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शुभ मंगल ज्यादा सावधान मूवी रिव्यू: छा गई आयुष्मान खुराना और जीतू की जोड़ी, लेकिन रह गई थोड़ी-सी कसर

'अंधाधुन' के लिए बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड जीतने वाले एक्टर आयुष्मान खुराना से दर्शकों को बहुत उम्मीदें हैं। वो अपनी फिल्मों के ज़रिए टैबू को तोड़ने की हिम्मत रखते हैं। वो उन मुद्दों को 70 एमएम की स्क्रीन पर लाते हैं, जिनके बारे में समाज बात करने से बचता है।

Sonam Kanojia
Updated on: February 21, 2020 16:39 IST
shubh mangal zyada saavdhan movie review

'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' मूवी रिव्यू

  • फिल्म रिव्यू: शुभ मंगल ज्यादा सावधान
  • स्टार रेटिंग: 3 / 5
  • पर्दे पर: Feb 21, 2020
  • डायरेक्टर: हितेश केवल्या
  • शैली: कॉमेडी-ड्रामा

'अंधाधुन' के लिए बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड जीतने वाले एक्टर आयुष्मान खुराना से दर्शकों को बहुत उम्मीदें हैं। वो अपनी फिल्मों के ज़रिए टैबू को तोड़ने की हिम्मत रखते हैं। वो उन मुद्दों को 70 एमएम की स्क्रीन पर लाते हैं, जिनके बारे में समाज बात करने से बचता है। वो हिंदी सिनेमा के माध्यम से लोगों की सोच बदलने की कोशिश में पूरी तरह माहिर भी हैं, लेकिन 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' फिल्म में कुछ ऐसी कमी है, जो आपके दिल तक पहुंच नहीं पाती है। दर्शकों से कनेक्ट नहीं हो पाती है और ये गलती आयुष्मान की नहीं, बल्कि काफी हद तक डायरेक्टर की है।

पहले बात करते हैं फिल्म की कहानी है, जो दो पुरुषों के प्यार को लेकर बनाई गई है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो ये फिल्म समलैंगिक रिश्तों पर बनी है। वो रिश्ता, जिसको समाज अभी तक समझ नहीं पा रहा है। आयुष्मान खुराना ने कार्तिक और जीतू ने अमन का किरदार निभाया है। ऐसी घटना होती है कि घरवालों को उनके बारे में पता चल जाता है और फिर शुरू होती है इमोशंस की रोलर कोस्टर राइड। क्या अमन के घरवाले उनके प्यार को स्वीकार करते हैं? क्या कार्तिक अपने प्यार को खो देता है? इन सवालों का जवाब जानने के लिए आपको फिल्म देखने थियेटर जाना पड़ेगा।

एक्टिंग

'विक्की डोनर' से लेकर 'बाला' तक, आयु्ष्मान खुराना ने दर्शकों को निराश नहीं किया है। इस फिल्म में भी उन्होंने अपना बेस्ट देने की कोशिश की है, लेकिन इस बार, जब वो इतने सेंसेटिव मुद्दे को सामने लेकर आएं तो कहीं न कहीं उनसे बहुत ज्यादा उम्मीदें थीं। आयुष्मान का चार्म ऐसा है कि वो जब भी स्क्रीन पर आते हैं, उनके चेहरे से नज़रें नहीं हटती।

डिजिटल मीडिया पर अपनी एक्टिंग का दम-खम दिखा चुके जितेंद्र कुमार उर्फ जीतू की बात करें तो वो कभी-कभी आयुष्मान पर भी भारी पड़ते नज़र आए हैं। वो अपनी आंखों से बोलने की कला में माहिर हैं और उन्होंने अपना बेस्ट दिया है। गजराज राव और नीना गुप्ता की जोड़ी कमाल की है। दोनों दिग्गज एक्टर ने उन मां-बाप का रोल बेहतरीन तरीके से निभाया है, जो अपने बच्चों की खुशियों और 'समाज क्या बोलेगा' के बोझ तले दबे रहते हैं, लेकिन इस बार थोड़ा ज्यादा ओवर हो गया है। उनकी एक्टिंग में कोई कमी नहीं है, लेकिन उनके जबरदस्ती के बोले गए वन लाइनर कहीं न कहीं इरिटेट करते हैं। इनके अलावा सुनीता राजवर, मानवी गागरू, मनु ऋषि और पंखुरी अवस्थी ने भी अच्छा काम किया है।

