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वो गायक जिसने देशभक्ति से लेकर धर्म तक.. जिस भी गाने को गाया 'अमर' कर दिया

मनोज कुमार ने खुद को जब दर्शकों के सामने राष्ट्रवादी नायक की भूमिका में पेश किया तो उनकी इस छवि को पुख्ता करने का काम किया महेंद्र कपूर की आवाज ने।

Written by: Priyanshu Sharma
Updated on: January 09, 2021 20:43 IST
Mahendra Kapoor- India TV Hindi
Image Source : TWITTER/RISHAV MOHANTY Mahendra Kapoor

महेंद्र कपूर को मनोज कुमार की आवाज भी कहा जाता है। मनोज कुमार ने खुद को जब दर्शकों के सामने राष्ट्रवादी नायक की भूमिका में पेश किया तो उनकी इस छवि को पुख्ता करने का काम किया महेंद्र कपूर की आवाज ने।

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महाभारत के इसी गीत को कौन नहीं जानता, साल 1988 में आए इस टीवी शो और इसके इस गीत ने हर शख्स के दिलों दिमाग पर एक ऐसी अमिट छाप छोड़ी जो आज भी बरकरार है। इस शो के गीतों का असर ऐसा था की आने वाली कई पीढ़ियों में इसने सीख के साथ संस्कारों के भी बीज बो दीए। उस दौरान जब भारत में हर किसी के पास टीवी नहीं था तब इस कार्यक्रम को देखने के लिए सैकड़ों लोग टीवी के सामने खड़े हो जाते थे। चलती हुई बसें रुक जाया करती थीं और लोगो सिर्फ इसे देखने के लिए एकटक टीवी को निहारते रहते थे.. और तभी एक आवाज जो अपने दौर की सबसे मशहूर आवाज हुआ करती थी इस कार्यक्रम का आगाज करती थी और ये आवाज थी महेंद्र कपूर की। 

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महेंद्र कपूर का जन्म 09 जनवरी 1934 को अमृतसर में हुआ था। महेंद्र कपूर को संगीत को जानने वाले गायकों की उस श्रेणी में रखते थे जो हर तरीके के गाने बखूबी का गा सकते थे। "तुम अगर साथ देने का वादा करो" हो या "नीले गगन के तले" जैसे कई गीत जो उन्होंने गाए वो सदाबहार हो गए। उनके गानों की दीवानगी ऐसी की देश ही नहीं विदेशों में भी लोग उनके गीतों के कायल थे। जिस फिल्म इंडस्ट्री में रफ़ी, किशोर और मुकेश जैसे बड़े नाम थे वहां खुद की एक अलग पहचान बनाना शायद महेंद्र कपूर ही कर सकते थे। महेंद्र यूं तो रफ़ी को अपना गुरु मानते थे लेकिन रफ़ी के कहने पर उन्होंने शास्त्रीय संगीत की सीख ली और उसे बखूबी अपने गीतों में उतारा भी। 

Mahendra Kapoor

Image Source : TWITTER/RITU RAI SHARMA
Mahendra Kapoor 

70 के दशक में महेंद्र कपूर बेहद लोकप्रिय थे। मनोज कुमार के लिए उनके गाए देशभक्ति गीत आज भी लोगों के दिल के बेहद करीब हैं।"है प्रीत जहां की रीत सदा".. हो या "मेरे देश की धरती" इन गानों ने देशभक्ति की भावना की जो नींव रखी वो आज भी कायम है। आज भी हर भारतीय जब इन गानों को सुनता है देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज़्बा उमड़ आता है। महेंद्र कपूर को मनोज कुमार की आवाज़ भी कहा जाता है। मनोज कुमार ने खुद को जब दर्शकों के सामने राष्ट्रवादी नायक की भूमिका में पेश किया तो उनकी इस छवि को पुख्ता करने का काम किया महेंद्र कपूर की आवाज़ ने। आज भी चाहे 26 जनवरी हो या 15 अगस्त उनके इन गीतों के बिना ये त्यौहार पूरे नहीं हो सकते। 

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महेन्द्र कपूर ने सी रामचंद्र जैसे संगीतकार के निर्देशन में साल 1958 में वी शांताराम की फिल्म नवरंग में "आधा है चंद्रमा रात आधी" गीत से इंडस्ट्री में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। महेंद्र कपूर को 1968 में "उपकार" फिल्म के सदाबहार गीत "मेरे देश की धरती सोना उगले" के लिए सर्वश्रेष्ठ पा‌र्श्व गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। वैसे तो महेंद्र कपूर के जुड़े कई किस्से हैं लेकिन उनके कुछ किस्से बेहद मशहूर हैं। 

जब रफ़ी ने महेंद्र कपूर से कहा 'हम साथ नहीं गाएंगे'

महेंद्र कपूर अपने स्कूल के दिनों से ही रफी साहब के साथ थे। महेंद्र कपूर के जीवन में मोड़ तब आया जब उन्होंने मेट्रो मर्फी आल इंडिया गायन प्रतियोगिता जीती जिससे उनको वी. शांताराम की फिल्म नवरंग में गाने का मौका  मिला। उस समय रफी साहब इंडस्ट्री में सबसे बड़े नामों में से एक थे। रफ़ी साहब और महेंद्र कपूर के बीच रिश्ता कितना गहरा था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की वो मोहम्मद रफ़ी की कही किसी भी बात को मानने से कभी पीछे नहीं हटते थे। एक बार रफ़ी साहब ने महेंद्र कपूर से कहा था, कि "हम दोनों साथ में गाने नहीं गाएंगे, क्योंकि हमारी आवाजें मिलती हैं"। उस दिन से ही दोनों ने कभी साथ गाना नहीं गया। दोनों ने सिर्फ एक बार ही साथ गाना गया था।

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वो गाना था साल 1968 की फिल्म 'आदमी" का गीत "कैसी हसींन आज बहारों की रात है"। इस गाने में दिग्गज संगीतकार नौशाद साहब के कहने पर महेंद्र कपूर ने तलत महमूद साहब की आवाज को डब किया था। ये गाना पहले रफ़ी साहब और तलत महमूद को गाना था लेकिन किसी वजह से गाने में तलत महमूद वाले हिस्से को नए गायक के साथ डब करना पड़ा । और इस तरह फिल्म इंडस्ट्री रफ़ी साहब और महेंद्र कपूर ने साथ में अपना पहला और एक मात्र गाना गाया । दोनों के बीच हुए इस पूरे किस्से का खुलासा महेंद्र कपूर के बेटे रोहन कपूर ने किया था। 

महेंद्र कपूर को हर मूड का गीत गाने वाला समझा जाता था। वो किसी भी तरह के गीत को बेहद ही सरलता और गंभीरता के साथ निभाते थे। चाहे वो देश में सबसे ज्यादा बजने वाला देशभक्ति गीत हो या धर्म-अधर्म की सीख देते महाभारत के गीत या फिर प्यार में डूबे किसी प्रेमी के दिल की आवाज़ हो या जिंदगी की कश्मकश में घीरे किसी शख्स के दिल की आह। हर गीत को हर तरीके गाने की कला था महेंद्र कपूर के पास। आज वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके गीतों में आज भी वो जादू है की उन्हें सुनते ही हर कोई उनकी आवाज़ को खुद की समझ गीत गुनगुनाने लगता है। 

 

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