- फिल्म रिव्यू: तानाजी- द अनसंग वॉरियर
- स्टार रेटिंग: 3 / 5
- पर्दे पर: 10 जनवरी 2020
- डायरेक्टर: ओम् राउत
- शैली: हिस्टोरिकल पीरियड ड्रामा
Movie Review: ऐतिहासिक फ़िल्में बनाना आसान काम नहीं है, गूढ़ रिसर्च के साथ एक पूरा साम्राज्य गढ़ना और उसे दर्शकों के सामने प्रस्तुत करना अपने आपमें एक बड़ा टास्क है। संजय लीला भंसाली और आशुतोष गोवारिकर की ऐतिहासिक फिल्में आपने कई बार देखी है इस बार ये कठिन कदम उठाया है निर्देशक ओम् राउत ने। ओम् को हॉन्टेड और लोकमान्य: एक युगपुरुष जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है। इस बार उन्होंने अजय देवगन को लेकर ‘तानाजी- द अनसंग वॉरियर’ बनाई है। ये अजय देवगन की 100वीं फ़िल्म है जिसमें वो तानाजी मालुसरे के रोल में हैं।
17वीं शताब्दी में शिवाजी महाराज के मित्र और दायां हाथ सुबेदार तानाजी मालसुरे (अजय देवगन) अपनी पत्नी सावित्रीबाई (काजोल) के साथ अपने बेटे की शादी की तैयारियां कर रहा है। उसे इस बात की भनक नहीं होती कि पुरंदर संधि में कोंडाणा के किले समेत 23 किले मुगल अपने नाम करवाने के बाद भी प्यासे हैं। राजमाता जीजाबाई ने कोंडाणा का किला मुगलों को सौंप तो दिया था लेकिन शपथ ली थी कि जब तक इस किले में दोबारा भगवा नहीं लहराएगा वो चैन की सांस नहीं लेंगी। दूसरी तरफ उदयभान राटौड़ (सैफ अली खान) अपनी सेना के साथ मराठा साम्राज्य को खत्म करने निकलता है।
शिवाजी अपने दोस्त और बहादुर सुबेदार तानाजी को बेटे की शादी जैसे मौके पर युद्ध की त्रासदी से दूर रखना चाहते हैं इसलिए वो इस बात को छिपाने की कोशिश करते हैं। लेकिन जब तानाजी को पता चलता है कि स्वराज और शिवाजी महाराज खतरे में हैं तो वो बेटे की शादी छोड़ उदयभान से लड़ने निकल पड़ता है।
उदयभान भी कम साहसी नहीं है, वो जितना साहसी है उतना ही क्रूर भी है। वो विधवा रानी कमल (नेहा शर्मा) को उठा लेता है और उससे शादी करने के लिए अड़ जाता है। तानाजी को अब ना सिर्फ अपना किला वापस लेना है बल्कि कमल को भी उसकी कैद से छुड़ाना है।
लोकमान्य: एक युग पुरुष के लिए बेस्ट डायरेक्टर का फिल्मफेयर जीतने वाले ओम् राउत ने इस बार कहानी के साथ साथ 3डी और वीएफएक्स पर भी काफी काम किया है। वॉर सीन और एक्शन सीन कमाल के हैं। लेकिन फिल्म से भावनात्मक रूप से आप बहुत अच्छे से नहीं जुड़ पाते हैं। जब तक आप किसी चीज से अटैच नहीं होंगे फिल्म की दमदार बैक स्टोरी नहीं होगी तो युद्ध आपको खास विचलित नहीं कर पाएगा। ऐसे एक्शन सीन का भी क्या फायदा जब आप अपनी मुट्ठियां ना भींचे। इसके अलावा फिल्म में आंचलिक टच की कमी खली है, मराठाओं का खड़ी बोली में बात करना आपको खटकेगा, वो भी तब जब आपने रणवीर सिंह को बाजीराव मस्तानी में कमाल की भाषा पर पकड़ के साथ अभिनय करते देखा हो।
अभिनय की बात करें तो तानाजी के रोल में अजय देवगन का काम क़ाबिले तारीफ़ है, अपने हाव भाव और अभिनय के अलावा बेहतरीन संवादशैली से वो ताली बटोरने में कामयाब हुए हैं। उदयभान के रोल में सैफ़ अली खान ने अच्छा काम किया है जिस तरह से वो मुस्कुराते हैं और कुटिल हँसी हँसते हैं वो एक विलेन को परदे में उतारने में सफल रहे हैं। तानाजी की पत्नी सावित्री के रोल में काजोल का काम भी अच्छा रहा, जब जब वो सामने आती हैं आपकी नज़रें उनसे नहीं हटेगी। शिवाजी के रोल में शरद केलकर के पास करने को बहुत ज्यादा कुछ नहीं था लेकिन जितना भी उनके हिस्से आया उन्होंने बखूबी से निभाया है।
अगर आप ऐक्शन के शौक़ीन हैं और अजय देवगन के फ़ैन हैं तो ये फ़िल्म देख सकते हैं, इंडिया टीवी इस फ़िल्म को देता हैं 5 में से 3 स्टार।