डायरेक्शन

इस फिल्म में जो सबसे बड़ी कमी महसूस होती है, वो है कहानी का बिखराव। डायरेक्टर हितेश केवल्य के पास एक मौका था, जहां वो समलैंगिक रिश्तों को लेकर पहले से बनी फिल्मों से कुछ अलग हटकर पेश कर सकते थे। दर्शकों की वाहवाही लूट सकते थे। उनके पास आयुष्मान खुराना भी थे, लेकिन वो इस मौके को भुना नहीं पाएं। मूवी में हर कैरेक्टर को उभारने की कोशिश में वो असली कहानी ही बयां नहीं कर पाएं। हालांकि, कुछ सीन्स हैं, जो बहुत अच्छे से पेश किए गए हैं। जैसे- अपने बेटे को किसी लड़के को किस करता देख पिता का रिएक्शन कैसा होता है, वो देखने लायक है।    

म्यूजिक

'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' की एक अच्छी बात ये है कि आप कहीं भी बोर नहीं होते। 2 घंटे की फिल्म आपको आखिरी तक बांध कर रखती है और इसके पीछे एक वजह बेहतरीन म्यूजिक भी है। 'मेरे लिए तुम काफी हो', 'प्यार तेनू करदा गबरू' और 'अरे प्यार कर ले' का रीमेक शानदार है। गानों को सही समय पर इस्तेमाल किया गया है, जो आपको सुकून देता है।  

डायलॉग्स

फिल्म के कुछ डायलॉग्स बहुत ही शानदार हैं। इन डायलॉग्स को आप फील कर पाते हैं। कुछ तो ट्रेलर आते ही फेमस हो गए थे। जैसे- 'मैं मां हूं और मां के पास दिल होता है, हां बाप तो बैटरी से चलते हैं' और 'जो लड़ाई परिवार के साथ होती है वो सबसे बड़ी होती है' और जब आखिरी में गजराज अपने बेटे अमन (जीतू) से कहते हैं, 'हमारी समझ की वजह से तू खुद को मत बदल'..। इनके अलावा पूरी फिल्म आपको डायलॉग्स से भरी ही मिलेगी, जो आपको हंसाने के साथ-साथ इमोशनल भी करेगी। 

फिल्म में रह गई थोड़ी-सी कसर

आयुष्मान खुराना की फिल्मों में कॉमेडी के माध्यम से सीरियस मुद्दों को पेश किया जाता है, लेकिन जबरदस्ती की कॉमेडी किसी भी फिल्म में अच्छी नहीं लगती। हर कैरेक्टर ने हर लाइन में वन लाइनर बोले हैं, जो पचते नहीं हैं। अगर पारिवारिक फिल्म है तो ड्रामा तो होगा ही, लेकिन 'शुभ मंगल..' में ओवर ड्रामा दिखाया गया है। इसकी कहानी आयुष्मान और जीतू के 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के सीन से शुरू होती है और 'जा सिमरन जा.. जी ले अपनी जिंदगी' पर खत्म होती है, लेकिन इन सबके बीच बहुत सारा स्यापा होता है। फिल्म में मिडिल क्लास फैमिली को दिखाया गया है, लेकिन किसी भी मिडिल क्लास फैमिली में ऐसी चीजें नहीं होती, जो मूवी में दिखाई गई है। जैसे- काली गोभी का लॉजिक समझ नहीं आता। भूमि पेडनेकर की स्पेशल अपीयरेंस भी इररिलेवेंट लगती है। शादी के मंडप से बेटी का भाग जाना और किसी का उसे ढूंढने नहीं जाना। ये सब बातें थोड़ी अजीब लगती हैं।

आप ये सोचकर थियेटर जाते हैं कि समलैंगिक रिश्ते को लेकर बनी इस फिल्म से समाज को एक मैसेज जाएगा। लोग अपनी सोच बदलने को मजबूर होंगे। सोसाइटी के डर की वजह से अपने प्यार को खो देने वाले उन लोगों की परेशानियों को स्क्रीन पर आसानी से समझाया जा सकेगा, जो वो बोल तक नहीं पाते। लेकिन 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' में ये सब मिसिंग है। हालांकि, आयुष्मान की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने बड़े पर्दे पर लड़के को किस करने का साहस उठाया और उसे अच्छी तरह से निभाया भी। 

क्यों देखें फिल्म

'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' की सबसे ज्यादा चर्चा दो बातों की वजह से हो रही है। पहला ये कि जिस मुद्दे पर फिल्म बनी है और दूसरा आयुष्मान खुराना। अगर आप उनके फैन हैं तो ये मूवी जरूर देखें। क्योंकि हमें पूरी उम्मीद है कि अगर वो इस बार थोड़ा-सा चूक गए हैं तो ये बात उन्हें डिमोटिवेट करने की बजाए मोटिवेट ही करेगी, क्योंकि एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि वो सिर्फ और सिर्फ अच्छा सिनेमा करना चाहते हैं.. और कुछ नहीं।  

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