
आज राजस्थान दिवस है। आज से ठीक 76 साल पहले 30 मार्च, 1949 को 22 रियासतों को मिलाकर राजस्थान बनाया गया था। भारत के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल और उनके सचिव वी.पी. मेनन ने रियासतों के शासकों को विलय के लिए राजी करने में अहम भूमिका निभाई थी।
8 साल, 7 महीने और 14 दिन का लगा समय
इस विशाल राज्य को बनाने में 8 साल, 7 महीने और 14 दिन का लंबा समय लगा था। राजस्थान की 22 रियासतें भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण रही हैं, जो ब्रिटिश शासन के दौरान स्वतंत्र शासित क्षेत्रों के रूप में अस्तित्व में थीं।
इस तरह बना राजस्थान
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद इन रियासतों ने धीरे-धीरे भारतीय संघ में विलय कर लिया। इस तरह वर्तमान राजस्थान राज्य का निर्माण हुआ। इन 22 प्रमुख रियासतों की अलग पहचान रही है। इनमें राजस्थान के कई जिले वहां के रजवाड़े शामिल हैं।
शामिल हुईं ये 22 रियासतें
- जयपुर - यह सबसे बड़ी और प्रभावशाली रियासतों में से एक थी।
- जोधपुर - मारवाड़ क्षेत्र की प्रमुख रियासत।
- उदयपुर - मेवाड़ की ऐतिहासिक रियासत, जिसका शाही वंश बहुत पुराना है।
- बीकानेर - रेगिस्तानी क्षेत्र में स्थित एक समृद्ध रियासत।
- कोटा - हाड़ौती क्षेत्र की प्रमुख रियासत।
- बूंदी - अपनी कला और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध।
- अलवर - शाही इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जानी जाती है।
- धौलपुर - छोटी लेकिन महत्वपूर्ण रियासत।
- करौली - धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व वाली रियासत।
- भरतपुर - जाट शासकों द्वारा शासित एक शक्तिशाली रियासत।
- झालावाड़ - कोटा से अलग होकर बनी रियासत।
- बांसवाड़ा - आदिवासी बहुल क्षेत्र वाली रियासत।
- डूंगरपुर - भील जनजातियों के प्रभाव वाली रियासत।
- प्रतापगढ़ - दक्षिणी राजस्थान की एक छोटी रियासत।
- किशनगढ़ - अपनी चित्रकला शैली के लिए प्रसिद्ध।
- सिरोही - अरावली पर्वतमाला में स्थित रियासत।
- शाहपुरा - छोटी लेकिन स्वतंत्र रियासत।
- कुशलगढ़ - बांसवाड़ा के अंतर्गत एक छोटा क्षेत्र।
- लावा - जयपुर के अधीन एक छोटी रियासत।
- टोंक: पठान नवाबों द्वारा शासित, राजस्थान की एकमात्र मुस्लिम रियासत।
- निमराना - अलवर के निकट एक और छोटी रियासत।
- सवाई माधोपुर - रणथंभौर किले के लिए प्रसिद्ध।
ये रियासतें अपने शाही वैभव, संस्कृति, और इतिहास के लिए जानी जाती हैं। कुछ रियासतें बड़ी और शक्तिशाली थीं, जैसे जयपुर, जोधपुर, और उदयपुर, जबकि कुछ छोटी और कम प्रभावशाली थीं।
'राजपूतों की भूमि' है राजस्थान
राजस्थान की रियासतों में 'राजपूताना' का महत्व बहुत गहरा और ऐतिहासिक है। राजपूताना शब्द का अर्थ है 'राजपूतों की भूमि' और यह उस क्षेत्र को संदर्भित करता है जो वर्तमान राजस्थान के अधिकांश हिस्से को कवर करता था। यह नाम ब्रिटिश काल में प्रचलित हुआ, जब इस क्षेत्र में 20 से अधिक राजपूत शासित रियासतें थीं।
राजपूतों वंशों ने स्थापित किए थे अपने छोटे-छोटे राज्य
राजपूताना का इतिहास मध्यकाल से शुरू होता है। जब राजपूत वंशों ने इस क्षेत्र में अपने राज्य स्थापित किए। ये वंश, जैसे सिसोदिया (उदयपुर), राठौड़ (जोधपुर), कछवाहा (जयपुर), और भाटी (जैसलमेर), अपनी वीरता, शौर्य, और स्वतंत्रता के लिए प्रसिद्ध थे। इन रियासतों ने मुगलों और अन्य आक्रमणकारियों के खिलाफ लंबे समय तक संघर्ष किया, जिसने राजपूताना को एक योद्धा संस्कृति का प्रतीक बनाया।
- राजस्थान की अधिकांश रियासतों पर राजपूत राजवंशों का शासन था।
- उदयपुर (मेवाड़): सिसोदिया वंश ने राणा प्रताप जैसे वीर योद्धाओं के साथ मुगलों के खिलाफ अपनी स्वतंत्रता की रक्षा की।
- जोधपुर (मारवाड़): राठौड़ वंश ने विशाल रेगिस्तानी क्षेत्र पर शासन किया और अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया।
- जयपुर: कछवाहा वंश ने मुगलों के साथ गठजोड़ कर अपनी रियासत को समृद्ध बनाया।
- इन राजपूत शासकों ने न केवल शासन किया, बल्कि कला, संस्कृति, और वास्तुकला को भी बढ़ावा दिया, जैसे कि विशाल किले (मेहरानगढ़, चित्तौड़गढ़, कुम्भलगढ़) और महल।
राजपूतों ने राजस्थान को दी अलग पहचान
राजपूताना ने राजस्थान को उसकी विशिष्ट पहचान दी। यहां की लोक कथाएं, गीत, नृत्य (जैसे घूमर), और त्योहार राजपूत परंपराओं से प्रभावित हैं। राजपूतों की वीरता और बलिदान की कहानियां, जैसे पन्ना धाय का बलिदान या रानी पद्मिनी की जौहर की घटना, आज भी लोगों के बीच जीवित हैं।
पर्यटन, किलों, महलों और यहां का शाही इतिहास
देश को अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिलने के बाद जब ये रियासतें भारतीय संघ में विलय हुईं, तो राजपूताना की पहचान ने राजस्थान को एक अनूठा राज्य बनाया। आज भी राजस्थान का पर्यटन, जो इसके किलों, महलों, और शाही इतिहास पर आधारित है। राजपूताना की विरासत से ही प्रेरित है। राजपूताना का प्रभाव यहां की भाषा (राजस्थानी), परंपराओं, और सामाजिक संरचना में भी देखा जा सकता है।