मुंबई: दिल छू लेने वाली इस जादुई आवाज़ के मालिक जगजीत सिंह को भला कोई कैसे भूल सकता है, किसी को गायकी का शौक होता है, तो किसी की दीवानगी, गायकी बनकर उसका परिचय, उसका वजूद बन जाती है, उन्हीं लोगों में से एक है जगजीत सिंह। जिन्हें किंग ऑफ गजल भी कहा जाता है। जगजीत सिंह की गाई गजलें अगर मुहब्बत से भले दिल की आवाज बनी, तो टूटे हुए दिलों की दवा भी बनी। फिल्मों में गाए, सैकड़ों म्यूजिक एल्बम को अपनी आवाज से सजाए, देश ही नहीं दुनिया भर के स्टेज पर अपनी सुरों से शमां बांध दी। न जाने कितनी ही पीढ़िया हैं जो जगजीत सिंह के गाये गजलों में सुकून पाती हैं। लेकिन एक वक्त ऐसा भी रहा जब ऑल इंडिया रेडियो के जालंधर स्टेशन ने जगजीत सिंह की आवाज को फेल कर दिया था। अपनी गायकी और जिंदगी से जुड़ी तमाम अनसुनी कहानियों को जगजीत सिंह ने इंडिया टीवी के खास शो आप की अदालत में सुनाया था।
गजल गायकी जगजीत सिंह की रगों में लहू बनकर दौड़ता था, सुर और सरगम उनके दिल की धड़कन थी। धड़कन थम गई, लेकिन यादें सात सुरों में ढलकर आज भी दिल-ओ-दिमाग पर छाई रहती हैं। जगजीत सिंह ने जब गजल गानी शुरू की थी उस वक्त गजलों को अलग ही अंदाज में गाया जाता था, लेकिन जगजीत सिंह ने गजलों को फिल्मी गानों की तरह गाना शुरू किया, नतीजा ये हुआ कि महफिलों में पढ़ी जाने वाली गजलों को गुनगुनाने में आम आदमी भी दिलचस्पी रखनी शुरु कर दी। हालांकि गजल गायकी में लाए बदलाव के लिए जगजीत सिंह पर गजलों की रुह के साथ छेड़छाड़ करने का भी आरोप लगा। जगजीत सिंह जब भी गाते थे, वो सुनने वालों के हो जाते थे। यूं तो उनका गाया हुआ कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे कम पसंद किया गया हो, लेकिन उनकी कुछ फ़िल्मी गज़लें आज भी उनके ताज में कोहिनूर की तरह दमकते हैं।
जगजीत सिंह की पैदाइश 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्री गंगानगर में हुई थी। उनके पिता अमर सिंह सरकारी कर्मचारी थे, पैदाइश के वक्त घरवालों ने उनका नाम जगमोहन रखा था लेकिन एक बुजुर्ग के मशविरे पर उनकी मां ने उनका नाम जगमोहन से जगजीत कर दिया। उस वक्त भला ये कौन जानता था कि बड़े होकर जगजीत अपनी रुहानी गायकी से जग को जीत लेंगे। जगजीत सिंह के पिता उनको आईएएस बनाना चाहते थे, लेकिन जगजीत सिंह का मन पढ़ाई की जगह गायकी में ज्यादा रमता था। मुश्किल से मुश्किल बंदिशों को तो वो बड़ी ही आसानी से निभा जाते थे, लेकिन बात जब पढ़ाई की आती तो जैसे उनका दिमाग काम करना बंद कर देते था, नतीजा ये हुआ कि प्राइमरी स्कूल में वो हर क्लास में 2-2 साल रहे।
