
क्या है नाम बदलने की पूरी प्रक्रिया?
अगर किसी सड़क का नाम बदलना होता है तो पहले इसकी रिक्वेस्ट उस नगरपालिका या महापालिका के पास भेजी जाती है, जिस स्थान पर वह सड़क मौजूद है। उदाहरण के लिए अगर बाबर रोड का नाम बदलना है, तो इसके लिए नई दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में एक रिक्वेस्ट दाखिल करनी पड़ती है। सरकार, संगठन या किसी भी आम नागरिक की तरफ से यह रिक्वेस्ट दायर नहीं की जा सकती। इसके बाद नाम बदलने की रिक्वेस्ट के एजेंडे को एनडीएमसी काउंसिल के सामने रखा जाता है। इस काउंसिल में कुल 13 सदस्य होते हैं जिसमें एक चेयरपर्सन होते हैं। अगर काउंसिल सड़क के नाम को बदलने के प्रस्ताव पर सहमति दे देती है तो इसे पास करने के लिए दिल्ली सरकार के अर्बन डेवलपमेंट डिपार्टमेंट के रोड नेमिंग अथॉरिटी को भेजा जाता है। इसके बाद अगर रोड नेमिंग अथॉरिटी इसपर सहमति दे देती है तो इसके लिए एक लेटर पोस्टमास्टर जनरल दिल्ली को भेजा जाता है। एनडीएमसी द्वारा यह लेटर भेजकर यह बताया जाता है कि सड़क के नाम को बदलने की अनुमति मिल गई है।
नाम बदलने की रिक्वेस्ट कब स्वीकार या अस्वीकार होती है?
एनडीएमसी के दिशानिर्देश के मुताबिक नाम बदलने को एक अपवाद माना गया है। एनडीएमसी ने नाम बदलने की लेकर कुछ मापदंड तय किए हैं। इन मापदंडों को अगर कोई रिक्वेस्ट पूरा करता हो तभी किसी सड़क का नाम बदलेगा। इस मापदंड के मुताबिक नाम बदलने के लिए जिस भी नाम को भेजा जाता है। उसका इतिहास में जिक्र और इतिहास से रिश्ता होना चाहिए। नाम बदलने के नाम पर जिस नाम का सुझाव दिया गया है वो इतिहास में मौजूद किसी भी शख्स को इतिहास से वंचित नहीं करना चाहिए। साथ ही रिक्वेस्ट में यह भी देखा जाता है कि जिसके नाम पर सड़क का नाम रखा जाना है,क्या उस शख्स के बारे में लोग जानते हैं या उन्हें पहचानते हैं। नया सुझाया गया नाम इस तरह का नहीं होना चाहिए जो लोगों या पोस्ट ऑफिस के बीच विवाद की स्थिति पैदा करे। साथ ही सुझाए गया नाम इतिहास से लोगों को वंचित नहीं करता हो। अगर इन मापदंडों का पालन किया जाता है तो किसी भी सड़क के नाम को बदलने की अर्जी को स्वीकार कर लिया जाता है।
पहले भी बदले जा चुके हैं सड़कों के नाम
आजादी के बाद यह पहली बार नहीं है जब किसी सड़क के नाम को बदलने की मांग की गई है। सड़कों का नाम पहले भी बदला जा चुका है। आजादी के बाद से यह लगातार होता रहता है। दिल्ली में अंग्रेजों के नाम वाली तमाम सड़कों का नाम बदला गया है और भारतीय इतिहास में दर्ज लोगों के नाम पर रखे गए हैं। उदाहरण के लिए अंग्रेजों ने दिल्ली के बसाया। उस दौरान राष्ट्रपति भवन को वायसराय हाउस कहा जाता था। उस तरफ जाने वाले सड़क का नाम किंग्स वे रखा गया था। लेकिन अब इस रास्ते का नाम बदलकर राजपथ रखा गया है। हालांकि मोदी सरकार ने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ करवा दिया। इसी मार्ग पर 26 जनवरी को हर साल परेड निकाली जाती है।
बाबर रोड पर क्यों छिड़ी जंग
बाबर पहला मुगल आक्रांता था, जिसने भारत पर हमला किया और दिल्ली पर कब्जा किया। इसके बाद बाबर के आदेश पर देशभर में हिंदुओं की हत्या की गई। मंदिरों को तोड़ा गया। धर्मांतरण कराया गया। इन सब कारणों से लोग बाबर को विदेशी हमलावर मानते हैं। इससे पहले मुगल आक्रांता औरंगजेब के नाम पर दिल्ली में एक सड़क थी, जिसका नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड कर दिया गया। इसी कारण बाबर रोड के नाम को भी बदलने की लगातार मांग होती रही है। बता दें कि बाबर रोड के साइन बोर्ड पर पहले भी स्टीकर चिपकाए जा चुके हैं। इससे पहले एक बार साइन बोर्ड पर कालिख पोत दी गई थी।