कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जिनके बारे में सुनकर दिल सिहर उठता है। ऐसी ही एक घटना है दिल्ली के उपहार सिनेमा में हुआ अग्निकांड, जिसमें 59 लोगों की मौत हुई थी और 100 जख्मी हुए थे। 13 जून 1997 को दक्षिणी दिल्ली में स्थित उपहार सिनेमाघर में बॉर्डर फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान आग लग गई थी, जिससे कई घर उजड़ गए। इस दिल दहला देने वाली घटना को अब नेटफ्लिक्स अपनी वेब सीरीज 'ट्रायल बाय फायर' में दिखा रहा है। इस सीरीज की रोक को लेकर याचिका दायर की गई थी जिस पर दिल्ली होईकोर्ट ने गुरुवार को 'ट्रायल बाय फायर' की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
इससे पहले, अदालत ने रियल एस्टेट मैग्नेट सुशील अंसल द्वारा दायर एक याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें सीरीज की स्ट्रीमिंग को अस्थायी रूप से रोकने की मांग की गई थी। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की एकल पीठ के न्यायाधीश अंतरिम राहत की मांग वाले मामले की सुनवाई कर रहे थे। नेटफ्लिक्स पर आज 13 जनवरी से स्ट्रीम हो रही वेब सीरीज ''ट्रायल बाय फायर: द ट्रेजिक टेल ऑफ द उपहार फायर ट्रेजडी'' किताब पर आधारित है। इसे नीलम और शेखर कृष्णमूर्ति द्वारा लिखा गया है। इन्होंने इस त्रासदी में अपने दो बच्चों को खो दिया था। अंसल ने इस वेब सीरीज के खिलाफ स्थायी और अनिवार्य निषेधाज्ञा और आगे के प्रकाशन और प्रसार पर रोक लगाने के लिए एक मुकदमा दायर किया था।
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नवंबर 2021 में दिल्ली की एक अदालत ने सबूतों से छेड़छाड़ करने के आरोप में गोपाल अंसल और उनके भाई सुशील अंसल को सात-सात साल की जेल की सजा सुनाई थी। हालांकि, सत्र अदालत ने इसे पिछले साल के जुलाई में पहले से ही पूरी की गई अवधि तक कम कर दिया और इस तरह कुल सजा के आठ महीने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। नीलम कृष्णमूर्ति उपहार त्रासदी के पीड़ितों के संघ की अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करती हैं। उन्होंने अंसल के खिलाफ न्याय के लिए लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी है।
अंसल का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा था कि चेतावनी के बावजूद अंसल का असली नाम वेब सीरीज के ट्रेलर में तीन बार इस्तेमाल किया गया है, जिससे उनकी प्रतिष्ठा और अन्य अधिकारों को ठेस पहुंची है। जवाब में न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा था, यह उनके फैसले की आलोचना और माता-पिता की पीड़ा हो सकती है, लेकिन यह मानहानि का दावा नहीं हो सकता है।
अंसल के वकील ने यह भी कहा, आज हमारे पास केवल एक झलक है जो जारी होने जा रही है वह पुस्तक है, जो यह स्पष्ट करती है कि मैं मुक्त हो गया हूं।आज हमारे पास जो कुछ भी है वह प्रथम ²ष्टया यह आरोप लगाने का आधार है कि फिल्म मेरे लिए प्रक्रिया और निर्णयों की गलत व्याख्या करने वाली है।
नेटफ्लिक्स की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नायर ने दलील दी थी, 19 सितंबर 2016 को पुस्तक का विमोचन किया गया था। 18 दिसंबर 2019 को खबरें आ रही हैं कि एक वेब सीरीज बनने जा रही है। मीडिया द्वारा खबरों में कहा गया कि 8 नवंबर 2021 को वादी को 2.25 करोड़ रुपए जुर्माने के साथ 7 साल की सजा सुनाई गई। हालांकि, सेशन कोर्ट में अपील होती है और जुलाई में दोषसिद्धि बरकरार रहती है लेकिन पहले से काटी गई अवधि के लिए सजा कम कर दी जाती है। यह सब सार्वजनिक डोमेन में है।
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