- फिल्म रिव्यू: सरफिरा
- स्टार रेटिंग: 4 / 5
- पर्दे पर: 12.07.2024
- डायरेक्टर: सुधा कोंगारा
- शैली: एडवेंचर ड्रामा
हिंदी सिनेमा में जब भी कोई रीमेक बनता है तो उसमें खामियां निकालना बेहद आसान होता है। किसी भी रीमेक को लोग पूर्वकल्पित धारणा के साथ ही देखने पहुंचते हैं। अमूमन बार यही वजह होती है कि रीमेक फेल साबित होती हैं, लेकिन सौभाग्य से अक्षय कुमार की फिल्म 'सरफिरा' हिंदी रीमेक होते हुए भी निखर के सामने आई है। 'सोरारई पोटरू' बनाने वाली निर्देशक सुधा कोंगारा ने 'सरफिरा' का निर्देशन सही दिशा में किया है, यही वजह रही कि रीमेक होने बावजूद के फिल्म असल कहानी के बिल्कुल करीब पहुंची। खैर अक्षय कुमार की फिल्म कितनी सफल है, मुख्य कास्ट की एक्टिंग कैसी है ये और कहानी किस दिशा में जा रही है ये जानने के लिए पढ़ें पूरी समीक्षा।
कहानी
'सरफिरा' जीआर गोपीनाथ की सच्ची कहानी पर आधारित है, जिन्होंने भारत में पहली कम लागत वाली एयरलाइन की शुरुआत की थी। एक छोटे से गाँव के रहने वाले गोपीनाथ के बड़े सपने थे। दर्द को जुनून बनाकर चुनौतियों को मात देते हुए इन सपनों को साकार करने की ऊँची उड़ान की कहानी ही 'सरफिरा' में दिखाई गई है। 'सरफिरा' में अक्षय कुमार एक पूर्व सेना अधिकारी वीर म्हात्रे की भूमिका निभाते हैं, जिन्हें लगातार अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है। इसके बाद भी वो कभी हर नहीं मानते। लाखों भारतीयों को सस्ती हवाई यात्रा उपलब्ध कराने की उनकी महत्वाकांक्षा एक ऐसा सपना है जिसकी सफलता की राह में कई कांटे आते हैं। सबसे बड़ा है एयर बिज़नेस ताइकून परेश गोस्वामी, जिसका किरदार परेश रावल ने निभाया है। परेश गोस्वामी सुनिश्चित करता है कि वीर जो भी कदम उठाए उसे तुरंत बड़ा झटका लगे। वीर इस लड़ाई में अकेले नहीं हैं। उसके पास उसकी साहसी पत्नी रानी (राधिका मदान) है, सगे दोस्त हैं और उसके हर प्रयास का समर्थन करने वाली माँ का आशीर्वाद है। इसके अलावा गांववालों की हमदर्दी भी है। बार-बार परेश वीर की आत्मा को झगझोरेगा, तड़पाएगा और चोट पहुंचाएगा लेकिन उसके जज़्बे को कमज़ोर करने के बजाए हर वार से और मज़बूत करेगा।'सरफिरा' गरीबी-अमीरी के भेदभाव को भी दिखती है और इसके साथ इसे दूर करने का बीड़ा भी उठाती है।
निर्देशन
सुधा कोंगारा का लेखन और उनके दृश्यों का मंचन ज़िंदगी के प्रति उनके सकारात्मक नज़रिये को दिखाता है। यही फिल्म का मुख्य आकर्षण है।'