गंगानगर के खालसा स्कूल से 12 वीं तक की पढ़ाई करने के बाद जगजीत सिंह ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने जालंधर आ गए थे। लेकिन यहां भी पढ़ाई कम फिल्में ज्यादा देखा करते थे। यहां तक कि पैसे कम होने पर वो सिनेमा हाल के गेटकीपर को बहला फुसला कर भी फिल्म देखने में कामयाब हो जाते थे। अपनी गजलों में इश्क की कहानी सुनाने वाले जगजीत सिंह का दिल भी मोहब्बत में कई बार धड़का है। दुनिया जानती है कि जगजीत सिंह ने मुंबई आने के बाद चित्रा सिंह से शादी कर ली थी, लेकिन कॉलेज के दिनों में जगजीत सिंह एक लड़की के प्यार में इस कदर दिवाने हो गए थे कि हर रोज उनकी साइकिल उस लड़की के घर के सामने जाकर पंचर हो जाया करती थी।
जगजीत सिंह की जिस गजल गायकी ने उन्हें पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया वही गायकी कॉलेज के दिनों में उनके लिए मुश्किलें भी खड़ी कर देती थी। बात उन दिनों की है जब जगजीत सिंह जालंधर के डीएवी कॉलेज में पढ़ा करते थेय़। लेकिन कॉलेज हॉस्टल में लड़के उनके आसपास के कमरों में रहना पसंद नहीं करते थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि जगजीत सिंह सुबह 5 बजे ही उठ कर रियाज करना शुरु कर देते थे। ना खुद सोते थे और ना ही दूसरों को ठीक से सोने देते थे।
एक बार जगजीत सिंह एक युवा उत्सव समारोह में शामिल होने बैंगलुरु गए थे। वो समारोह यूनिवर्सिटी में पढ़ने वालों लड़के और लड़कियों का था, जिसमें अपनी यूनिवर्सिटी के तरफ से जगजीत सिंह गए थे। लेकिन स्टेज से जब ये बोला गया कि पंजाब यूनिवर्सिटी से आया एक लड़का गजल गाएगा तो महफिल में मौजूद लोह जोर जोर से हंसने लगे क्योंकि उनकी नजर में पंजाब तो भंगड़ा के लिए जाना जाता था, लेकिन जब जगजीत सिंह ने गाना शुरु किया तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा...।
पिता के तरफ से जगजीत सिंह पर आईएएस की परिक्षा पास करने का दबाव था, वहीं उन पर गायकी की धुन सवार थी। एमए की फाइनल परीक्षा जब पास आई तो उन्होंने ना सिर्फ परिक्षा छोड़ने का फैसला किया बल्कि पढ़ाई छोड़ कर सरगम के साथी बन गए। दरअसल कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान कुलपति सूरजभान ने जगजीत की संगीत में लगन देख उनकी हिम्मत बढ़ाई। आखिरकार एमए की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर साल 1965 में मुंबई आ गए। मुंबई में वो जिंगल्स और शादियों में गाकर रोजी-रोटी का जुगाड़ किया करते थे।
जगजीत सिंह जिस दौर में प्लेबैक सिंगर बनने मुंबई आए थे उस वक्त लोग तलत महमूद और मोहम्मद रफी जैसे सिंगर्स के गीतों को पसंद करते थे। 1976 में जगजीत सिंह ने अपनी पहली हिट अलबम द अनफॉरगेटेबल्स रिलीज किया और फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। आगे चल कर जगजीत सिंह भारत के ऐसे पहले गायक बनें, जिन्होंने लंदन में पहली बार डिजिटल रिकॉर्डिग करते हुए बियांड टाइम अलबम जारी किया था।
गजल गायकी में नाम कमाने के बाद जगजीत सिंह ने फिल्मों का रुख किया। साल 1981 में आई फिल्म प्रेमगीत और 1982 में आई अर्थ जैसी फिल्मों के गीत गाने शुरु कर दिए। हालांकि जगजीत सिंह गाए फिल्मी गीत काफी पसंद किए गए, लेकिन फिल्मी दुनिया में जगजीत सिंह का सफर बहुत लंबा नहीं चला। फिल्मी दुनिया से भले ही दूर हो गए लेकिन उनकी गजलों के एलबम आते ही सुपरहिट हो जाया करते थे। दरअसल जगजीत सिंह हर 2 साल बाद एक एलबम रिलीज करना पसंद करते थे, क्योंकि उनका मानना था कि एलबम को सुपरहिट बनाने के लिए सुनने वालों को इंतजार कराना भी जरूरी होता है।
