दूरदर्शन पर दिखाए जा रहे ऐतिहासिक धारावाहिक रामायण में रावण वध हो चुका है और अब सीता माता राम के पास लौट कर आई हैं। कहा जाता है कि श्रीराम ने रावण की कैद में रही सीता की परीक्षा के लिए अग्निपरीक्षा ली थी और इस परीक्षा में मां सीता पूरी तरह सफल हुई थी। सीता की अग्निपरीक्षा को लेकर सदियों से श्रीराम जैसा मर्यादा पुरषोत्तम राम की भी आलोचना होती रही है। लेकिन रामानन्द सागर की रामायण में इस बात को सिरे से नकार दिया गया है कि सीता ने कोई अग्निपरीक्षा दी थी।
रामानन्द सागर की रामायण में दिखाया गया है कि दुराचारी रावण कभी सीता का हरण नहीं कर पाया। दरअसल ब्रह्माजी को पहले से ही भाग्य का खेल पता था। वो जानते थे कि किस समय पर रावण अपनी बुद्धि का त्याग कर सीता माता का हरण करेगा और कब ये हरण उसकी और उसके वंश के खात्मे का कारण बनेगा। इसीलिए हरण की घटना से ऐन पहले ब्रह्मा जी ने सीता माता को अग्निदेव के हवाले कर दिया था। अग्निदेव ने सीता माता को अपने सुरक्षाचक्र में रखकर कुटिया से गायब कर दिया। वहां पर सीता माता के प्रतिबिंब को रखा गया।
रावण ने असल में सीता माता का नहीं बल्कि उनके प्रतिबिंब का हरण किया। इसका संकेत इस बात से मिलता है कि जब रावण ने बलपूर्वक सीता को पकड़ कर रथ में बिठाया तो सीता के पतिव्रत धर्म के मुताबिक रावण को जल कर भस्म हो जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि रावण द्वारा हरी गई सीता असल सीता नहीं बल्कि उसका प्रतिबिंब थी।
रावण वध के बाद श्रीराम ने विभीषण जी से कहा कि आप लंका जाकर सीता को ले आइए। विभीषण अशोक वाटिका में जाकर सीता से मिले औऱ कहा कि आप चूंकि काफी दिन से अस्त व्यस्त हैं और इतने लंबे अंतराल के बाद प्रभु श्रीराम से मिल रही हैं तो थोड़ा खुद को ठीक कर लीजिए। सीता ने खुद को भली भांति सजा लिया।
लेकिन जब सीता राम से मिली तो राम ने विभीषण से कहा कि सीता को ले जाएं और वापस उन्हीं वस्त्रों में लाएं जिनमे उनका हरण हुआ था। राम चाहते थे कि किसी को ये न लगे कि सीता सजी धजी महलों से आ रही है तो उन्होंने लंकापति की प्रार्थना स्वीकार करके राजपाट ग्रहण कर लिया हो। लोगों की इसी सोच को खत्म करने के लिए श्रीराम ने सीता को उन्हीं वस्त्रों में लंका से बाहर बुलवाया।
इसके पश्चात जब राम ने सीता का त्याग किया, तो वो भी विधाता में लिखा था। जब लव कुश को श्रीराम से मिलवाया गया तो सीता उसी धरती की गोद में समा गई जहां से उनका उद्भव हुआ था। सीता राम से रुष्ट होकर या दुख भोगकर धरती में नहीं समाई, दरअसल इस पूरे धर्मयुद्ध में उनका कार्य पूर्ण रूप से सफल हो गया था औऱ इसी वजह से वो अपनी मां यानी धरती मां की गोद में समा गई।