मेयडे' की घोषणा करने वाले विमान के पहले दृश्य से लेकर वीर की मानसिकता और उसके कभी न हार मानने वाले जुनून को गहराई से दिखाने में सुधा ने सफलता हासिल की है। एम्बिशन को विज़न के साथ पूरा करने की कहानी कहने में निर्देशक सफल हैं। फिल्म कई सामाजिक मुद्दों पर गहराई से बात करते हुए एक टूक बात करती है। अमीरी-गरीबी की आर्थिक असमानता के साथ फिल्म महिला के पुरुष के फैसले में शामिल होते हुए भी सशक्त होने की नई परिभाषा पेश कर रही है। ये एक ऐसी महिला की बात करती है जो पुरुष के साथ कदम से कदम मिलाकर तो चलती ही है, लेकिन जब पुरुष पर मुसीबत आती है तो उसकी ढाल भी बनती है। सुधा कोंगारा एक महिला हैं, शायद यही वजह है कि ऐसी महिला का वो सटीक चित्रण कर सकीं। कुल मिलकर फिल्म का निर्देशन सधा हुआ है यही वजह है कि इमोशनल और रुलाने वाले सीन्स के बाद भी फिल्म बांधे रखती है।
अभिनय
निर्देशक कोंगारा कॉन्टेंट कुमार को वापस लाने में नहीं चुकी हैं। फिल्म आपको एयरलिफ्ट, बेबी और रुस्तम वाले अक्षय कुमार की याद दिलाएगी। अक्षय कुमार के इसी कमबैक का लोगों को इंतज़ार था। अभिनेता ने ठोस वापसी की है। भावनात्मक दृश्यों में वो कमाल के हैं, कई जगह उनकी उदासी आपको रुलाएगी भी। अक्षय का एक भावनात्मक सीन है जब वह अपनी मां के सामने रोते हैं, जिसे शानदार सीमा बिस्वास ने निभाया है। इस सीन में दोनों की ईमानदारी देखने को मिलती है। अपने सुपरस्टार के दर्जे के बावजूद एक आम आदमी के रूप में अक्षय फब रहे हैं, यही वजह रही कि वो सही भाव जाहिर कर सके। राधिका मदान का प्रदर्शन बिल्कुल शानदार है जो आपको आश्चर्यचकित करता है। ये एक्ट्रेस के हिस्से में आया अब तक का सबसे बेहतरीन किरदार कहा जा सकता है। अक्षय और राधिका की जोड़ी और गज़ब का तालमेल पूरी फिल्म में देखने को मिल रहा है। एक सरफिरे के साथ राधिका एक सरफिरी लगी हैं। एक सरफिरे को वीर बनने का बल एक रानी ही दे सकती है और इस लाइन के मायने राधिका सटीक तरीके से समझा रही हैं। अक्षय के साथ उनकी जुगलबंदी, रोमांटिक टाइमिंग और सिनेमाई केमिस्ट्री हलके और खूबसूरत पल दिखती है या कह लें कि गर्मी में ठंडक का अहसास देती है। परेश रावल हमेशा कि तरह मजबूत, मंझे और एफर्टलेस हैं। यही वजह है कि उन्हें अभिनय के दिग्गजों में गिना जाता है। अक्षय के दोस्त के किरदार में अनिल चरणजीत, कृष्णकुमार बालासुब्रमण्यम और सौरभ गोयल सच्चे दोस्त की मिसाल पेश कर रहे हैं। तीनों के किरदार प्रभावी और छोटे रोल में भी आई कैचिंग हैं।
कमियां
फिल्म में बहुत गाने हैं जो थोड़ा भटकाते हैं। इन गानों को हटा के फिल्म का स्क्रीन टाइम 15 मिनट तक घटाया जा सकता था, जो कहानी को और क्रिस्प बना देता। फ़िलहाल फिल्म का टाइटल ट्रैक और कुछ गाने प्रभावी भी हैं। वैसे कमियां कम ही हैं क्यूंकि अक्षय कुमार असल कहानियां प्रदर्शित करने में माहिर जो ठहरे।
सारांश
कुल मिलकर 'सरफिरा' एक मस्ट वॉच फिल्म है, जो कई संदेश देने में सफल है। फिल्म की कहानी चुनौतियों से लड़ने का जज़्बा देती है। इसे हम 4 स्टार दे रहे हैं।