- फिल्म रिव्यू: कबीर सिंह
- स्टार रेटिंग: 3 / 5
- पर्दे पर: June 21, 2019
- डायरेक्टर: संदीप रेड्डी वांगा
- शैली: रोमांटिक ड्रामा
संदीप वांगा रेड्डी की तेलुगू फ़िल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ के रीमेक ‘कबीर सिंह’(Kabir Singh) में शाहिद कपूर(Shahid Kapoor) ने जो काम किया है इसे उनका अब तक का बेस्ट काम कह सकते हैं। संदीप रेड्डी ने ही अर्जुन रेड्डी का निर्देशन किया था और बहुत अच्छी बात है उन्होंने ही इस फ़िल्म को निर्देशित किया है क्योंकि कबीर सिंह का जो जुनून है वो परदे पर कोई और प्रस्तुत कर ही नहीं सकता है। ख़ासकर दिल टूटने वाले सीन को जिस तरह उन्होंने लिखा है वो परदे पर साफ़ नज़र आता है, तीन घंटे लम्बी फ़िल्म कैसे निकल जाती है आपको पता ही नहीं चलता है।
कबीर सिंह के रोल में शाहिद कपूर ने जो ऐक्टिंग की है, इसे उनका अब तक का बेस्ट काम कह सकते हैं। इससे पहले लगता था कि शाहिद कपूर का काम ‘हैदर’ में सबसे अच्छा है लेकिन ‘कबीर सिंह’ देखने के बाद आपकी राय बदल जाएगी। कबीर के ग़ुस्से को, प्यार को और जुनून को शाहिद ने जिस तरह परदे पर जिया है शायद और कोई ये स्वैग परदे पर नहीं ला सकता था। हालांकि कहीं कहीं वो इस रोल के लिहाज से थोड़ बड़े जरूर लगे हैं।
कियारा आडवाणी(Kiara Advani) प्रीति के रोल में जंची हैं, फ़िल्म में उनके डायलॉग्स बहुत कम हैं, लेकिन कियारा ने बिन बोले ही प्रीति के किरदार को बख़ूबी जिया है। जब भी वो परदे पर होती हैं अपनी मासूमियत से वो आपका दिल जीत लेंगी। कबीर सिंह के भाई करन के रोल में अर्जन बाजवा ने भी बहुत अच्छा काम किया है।
कबीर सिंह की लाइफ़ में जितने भी लोग हैं, उसकी माँ, पिता (सुरेश ओबेरॉय), कबीर की दादी उसके दोस्त हर किरदार आपको रीयल लगेगा, सबने अपने अपने रोल में उतनी ही मेहनत की है और इसका क्रेडिट भी संदीप को जाता है।
संदीप ने छोटी से छोटी चीज़ों का ध्यान रखा है, बॉलीवुड में आपने ऐसी लव स्टोरी पहले नहीं देखी होगी। फ़िल्म के क्लाइमैक्स से पहले एक सीन आता है जहाँ कबीर अपने पिता से बात करता है ये सीन कबीर के किरदार को नए तरीक़े से परिभाषित करता है। यहाँ आपको समझ आता है कि लाइफ़ को लेकर कबीर का विज़न क्या है। कबीर को इतना ग़ुस्सा आता है और ग़ुस्से में वो कुछ भी बोल देता है लेकिन फिर भी उसे देखकर लगता है कि ये बिलकुल हम जैसा है, हर किसी की ज़िंदगी में ऐसा फ़ेज़ आता है, कबीर सिंह की कहानी उसी फ़ेज़ की है।
अब बात करते हैं अर्जुन रेड्डी से कितनी अलग है कबीर सिंह। ये फ़िल्म बिल्कुल भी अलग नहीं है, सीन टू सीन और डायलॉग टू डायलॉग फ़िल्म बिल्कुल अर्जुन रेड्डी जैसी है। कहीं कोई बदलाव नहीं किया गया है बदला है तो सिर्फ़ किरदारों का चेहरा और लोकेशन। हाँ इस फ़िल्म में आप शाहिद को जानते हैं इसलिए बीच-बीच में आपको याद आ जाता है कि ये शाहिद हैं लेकिन अर्जुन रेड्डी में विजय देवरकोंडा नए थे और दुनिया के लिए वो उस वक़्त सिर्फ़ अर्जुन रेड्डी थे। इसके अलावा फ़िल्म में कोई बदलाव नहीं है।
अगर आपने अर्जुन रेड्डी देखी है तो आप कबीर सिंह नहीं भी देखेंगे तो कुछ नहीं खोएंगे। हाँ आप शाहिद के लिए ये फ़िल्म देख सकते हैं। फ़िल्म अर्जुन रेड्डी और एक्टर विजय देवरकोंडा के फ़ैन्स को शायद इस फ़िल्म में कुछ मिसिंग लगे लेकिन अपनी भाषा में इस फ़िल्म को देखकर भी आपको बहुत अच्छा लगेगा। ये फ़िल्म आप शाहिद के लिए देखिए, कबीर सिंह के प्यार और जुनून के लिए देखिए और इसलिए देखिए कि बॉलीवुड में ऐसी लव स्टोरी बहुत वक़्त बाद आई है जो आपको अंदर तक हिलाकर रख दे।
हालांकि इस फिल्म का एक पक्ष यह भी है कि कबीर सिंह हो या अर्जुन रेड्डी ये फिल्में एक क्राफ्ट के तौर पर तो बहुत अच्छी हैं, लेकिन सच तो ये है कि ये कहानी एक स्टॉकर, स्मोकर, एल्कॉहलिक और ड्रग एडिक्ट को जस्टिफाई करती है। जिसे औरत को एब्यूज करने में भी कोई शर्म नहीं आती, आदमियों को तो वो चलो करता ही है। हां लेकिन ऐसे लोग होते भी हैं। तो ये क्राफ्ट के तौर पर देखेंगे तो बहुत अच्छी लगेगी लेकिन इसी शर्त पर देखिएगा कि उससे कुछ प्रेरणा मत लेने लगिएगा।
इंडिया टीवी इस फ़िल्म को दे रहा 5 में से 3 स्टार।
फिल्म का ट्रेलर: