- फिल्म रिव्यू: The Empire
- स्टार रेटिंग: 3 / 5
- पर्दे पर: Aug 27, 2021
- डायरेक्टर: मिताक्षरा कुमार
- शैली: पीरियड ड्रामा सीरीज
ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनां बनाए बतियां, कि ताब-ए-हिज्राँ नदारम ऐ जाँ न लेहू काहे लगाए छतियां।।
खड़ी हिंदी और ब्रज भाषा के साथ फारसी में लिखी गई अमीर खुसरों की नज़्मों में से इस नज़्म ने, उनके हमवतनों को हिंदुस्तान की तरफ हमेशा से एक लालसा भरी नजरों से देखने के लिए मजबूर किया होगा। हांलाकि, इसे सत्ता की लोलुपता कहें या अपने साम्राज्य का विस्तार... मुगलों ने हिंदुस्तान को किस नजरों से देखा होगा? ये डिबेट का हिस्सा हो सकता है। आज के दौर की नई राष्ट्रवादी चेतनाओं में मुगलों की मंशा और हिंदुस्तान के प्रति उमड़ी उनकी भावनाओं के कॉन्सेप्ट में एकरूपता हो सकती मगर मुगल सल्तनत हिंदुस्तान के दिल पर कैसे काबिज होती, इस कहानी को डिज्नी+ हॉटस्टार पर 'द एम्पायर' वेब सीरीज के माध्यम से कहने की कोशिश की जा रही है।
एलेक्स रदरफोर्ड के उपन्यासों की सीरीज 'एंपायर ऑफ द मुगल' की पहली कड़ी 'राइडर्स फ्रॉम द नॉर्थ' आधारित सीरीज 'द एंपायर' के पहले सीजन में बाबर की कहानी दिखाई गई। संभवत: इस सीरीज के अलग-अलग सीजन के जरिए पूरी मुगल सल्तनत के बादशाहों की कहानी दिखाया जाए।
कहानी
कहते हैं बाबर की रगों में दो उन आक्रांताओं का खून दौड़ता है, जो अपनी विस्तारवादी नीतियों से कम बल्कि लूट-खसोट की चाहत लिए हिंदुस्तान की तरफ कूच करने आए थे। बाबर पिता पक्ष से तैमूर का वंशज है और मातृ पक्ष से चंगेज खान का। बहरहाल, सीरीज की शुरुआत पानीपत के जंग से होती जहां इब्राहिम लोदी और बाबार (कुणाल कपूर) के बीच घमासान हो रहा है। बाबर उस वक्त काफी मुश्किल में होता है मगर अपने एक सिपेहसालार की मदद से वह अपनी जान बचाने में कामयाब होता है। 'बादशाह सलामत' को जिंदगी की रहम देने वाले सिपेहसलार से बाते करते बाबर अपनी 30 साल पहले की जिंदगी और उसकी कहानियों में खो जाता है, जहां उसकी नजरों के सामने उसके पिता उमर शेख मिर्जा, मां कुतलुग निगार खानम, सख्त दिल नानी (शबाना आजमी) और बहन खानजादा (द्रष्टि धामी) नजर आती हैं।
कम उम्र में पिता के साए का उठ जाना बाबर को वक्त से पहले ही दिमागदार बना देता है। मगर पारिवारिक अंतरद्वन्द्व और सत्ता की लोलुपता की मंशा के चलते बाबर को अपनों से ही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। शैबानी खान (डिनो मॉरिया) से फरगाना और समरकंद के ताज को बचाने और फिर हिंदुस्तान जीत दर्ज करने की जद्दोजहद में बाबर की कहानी को आठ एपिसोड में दिखाया गया है।
बाबर के अंदरद्वन्द्व, एक बादशाह के द्वन्द्व से काफी बड़े हैं। उसके सामने अपनी बहन को बचाने की चुनौती है। सीरीज की कहानी के मुताबिक, बाबर एक अमनपसंद बाहशाह है और अपने को लिए अपनी सल्तनत को भी दाव पर लगा देने की इच्छा रखता है। सीरीज की कहानी बताती है कि बाबर खून का प्यासा नहीं बल्कि एक नर्मदिल और दार्शनिक इंसान है। नैतिकता की चादर ओढ़े बाबर को सीरीज में धीरोदात्त नायक की तरह पेश किया गया है।
