- फिल्म रिव्यू: ज्विगेटो
- स्टार रेटिंग: 3.5 / 5
- पर्दे पर: मार्च 15, 2023
- डायरेक्टर: नंदिता दास
- शैली: ड्रामा
Zwigato Movie Review: आज के दौर में हम सभी को समय-समय पर अपने दरवाजों तक जरूरी चीजें पहुंचाई जाती हैं। कभी-कभी हम डिलीवरी बॉयज के साथ बातचीत करते हैं, और कई बार हम उन्हें अनदेखा कर देते हैं। हम शायद ही यह स्वीकार करते हैं कि एक छोटा सा प्रोत्साहन पाने करने के लिए वे कितनी देर और कितनी ज्यादा मेहनत करते हैं। जो काफी हद तक उनके लिए हमारे द्वारा दी गई रेटिंग पर डिपेंड करता है। नंदिता दास की बॉलीवुड फिल्म 'ज्विगेटो' उसी दुनिया पर लोगों का ध्यान खींच रही है। जहां किसी शख्स का अस्तित्व, उसका चरित्र उसकी कड़ी मेहनत पर नहीं बल्कि कस्टमर्स की मर्जी पर डिपेंड करता है। भुवनेश्वर में सेट कहानी कपिल शर्मा द्वारा निभाए गए मानस और उनकी पत्नी प्रतिमा (शाहाना गोस्वामी) के इर्द-गिर्द घूमती है और कैसे वे पैसों की कड़की से निपटने के लिए अपने शरीर और आत्मा को जैसे गिरवी रखते हैं। कोविड के बाद अनजान शहर में बसे कपल की दुर्दशा को दिखाते हुए, नंदिता दास की ये फिल्म गिग इकॉनमी पर सवाल उठाती है।
बड़ी कंपनियों पर कटाक्ष
फिल्म का टाइटल 'ज्विगेटो' फूड और ग्रॉसरी देने वाली बड़ी कंपनियों जैसे - ज़ोमैटो और स्विगी पर कटाक्ष करता प्रतीत होता है। लेकिन बता दें कि ये फिल्म इससे कहीं ज्यादा कुछ समेटे हुए है। नंदिता और समीर पाटिल द्वारा लिखित, यह फिल्म एक ऐसे किरदार पर केंद्रित है जो हमारे जीवन का एक अंदरूनी हिस्सा है लेकिन उस पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता है। चूंकि फिल्म ओडिशा की राजधानी में स्थापित है, इसलिए नंदिता दास ने सेटिंग में, भाषा के साथ-साथ बातचीत में सहजता और वास्तविकता दिखाने पर बहुत ध्यान रखा है।
दमदार है कपिल और शहाना की एक्टिंग
कपिल और शाहाना झारखंड के बताए जाते हैं और वे अपनी भाषा पर पूरी तरह से पकड़ रखते हैं। कपिल सहजता से मानस के अपने चरित्र में बदलाव करते हैं, जो व्यवस्था का शिकार है। वहीं अपनी कॉमेडियन वाली इमेज से उलट दमदार नजर आते हैं। दूसरी ओर शाहाना खूबसूरती से मानस के रूप में अपना हीरो देखती हैं। जहां एक ओर मानस बेरोजगारी और गरीबी के पिंजरे में लौटने को विवश होने से हताश है, प्रतिमा काम करने और अपने परिवार को आर्थिक रूप से समर्थन देने के उत्साह देने वाली महिला है, जो हमेशा तर्क के साथ बात करती है। वह धैर्यवान और समर्पित है और अपने परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने पति के खिलाफ भी जा सकती है। कपिल और शाहाना दोनों ही बड़े पर्दे पर अपने रोल को जस्टिफाई करते हैं।
नंदिता ने दिखाईं, आज भी मौजूद गुलामी की जंजीरें
नंदिता दास पूरी फिल्म में कहीं भी समाज पर इन पात्रों के प्रति कठोर होने का आरोप नहीं लगाती हैं, लेकिन यह दिखाने के लिए वह सहानुभूतिपूर्ण रास्ता अपनाती हैं। वह अमीरों और गरीबों के बीच की महीन लकीर को बारीकी से उजागर करने के लिए अपना समय लेती हैं। उन पलों में, वह इस बात पर जोर डालती हैं कि इकॉनोमिक सिस्टम में शोषण कैसे काम करता है। एक पाइंट पर, मानस ने यह भी कहा कि "मालिक दिखाई नहीं देता पर गुलामी पूरी है।"
सोचने पर मजबूर करेगी फिल्म
दर्शकों के दिमाग में किरदारों को स्थापित करने के लिए फिल्म कई बार ज्यादा ही खिंचती हुई नजर आती है। फ़र्स्ट हाफ धीमा है और हमें उस पल के बारे में सोचने पर मजबूर कर देता है जब मानस और प्रतिमा के लिए चीज़ें कब बेहतर होंगी। क्या वह अपनी नौकरी छोड़कर कुछ और खोजेगा? क्या प्रतिमा अपने पति की मर्जी के खिलाफ जाएगी और नौकरी करेगी? क्या कठिनाइयों के कारण परिवार में बिखराव होगा? जैसे ही इन सारे जवाबों को खोजते हैं और एक हैप्पी एंडिंग की उम्मीद करते हैं, नंदिता दास हमें याद दिलाती हैं कि उन्होंने कभी ऐसा वादा नहीं किया था।
क्लाइमैक्स है दमदार
नंदिता दास की कहानी का सबसे खूबसूरत हिस्सा क्लाइमैक्स है। पात्रों की कठिनाइयों और संघर्षों से दूर हुए बिना, नंदिता ने फिल्म को एक हैप्पी नोट पर खत्म करने की कोशिश की हैं। 'ज्विगेटो' में कोई ड्रेमेटिकल ट्विस्ट नहीं है, लेकिन यह कहानी को एक सुखद अंत के बिना यह एक खूबसूरत मोड़ पर खत्म होती है। यह उदाहरण देता है कि उदासी शाश्वत नहीं है। दर्द होने पर भी आप हंसी और खुशी का अनुभव कर सकते हैं। जहां मानस और प्रतिमा की कहानी फिल्म खत्म होने के बाद लंबे समय तक आपके साथ रहेगी, वहीं आप एक छोटी सी मुस्कान के साथ सिनेमा हॉल से विदा होंगे।
फिल्म 'जिंदगी चलती रहती है...' के नोट पर खत्म होती है।