- फिल्म रिव्यू: Titli
- स्टार रेटिंग: 3.5 / 5
- पर्दे पर: 30 OCT, 2015
- डायरेक्टर: कनु बहल
- शैली: थ्रिलर
तितली निर्देशक कनु बहल की पहली फिल्म है। यह एक अपराध आधारित थ्रिलर कहानी है, लेकिन यह फिल्म कई सामाजिक मुद्दों की तह खोलते हुए आगे बढ़ती है। इस फिल्म का निर्माण यश राज फिल्म्स और दिबाकर बनर्जी प्रोडक्शन ने किया है।
तितली की कहानी दिल्ली में कार उठाने का काम करने वाले तीन भाइयों की कहानी है जो गरीबी के कारण अपराध की दुनिया में चले जाते हैं और उसके जाल में उलझते जाते हैं।
फिल्म के केंद्र में तितली का किरदार है जिसे नवोदित अभिनेता शंशाक अरोड़ा ने निभाया है। वह इस जंजाल से निकलकर खुद के लिए कुछ करना चाहता है और पैसा कमाने के लिए थोड़ा कम खतरे वाला रास्ता चुनता है।
लेकिन उसका सबसे बड़ा भाई विक्रम (रणवीर शौरी) और मंझला भाई बावला (अमित सियाल) इस खानदानी काम में इतने गहरे तक लिप्त होते हैं कि तितली के इस धंधे को छोड़ने के विचार से भी उन्हें नफरत होती है।
भाइयों के बीच की यह लड़ाई कहानी को आगे बढ़ाती है और इस पूरे दंगा-फसाद को घर के मुखिया डैडी जी (ललित बहल) बस चुपचाप देखते रहते हैं। दरअसल वह फिल्म में सत्ता खो चुके एक शहंशाह की भूमिका में हैं। खैर वह इतने मासूम दर्शक भी नहीं है। अपने तीनों बेटों के चरित्र को इस तरह गढ़ने में उसकी महती भूमिका है।
यह फिल्म उपर-उपर से एक अपराध आधारित कथा लगती हैं, जिसमें एक ही परिवार के तीन भाई उलझे हुए हैं। लेकिन मर्म में यह कई सामाजिक परतों को उधेड़ती है।
फिल्म की कहानी उस शहर के विकास की कहानी है जिसका एक बड़ा हिस्सा इस दौड़ में पिछड़ा ही रह गया है। साथ ही यह बढ़ते शहर के उन लोगों की कहानी है जहां पैसा हवा में उड़ तो रहा है, लेकिन गिर रहा है तो सिर्फ जनता के कुछ मामूली प्रतिशत के घरों में ही।
फिल्म की कहानी का ट्रीटमेंट नया है। इसकी पटकथा बहल और शरत कटारिया ने लिखी है। दोनों ने थ्रिलर में सामाजिक मुद्दों को पिरोने का काम बखूबी किया है और उसे कहीं भी बोझिल नहीं होने दिया।
फिल्म में एक और नवोदित कलाकार है शिवानी रघुवंशी जिसने तितली की पत्नी नीलू का किरदार निभाया है। उसके भी तितली की तरह अपने सपने हैं और इसीलिए वह तितली के साथ होते हुए भी अपनी तरह से जीवन जीना चाहती हैं।
तितली के किरदार काफी मजबूत हैं। शौरी का किरदार काफी चुनौतीपूर्ण है और वे इसमें खरे उतरे हैं। सियाल और ललित ने अपनी भूमिकाओं से न्याय किया है।
फिल्म का पूरा दारोमदार नए कंधों पर है और अरोड़ा एवं शिवानी ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया भी है।
तितली आम बंबइया फिल्मों से बिल्कुल अलग है। मनोरंजन के साथ कई असहज सच और सामाजिक मुद्दों की परत यह फिल्म खोलती है।