नई दिल्लीः आपके घर अक्सर पोस्ट मैन डाक या पार्सल लेकर जरूर आता होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि एक डाकिए ने भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भी कर दिया था। जी हां! अगर आपको ये जानना है कि वो कौन डाकिया था, जिसे एक गांव में भगवान की तरह पूजा जा रहा है। राम अरुण कास्त्रो द्वारा निर्देशित फिल्म 'हरकारा' इसी कहानी पर आधारित है। बीते सप्ताह रिलीज हुई यह फिल्म टॉप ट्रेंडिंग लिस्ट में शामिल हो चुकी है। कई बड़ी फिल्मों के साथ रिलीज हुई हरकार इस समय विभिन्न ओटीटी प्लेटफार्म टॉप में बनी हुई है,वो भी साउथ की फिल्मों की तरह बिना मारधाड़, बड़े सुपर स्टार और बड़े बजट के। हरकारा एक दो डाकियों की अलग-अलग कालखंड में एक कहानी है। जिसे निर्देशक राम अरुण ने एक सुर में पिरोया है जिसमें दर्शक शुरू से अंत तक कहानी से जुड़ा रहता है। इस फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर भी चर्चा तेज हो गई है। आइये जानते हैं फिल्म में क्या खास है।
कैसी है फिल्म की कहानी
यह तो तय है कि फिल्म को देखने के बाद डाकिया को लेकर आपके विचार जरुर बदलेंगे। फिल्म की कहानी रात में एक महिला द्वारा जबरदस्ती डाकघर खुलवाने से होती है, जिसमें डाकिए के किरदार में काली वेंकट हैं। उन्होंने अपने अभिनय से प्रभावित किया है। जबकि फ्लैश बैक में राम अरुण मधेशरन की भूमिका में है जो पहले अंग्रेजों से काफी प्रभावित रहते हैं, बाद में सच पता चलने पर विद्रोह कर देते हैं। यही कहानी का मूल है, मधेशारा की कहानी सुनकर काली प्रभावित होता है और गांव वालों के प्रति उसका व्यवहार बदल जाता है। कहानी को इस तरह से परोसा गया है कि शुरू से आखिर तक दर्शक कहीं भी बोर नहीं होते, इसी में निर्देशक ने जीत हासिल की है।
दमदार एक्टिंग करेगी प्रभावित
फिल्म की एक खूबी इसमें साधारण से दिखने वाले किरदारों में जान फूंकने की क्षमता है। दो अलग-अलग युगों में डाकिया का चित्रण चरित्र विकास के प्रति निर्देशक के समर्पण को दर्शाता है। दर्शक बदलते समय की पृष्ठभूमि में डाकिया के चरित्र के विकास को देखते हैं, जिससे कहानी प्रासंगिक और मार्मिक दोनों बन जाती है। काली वेंकट और राम अरुण ने अपने अभिनय से प्रभावित किया है, इसके अलावा निर्देशक ने बाकी कलाकारों का भी बेहतर उपयोग किया है। कहीं भी कोई किरदार दर्शकों को बोर नहीं करता। पोस्ट मैन काली (काली वेंकट) और बतौर निर्देशक राम अरुण कास्त्रो ने अपने अभिनय से दर्शकों को बांधा है। उधर राम अरुण ने मधेश्वरन के किरदार में अपने आपको साबित किया है। इसके अलावा सहायक व अन्य कलाकारों ने भी अपनी छाप छोड़ी है।
म्यूजिक और टेक्निकली भी है स्ट्रॉन्ग
फिल्म में संगीत थीम के मुताबिक है गीतों को भी उसी प्रकार बनाया गया है। जो फिल्म की डिमांड थी। बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म में नेचुरल नजर आता है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी काफी प्रभावित करती है। प्राकर्तिक दृश्यों को जिस प्रकार से फिल्माया गया है उसमें दर्शकों को दक्षिण भारत के गांव के असली रंग देखने को मिल रहे हैं, इस तरह ही जंगल और नदी-पहाड़ भी। निर्देशक के रूप में असली ग्रामीण पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक दृश्यों को संजोने में राम अरुण की मेहनत साफ झलकती है।
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