एक्टिंग
कुणाल कपूर अपनी वाइस प्रोजेक्शन के साथ डायलॉग डिलिवरी में हमेशा से बेहतर लगे हैं। इस सीरीज में भी उन्होंने अपनी उसी विरासत को कायम किया है। उन्होंने बाबर के किरदार और उसके अंतरद्वन्द्व को बेहतर ढ़ग से निभाने की कोशिश की है। 'रंग दे बसंती' के बाद शायद इस सीरीज के लिए भी कुणाल कपूर को याद किया जाए। शबाना आजमी अपनी बढ़ती उम्र की झुर्रियों के साथा सख्त नानी के किरदार में बेहतर करती हैं, उन्होंने अपनी एक्सपीरियंस को बेहतर ढंग से इस्तेमाल किया। द्रष्टी धामी भी अपने किरदार को बेहतर निभा ले गई हैं। डिनो मॉरिया के करियर को इस सीरीज की और इस सीरीज को डिनो मॉरिया के एक्टिंग बेहद जरूरत थी। सीरीज में बतौर विलेन उन्होंने एक पत्थर दिल इंसान के तौर पर अपनी शानदार एक्टिंग का प्रदर्शन किया है।
तकनीकी पक्ष
आठ एपिसोड में बंटे इस सीरीज को यदि म्यूट कर के देखें तो ये सीरीज 'पद्मावत' और 'गेम ऑफ थ्रोन्स' एक्सटेंशन में कहीं फंसी हुई नजर आती है। हालांकि, सीरीज की कहानी एक बड़ी स्क्रीन पर फिल्माए जाने वाले सीन्स की डिमांड करती है। कहानी के किरदारों के द्वन्द्व को ड्रामा के तौर रूपांतरित करना दर्शकों के धैर्य की परीक्षा लेने जैसा लगता है। सीरीज में 8 एपिसोड हैं और प्रत्येक एपिसोड 40 मिनट से भी ज्यादा वक्त के, जिससे दर्शकों को कहानी के तालमेल के साथ गठजोड़ करने में परेशानी आ सकती है। इन सबके बावजूद भी यह सीरीज आज के दौर की बाकी वेब सीरीज के सामने अपनी अपीरियंस की बदौलत एक अलग स्थान रखती है। सेट की भव्ययता और मेहराबदार इमारतों का इस्तेमाल, मुगल पूर्व कला को ध्यान में रख कर बनाया गया है। ऑक्सिडाइज ज्वेलरी के साथ कॉस्यूटम डिजाइन का चयन बहुत हद तक संजय लीला भंसाली की फिल्मों की याद दिलाता है या यूं कहें तो, इस तरह के पीरियड ड्रामा के लिए इसी तरह के कॉस्ट्यूम का आम चलन हो गया है।
कहां निराश करती है सीरीज़
हालांकि, इसे सीरीज के कॉन्सेप्ट से बनाया गया फिर भी 'द एंपायर' के कई सीन्स बड़े पर्दे की डिमांड करते हैं। सीरीज यदि भारतीय दर्शकों को ध्यान में रख कर बनाई गई है तो ड्रामा के पक्ष को थोड़ा कम करके वॉर सीन्स में इजाफा किया जा सकता था। सीरीज में चार मुख्य किरदारों - कुणाल कपूर, डीनो मॉरिया, शबाना आजमी और द्रष्टी धामी के अलावा बाकी के कलाकारों की मौजूदगी नगण्य लगी।
लंबे वक्त से कुणाल कपूर और डिनो मॉरिया के फैंस को उनके बेहतर प्रदर्शन की चाहत होगी, तो ये सीरीज उन फैंस को पसंद आएगी। हालांकि, इतिहास के ज्ञान के लिए इस सीरीज को देख रहे हैं तो इससे बेहतर है कि कोई अच्छी किताब पढ़ लें क्योंकि किलों को फतह करने की रणनीति में भावनात्मक द्वन्द्व का बेहिसाब ड्रामा इतिहास का ज्ञान नहीं देता।