- फिल्म रिव्यू: Shaandaar
- स्टार रेटिंग: 2.5 / 5
- पर्दे पर: OCT 22, 2015
- डायरेक्टर: विकास बहल
- शैली: कॉमेडी
क्वीन’ की अपार सफलता के बाद कंगना रनाउत के साथ-साथ निर्देशक विकास बहल का नाम हमारे दिल में घर कर गया था। ऐसे में उम्मीद थी कि उनकी आगामी फिल्म चाहे जो भी हो, एक सामाजिक दकियानूसी विचारधारा और झूठे मुखौटा चढ़ाए रखने वाले लोगों की कहानी को एक अलग ही मुकाम पर ले जाएंगी।विकास बहल के निर्देशन में बनीं ‘शानदार’ देखते समय फिल्म में आपको भव्य सेट और करण जौहर के बैनर तले बनीं फिल्मों की तड़क-भड़क तो दिखती है,लेकिन इन सब बातों के बावजूद निर्देशक अपना जादू दिखाने में नाकामयाब नजर आता है।
‘शानदार’ दर्शकों को बांध पाने में असफल नजर आती है और यहीं वह सबसे खास बात है जिसके चलते विकास बहल का जादू फिका नजर आता है। ‘क्वीन’ जैसी बेहतरीन फिल्म बनाने वाले डायरेक्टर से आप ऐसी चूक की उम्मीद नहीं कर सकते। गरी छोटी दिखती है।
फिल्म शानदार कटाक्ष तो करती है,लेकिन दर्शको पर यह प्रभाव छोड़ पाने में सफल नजर नहीं आती। फिल्म का हर किरदार अपनी अजीबों-गरीब बातों के चलते परेशान है। किसी को नींद न आने की बीमारी है तो कोई अपने बढ़ते वजन के चलते परेशान है। जगजिंदर जोगिंदर (शाहिद कपूर) को रात में न सोने की बीमारी है जिसे इंसोमनिया कहते हैं और इसी बीमारी से जूझ रही हैं टाटा (पंकज कपूर) द्वारा गोद ली गई लड़की आलिया (आलिया भट्ट)। पंख की मांग करते टाटा भी अपनी पत्नी और बेटी के आगे अपने अरमानों का कत्ल कर देते हैं। इनकी एक और बेटी ईशा (सनाह कपूर) है जो अपने बढ़ते वजन के लिए थोड़ी शर्मिंदा है।
ये सब आ खड़े होते है सनाह की शादी में जो एक बिजनेस डील से ज्यादा और कुछ नहीं है। अंत में ये सब कैसे अपने सहमे हुए अरमानों को दुनिया की परवाह किए बगैर सबके सामने लाते हैं और अपनी शर्मिंदगी को अपनी ताकत बनाते हैं शानदार इसका कोलॉज आपके सामने पेश करती है।
फिल्म में जो कहानी दिखाई गई है बेशक आज के समय में यूथ की लाइफ स्टाइल और पारिवारिक तानें बानें से उपजी हुई नजर आती है, लेकिन फिल्म की पटकथा इन सब बातों को उतनी दमदार नहीं बन पाई है। फिल्म कुछ संदेश देने में असफल और समस्याओं का मजाक बनाती अधिक नजर आती है।
ऐसा नहीं है कि ये सभी बातें फिल्म में संभलती नहीं हैं। फिल्म में ऐसे कई सीन है जो आक्षेप करते हैं। अंत का सीन जहां ईशा मंडप पर अपने ‘साढ़े आठ पैक’ वाले वर के सामने अपने कपड़े उतारकार उसे मुंहतोड़ जवाब देती है वो तालिया बटोरने लायक है। इसी के साथ सभी मेहमान का शादी में अपना मुखौटा निकाल फेंकना भी ठीक बैठता है, लेकिन वहां तक आते-आते फिल्म इतनी बोझिल हो चुकी होती है कि आप उसे अपने कंधे से उतार छुटकारा पाने की चाह करने लगने लगते हैं।
वो इस वजह से, क्योकि माडर्न दिख रही इस फिल्म में 70 और 80 दशक की फिल्मकारी का मिश्रण है। फिल्म में घर की राज-रानी का रवैया किसी पुरानी फैमिली ड्रामा की खड़ूस दादी का लगता है वहीं उनकी बहू का किरदार भी किसी पुरानी फिल्म की एक लालची बहू का ही है।
सबसे ‘शानदार’ तो संजय कपूर की ‘गोल्डन’ फैमिली है जो बनावटीपन की मिसाल है। सोने की बंदूक, कपड़े और वो सब कुछ जो आप सोच भी नहीं सकते, इनकी पहचान हैं। उनको देख कर अगर आपको हंसी भी आती है तो वो भी इनकी बेवकूफियों पर जो कि जबरन फिल्म में डाली गई हैं।
हां, फिल्म में रुपए तो खूब लगे हैं और वो इसके सेट्स को देखकर लगता है। अब करण जौहर के निर्माण में साल में एक ‘कुछ-कुछ होता है’, ‘कभी खुशी कभी गम’ जैसी फिल्म न बने ऐसा तो हो ही नहीं सकता। खासतौर पर फिल्म के गाने, जिन्हें खूबसूरती से फिल्माया गया है और अमित त्रिवेदी के सुर के संग्रामों द्वारा गुनगुनाया गया है।
अदाकारी के मामले में फिल्म के कलाकार पूरी तरह निराश नहीं करते। आलिया भट्ट अपना स्वाभाविक प्रदर्शन देती हैं और उनकी हंसी पर ही आप जैसे कायल हो जाते हैं। हां, उनका किताबी कीड़ा होना आपको अचंभित जरूर करेगा।
हालांकि, शाहिद कपूर फिल्म में आई कैंडी के तौर पर ज्यादा पेश आते हैं लेकिन जैसे कि फिल्म उनसे ज्यादा मांग भी नहीं करती वैसे ही वो उसे अपना 100 प्रतिशत भी नहीं देते। ऐसा लगता है कि फिल्म ‘हैदर’ उनके लिए एक कड़ा इम्तेहान थी जिसमें पास होने के बाद वो दोबारा छुट्टियों पर चले गए है।
पंकज कपूर एक मजबूर पिता के तौर पर इंसाफ करते दिखते हैं। फिल्म में आलिया और असल जिंदगी के पुत्र शाहिद कपूर के साथ उनका मेल देखने लायक है।
अपना डेब्यू कर रही सनाह कपूर फिल्म में सरप्राइज एलीमेंट हैं। कलाकारों के अभिनय के लिए फिल्म को मैं 2 स्टार देता हूं और आधा स्टार इसमें दिखाए गए समाज के मुखौटों के लिए हालांकि वो एक असफल प्रयास ही था।