Thursday, November 21, 2024
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Explainer: भारत के बाद अब US, UK और फ्रांस में भी शुरू हुआ चुनावों का दौर; जानें यहां सत्ता बदली तो देश के साथ रणनीतिक साझेदारी पर क्या हो सकता है असर?

भारत के बाद अब अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन में भी राष्ट्रीय चुनावों का दौर आरंभ हो चुका है। ये तीनों ही देश भारत के प्रमुख रणनीतिक साझेदार हैं। विभिन्न सर्वे में अमेरिका से लेकर ब्रिटेन और फ्रांस तक में मौजूदा राष्ट्राध्यक्षों की वापसी की संभावना न के बराबर दिख रही है। हालांकि यहां सत्ता बदली तो भी संबंध स्थिर रहेंगे।

Written By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Updated on: June 30, 2024 13:49 IST
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों।- India TV Hindi
Image Source : AP अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों।

Explainer: भारत के बाद अब अमेरिका से लेकर ब्रिटेन और फ्रांस में भी चुनावों का दौर शुरू हो चुका है। ये तीनों ही देश भारत के अच्छे रणनीतिक साझेदार हैं। भारत में हुए लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी करके पूरी दुनिया को अपनी लोकप्रियता का एहसास कराया है। साथ ही स्थिर सरकार का संदेश विश्व के सभी देशों को देने में कामयाब हुए हैं। ऐसे में अमेरिका से लेकर ब्रिटेन और फ्रांस के अलावा अन्य देशों को भारत के साथ संबंधों में और प्रगाढ़ता आने की उम्मीद पहले की तरह कायम है। मगर अब US, UK और  फ्रांस में भी चुनावों का दौर चल पड़ा है। अगर इन देशों में सत्ता बदली तो भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी पर इसका क्या असर हो सकता है?...आइये आपको विस्तार से समझाते हैं। 

अमेरिका में 4 नवंबर को चुनाव

दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में आगामी 5 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। रिपब्लिकन पार्टी की ओर से डोनॉल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी से मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन का नाम राष्ट्रपति पद के लिए लगभग फाइनल हो गया है। आरंभ में जो बाइडेन पीएम मोदी से उतना गहराई से नहीं जुड़ पाए थे, जितना कि पूर्व राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप अपने रिश्तों को मजबूत कर सके थे। मगर जून 2023 में अमेरिका ने पीएम मोदी का ह्वाइट हाउस में ग्रैंड वेलकम करके और भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को गहरा करके दोनों देशों के रिश्तों की नींव को और भी मजबूत कर दिया। इसके बाद भारत-अमेरिका के रिश्ते लगातार मजबूत होते गए। हालांकि बाद में भारत-अमेरिका के रिश्तों में आंशिक उतार-चढ़ाव भी देखे गए। इसके बावजूद दोनों देशों के रिश्ते स्थिर रहे। 

अमेरिका में हो रहे राष्ट्रपति चुनावों से पहले विभिन्न सर्वे में डोनॉल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने की संभावनाएं दिख रही हैं। अगर ऐसा होता है तो भी भारत के संबंध अमेरिका के साथ सिर्फ स्थिर ही नहीं रहेंगे, बल्कि और अधिक मजबूत होंगे। पीएम मोदी और डोनॉल्ड ट्रंप की बहुत शानदार केमिस्ट्री है। "नमस्ते ट्रंप" को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति शायद ही कभी भूल पाएंगे। पीएम मोदी से ट्रंप इतने अधिक प्रभावित हुए थे कि उन्होंने प्रधानमंत्री की तर्ज पर ही अमेरिका में 2020 के चुनाव में अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा दे डाला था। 

ब्रिटेन में 4 जुलाई को चुनाव

ब्रिटेन के मौजूदा प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के साथ भारत के रिश्ते काफी अच्छे हैं। ऋषि सुनक भारतीय मूल से हैं, ऐसे में उनका लगाव भारत से बहुत अच्छा है। वह भारत की परंपराओं में विश्वास रखते हैं। खुद के हिंदू होने पर सार्वजनिक तौर पर गर्व करते हैं। भारतीय त्यौहारों में न सिर्फ रुचि रखते हैं, बल्कि उसे मनाते भी हैं। मंदिरों में पूजन-दर्शन भी करते हैं। यह भारत से उनके जुड़ाव को दर्शाता है। ऋषि सुनक के कार्यकाल में भारत-ब्रिटेन के रिश्तों में काफी मजबूती आई है। वह पीएम मोदी के अच्छे दोस्त भी हैं। मगर तमाम सर्वे में यहां इस बार प्रधानमंत्री ऋषि सुनक हारते हुए दिख रहे हैं। हालांकि उन्होंने ऐसे दौर में ब्रिटेन की सत्ता संभाली थी, जब उनका देश आर्थिक तंगी और महंगाई से जूझ रहा था। इन सबका सामना करते हुए उन्होंने देश को मुश्किल दौर से बाहर निकाला। ब्रिटेन भी अमेरिका की तरह ही भारत का प्रमुख रणनीतिक साझेदार है। अगर यहां सत्ता बदलती है तो रणनीतिक साझेदारी पर तो नहीं, लेकिन व्यापारिक और आर्थिक संबंधों में नकारात्मक असर हो सकता है। भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते के सबसे ज्यादा प्रभावित होने की आशंका है। 

फ्रांस में संसदीय चुनाव के लिए मतदान जारी

फ्रांस में संसदीय चुनाव के लिए पहले दौर का मतदान आज से जारी हो चुका है। फ्रांस भी भारत का अच्छा रणनीतिक साझेदार है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अच्छे दोस्त हैं। मगर इस यहां अनुमान जताया जा रहा है कि नाजी युग के बाद, सत्ता की बागडोर पहली बार राष्ट्रवादी एवं धुर-दक्षिणपंथी ताकतों के हाथों में जा सकती है। दो चरणों में हो रहे संसदीय चुनाव 7 जुलाई को समाप्त होंगे। चुनाव परिणाम से यूरोपीय वित्तीय बाजारों, यूक्रेन के लिए पश्चिमी देशों के समर्थन और वैश्विक सैन्य बल एवं परमाणु शस्त्रागार के प्रबंधन के फ्रांस के तौर-तरीके पर काफी प्रभाव पड़ने की संभावना है। हालांकि यहां सत्ता बदलने पर भी भारत-फ्रांस की रणनीतिक साझेदारी पर विपरीत असर बिलकुल नहीं पड़ेगा। भारत और फ्रांस के रिश्ते आरंभ से ही अच्छे रहे हैं। इसलिए आगे भी दोनों देशों के संबंध स्थिर रहने की संभावना है।

मैक्रों के हाथ से जा सकती है सत्ता

कई फ्रांसीसी मतदाता महंगाई और आर्थिक चिंताओं से परेशान हैं और वे राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के नेतृत्व से भी निराश हैं। फ्रांस में संसदीय चुनाव के लिए रविवार को सुबह आठ बजे मतदान शुरू हुआ और चुनाव परिणाम के शुरुआती रुझान रात आठ बजे आने की उम्मीद है। इस साल जून की शुरुआत में यूरोपीय संसदीय चुनाव में ‘नेशनल रैली’ से मिली करारी शिकस्त के बाद मैक्रों ने फ्रांस में मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी। ‘नेशनल रैली’ का नस्लवाद और यहूदी-विरोधी भावना से पुराना संबंध है और यह फ्रांस के मुस्लिम समुदाय की विरोधी मानी जाती है। चुनाव परिणाम संबंधी पूर्वानुमान के अनुसार, संसदीय चुनाव में ‘नेशनल रैली’ की जीत की संभावना है। वहीं मैक्रों के हाथ से सत्ता जा सकती है।

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