- फिल्म रिव्यू: सोनचिड़िया
- स्टार रेटिंग: 2.5 / 5
- पर्दे पर: 1 मार्च,2019
- डायरेक्टर: अभिषेक चौबे
- शैली: एक्शन-ड्रामा
सुशांत सिंह राजपूत और भूमि पेडनेकर स्टारर 'सोनचिड़िया' आपको उस दौर में ले जाएगी, जब चंबल में डकैतों का खौफ था। हालांकि इस फिल्म में डकैतों के भयंकर रूप को न दिखाकर उनके भीतर छिपे इंसानियत को दिखाया गया है। फिल्म को अभिषेक चौबे ने डायरेक्ट किया है। अभिषेक हमेशा से अलग हटकर फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं। इसके पहले उन्होंने 'इश्किया' और 'उड़ता पंजाब' बनाई है और इन फिल्मों की तरह 'सोनचिड़िया' की भी अपनी अलग ही ऑडियंस है। यह फिल्म सबको पसंद नहीं आएगी। फिल्म में जाति, राजनीति, छुआछूत जैसे विषयों को भी समेटा गया है।
कहानी:
फिल्म की कहानी 1975 के दौर की है। कहानी कुछ सच्चे लोगों और घटनाओं से प्रेरित है। कहानी चंबल के डाकूओं की है। मनोज वाजपेयी (मान सिंह), रणवीर शौरी (वकील सिंह), सुशांत सिंह राजपूत (लखना) सहित कुछ डाकूओं का एक गैंग है। मान सिंह इस गैंग के सरदार हैं। हालांकि फिल्म की शुरुआत में उनकी मौत से दर्शकों को निराशा ज़रूर होगी। फिल्म की शुरुआत में ही लखना यह सवाल उठाते हैं कि अगर पुलिस का धर्म बागियों को गिरफ्तार करना है तो बागियों का धर्म क्या है?
कुछ देर में भूमि पेडनेकर (इंदुमती तोमर) और एक बच्ची (सोनचिड़िया) की कहानी में एंट्री होती है। फिल्म में जाति व्यवस्था, लड़कियों पर ज़ुर्म जैसे मुद्दों को भी दिखाया गया है। सोनचिड़िया एक निम्न जाति की लड़की है, जिसका रेप इंदुमती के ससुर कर देते हैं। इंदुमती अपने ससुर को मारकर सोनचिड़िया को घायल अवस्था में लेकर भागती है। रास्ते में उसकी मुलाकात डाकूओं से होती है और वो उनसे निवेदन करती है कि वो सोनचिड़िया को अस्पताल लेकर जाए। फिर वहां से इंदुमती और सोनचिड़िया की यात्रा भी शुरू हो जाती है।
फिल्म में मोक्ष प्राप्ति की कामना को भी दिखाया गया है। मान सिंह और लखना अपने मन पर एक बोझ लेकर घूमते हैं और उसे उतारने के लिए मान सिंह अपनी जान भी दे देते हैं। आशुतोष राणा गुर्जर पुलिस के रोल में हैं, जो बागियों से अपनी निज़ी दुश्मनी का बदला लेना चाहते हैं।
चंबल की बात हो और फूलन देवी का ज़िक्र न हो, ऐसा कैसे हो सकता है। कहानी का थोड़ा सा हिस्सा फूलन देवी को भी मिला है, हालांकि वो कुछ खास इम्प्रेस नहीं कर पाती हैं।
एक्टिंग
रणवीर शौरी अपनी एक्टिंग से बहुत इम्प्रेस करते हैं। मनोज वाजपेयी की एक्टिंग के बारे में तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता। वो हर रोल में अपनी जान डाल देते हैं। आशतोष राणा भी क्रूर पुलिस की भूमिका में बहुत जंचे हैं। सुशांत, भूमि सहित सभी एक्टरों की एक्टिंग में काफी दम है।
कमजोर कड़ी
फिल्म में बुंदेलखंडी भाषा का ज्यादा प्रयोग हुआ है, जिसे समझने के लिए सब टाइटल्स को देखना पड़ता है।
फिल्म थोड़ी छोटी की जा सकती थी। फिल्म को 2 घंटे का बनाकर भी सब कुछ दिखाया जा सकता था।
यह फिल्म सबको पसंद नहीं आएगी। मसाला फिल्मों की ऑडियंस को यह फिल्म बोर कर सकती है।
लोकेशन
फिल्म की शूटिंग रियल लोकेशन पर हुई है। टीम ने मध्य प्रदेश की घाटियों में इसे शूट किया है।
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