- फिल्म रिव्यू: saala khadoos
- स्टार रेटिंग: 2.5 / 5
- पर्दे पर: Jan 29, 2016
- डायरेक्टर: सुधा कोंगारा
- शैली: स्पोर्ट्स ड्रामा
सुधा कोंगारा की फिल्म ‘साला खड़ूस’ मुक्केबाजी के एक मुकाबले जैसी है, जिसमें रोमांच का वादा तो किया गया है, लेकिन इसमें ऐसे मुक्के कम ही हैं, जो कहीं कोई प्रहार करते हों या अपना निशान छोड़ते हों। फिल्म को एक कमजोर कहानी के ईद गिर्द बुना गया है, जो बस बीच-बीच में कहीं कहीं दर्शकों को बांध पाती है।
फिल्म में गंभीरता या नएपन जैसी ीबात बहुत कम है और इस कमी को पूरा करने के लिए फिल्म में खतरनाक हद तक नाटकीयता को प्रयोग किया गया है लेकिन उसके लिए जिस भावनात्मक जुड़ाव की जरूरत होती है वह कहीं नजर नहीं आता। ‘साला खड़ूस’ को फिल्म के मुख्य अभिनेता आर. माधवन और राजकुमार हिरानी ने संयुक्त रूप से बनाया है।
फिल्म दो मजबूत व्यक्तित्वों के आसपास घूमती है जिन्होंने अपनी जिंदगी में काफी कठिन दौर देखा है लेकिन वह बिना लड़े मैदान छोड़ने के मूड में नहीं है। फिल्म में कहानी एक पूर्व मुक्केबाज (आर. माधवन) की है, जो खुद अपने कारणों से और कुछ लोगों की वजह से निराशा में घिरा है। दूसरी ओर चेन्नई की रहने वाली मच्छी बेचने वाली मुक्केबाज (रितिका सिंह) हैं जिसके अंदर इस खेल के लिए जन्मजात प्रतिभा है, बस जरूरत है तो उसे सही तरह से प्रशिक्षित करने की। दोनों दुनिया को फतह करने के इरादे के साथ एक दूसरे का हाथ पकड़ते हैं लेकिन अपने आप कुछ ठान लेने से कुछ नहीं होता, कीमत तो हर चीज की चुकानी पड़ती है।
‘साला खड़ूस’ भारत में खेलों में राजनीतिक दखल और चैंपियनों के लिए अवसर की कमी, दोनों मसलों को छूती है लेकिन गंभीरता के अभाव में फिल्म विषय के साथ न्याय नहीं कर पाती। यह फिल्म हाल के दिनों में खेल पर आधारित उन्हीं फिल्मों की तरह है जहां पर खिलाड़ी भ्रष्ट खेल प्रशासन से परेशान है और उसके खिलाफ विद्रोह करने को आमादा है। इस फिल्म में दोनों कलाकारों ने बढि़या काम किया है। माधव की ठहरी हुई गहरी अदाकारी जहां फिल्म देखने वालों को निराश नहीं करती वहीं रितिका की अपनेपन से भरी मासूम शख्सियत ताजगी का एहसास देती है। वैसे फिल्म उतना असर नहीं छोड़ पाती, जितनी उम्मीद लेकर लोग इसे देखने जाने वाले हैं।