- फिल्म रिव्यू: Tevar
- स्टार रेटिंग: 2.5 / 5
- पर्दे पर: 9 JAN, 2015
- डायरेक्टर: अमित रविंद्रनाथ शर्मा
- शैली: एक्शन-कामेडी
क्या है कहानी
आगरा में गजेंदर (मनोज बाजपेयी) एक बाहुबलि है जिसको थिएटर आर्टिस्ट राधा (सोनाक्षी सिन्हा) से प्य़ार हो जाता है और उससे जबरन शादी करना चाहता है। भागते-भागते राधा टकराती है कबड्डी चैंपियन पिंटू (अर्जुन कपूर) से जो अनजाने में गजेंदर से दुश्मनी मोल ले लेता है और राधा को उससे दूर ले जाने में उसकी मदद करता है। तो क्या वो उसमें कामयाब हो पाएगा? जानने के लिए देखिए तेवर।
क्या है खास
तेवर की खासियत इसके किरदार हैं जो ज़्यादातर हिंदी फ़िल्मों की तरह सच्चाई से तो दूर है पर हैं मनोरंजन ज़रुर करते हैं।
विलेन गजेंदर बाहुबलि तो है ही काफी ओछी हरकते करने से भी नहीं हिचकता।। छैल-छबीला बन कॉलेज में जाकर राधा को अपने दिल की तरफ इशारा कर कहता है कि यहां पीतल नहीं है, रोज़ का गार्डन भी है। सरे आम एक बेनाम लड़के से पिटने के बाद वह अपनी पैंट उतार बॉक्सर्स में यहां-वहां घूमता है।
कबड्डी प्लेयर पिंटू फाइटिंग के दौरान भी कबड्डी खेलने लगता है और गुंडों से पूछता है 'कबड्डी कबड्डी कबड्डी, किसकी मोड़ू गर्दन, किसकी तोड़ू हड्डी।' वह सुपरमैन की तरह छलांग लगाता है और सलमान खान की तरह दर्जनों गुंडों को धूल चटा सकता है।
ये सब काफी अटपटा है लेकिन फिर भी मज़ेदार है। और इसको चार चांद लगाता है अर्जुन कपूर, मनोज वाजपाई और खास तौर पर राज बब्बर का अभिनय।
राज बब्बर अर्जुन के पिता का किरदार निभाते है लेकिन सबसे ज्यादा एक सख्त पुलिस आफिसर के रूप में वह दमदार नज़र आते हैं।
अर्जुन कपूर काफी हद तक सलमान खान बनने की कोशिश करते है हालांकी कामयाब नहीं होते लेकिन परमार्मेंस बुरा नही है।
पर यहां सब पर भारी पड़ते है मनोज बाजपेयी। स्पेशल 26, गैंग्स आंफ वासेपुर, सत्याग्रह जैसी सफल फिल्मों में कमाल का अभिनय कर चुके इस फ़िल्म में छाए हुए हैं।
कमजोर कड़िया-
फिल्म को कमजोर बनाता है सोनाक्षी सिन्हा का अभिनय और 80, 90 के दशक का फिल्मी फॉर्मूला। फिल्म में कुछ भी नया नहीं है।
राधा के ये पूछने पर कि वह उसकी मदद क्यों कर रहा है तो पिंटू कहता है कि वह सुपरमैन है। मदद करना उसका काम है। ऐसी लाइंस पर आपको हंसी आती है। पूरी फिल्म में हीरो-हीरोइन भागते फिरते हैं और गजेंदर उनका पीछा करता है। पिंटू गजेंदर को पर्दे पर तो खूब नचाता और बेवकूफ बनाता है लेकिन ये सब देख रही थिएटर में बैठी जनता इतनी नासमझ नहीं है कि वो इन बेवकूफियों पर हंसे या मज़े ले।