अपनी गजलों के साथ साथ जगजीत सिंह ने हेमंत कुमार और किशोर कुमार जैसे अपने मनपसंद सिंगर्स के सुपरहिट गानों को भी अपनी आवाज से सजाया, लेकिन क्रिटिक्स को इसमें गायकी कम पैसा बनाने का जरिया ज्यादा नजर आया। लेकिन जगजीत सिंह ने अपने उपर लगाए गए उन आरोपों को एक सिरे से खारिज कर दिया।
चित्रा सिंह की पहली शादी ब्रिटानिया बिस्किट में एक बड़े अधिकारी देबू प्रसाद दत्ता से हुई थी। उनकी एक बेटी भी हुई मोना। चित्रा मुंबई में जहां रहती थीं, उनके सामने वाले घर में एक गुजराती परिवार रहता था। जगजीत सिंह वहां अक्सर आते थे और गानों की रिकॉर्डिंग करते थे। पड़ोसी ने जगजीत की जमकर तारीफ की और उनकी रिकॉर्डिंग सुनाई। कुछ देर बाद चित्रा ने उनकी गायकी सुनकर कहा- ये भी कोई सिंगर है, गजल तो तलत महमूद गाते हैं।
1967 में जगजीत सिंह और चित्रा एक ही स्टूडियो में गजल रिकॉर्ड कर रहे थे, रिकार्डिंग के बाद चित्रा ने कहा कि मेरा ड्राईवर आपको आपके घर तक छोड़ देगा। रास्ते में चित्रा का घर आया तो उन्होंने जगजीत को चाय पर बुलाया, चाय पीने चित्रा के घर गए जगतीत ने उनकों भी गजल सुना कर अपना मुरीद बना लिया।
चित्रा के पहले पति देबू किसी और को पसंद करने लगे थे। इसके बाद चित्रा और देबू का आपसी रजामंदी से तलाक हो गया। 1970 में देबू ने दूसरी शादी कर ली, ऐसे में एक दिन जगजीत देबू के पास गये और उनसे कहा- मैं चित्रा से शादी करना चाहता हूं। जब उन्होंने इजाजत दी तो दोनों ने शादी कर ली। उनकी शादी का खर्च महज 30 रुपये आया था। तबला प्लेयर हरीश ने पुजारी का इंतजाम किया था वहीं गजल गायक सिंगर भूपिंदर सिंह 2 माला और मिठाई लेकर आए थे।
किसी पार्टी में अदाकारा अंजू महेंद्रू ने जगजीत से उनकी गजल दर्द से मेरा दामन भर दे सुनाने की फरमाइश की। जगजीत उस वक्त गाना तो नहीं चाहते थे लेकिन फरमाइश के आगे बेबस होकर उन्होंने वो गाया। सुनने में आता है कि गजल गाने के दौरान जगजीत खूब रोए थे। प्रोग्राम खत्म होते ही जगजीत की जिंदगी की सबसे मनहूस खबर आई। उनका 18 साल का इकलौता बेटा विवेक कार एक्सिडेंट में अपनी जान गवां चुका था। बेटे की मौत के बाद चित्रा ने हमेशा के लिए गायकी ही छोड़ दी, लेकिन जगजीत सिंह ने कुछ दिन की खोमोशी के बाद गायकी को ही दर्द भुलाने का जरिया बना लिया।
23 सितंबर, 2011 को ब्रेन हैमरेज होने के चलते जगजीत सिंह को मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया था 17 दिन बाद 10 अक्टूबर 2011 की सुबह 8 बजे उन्होंने बड़ी ही खामोशी के साथ दुनिया को अलविदा कह दिया। आज वो भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जब भी गजलों का जिक्र छिड़ता है अपनी गजलों में जिंदा हो उठते हैं जगजीत सिंह।