- फिल्म रिव्यू: Phantom
- स्टार रेटिंग: 2.5 / 5
- पर्दे पर: 28 AUG, 2015
- डायरेक्टर: कबीर खान
- शैली: एक्शन
'बजरंगी भाईजान' के बाद कबीर खान एक ही साल में दूसरी फिल्म फैंटम लेकर आए हैं और ऐसा बहुत ही कम निर्देशक करते हुए देखें गए हैं। ये उनका आत्मा-विश्वास ही है जो उन्हें ये करने के लिए प्रेरित करता है और फैंटम में ये साफ झलकता है। दो महीने से भी कम वक्त में कबीर खान ने अपनी दूसरी फिल्म से ये साबित कर दिया है कि वो देश से जुड़े गंभीर मुद्दों को दिखाने से पीछे नहीं हटते और इसके लिए वो समय के मोहताज नहीं हैं। 2008 मुंबई हमलों को एक काल्पनिक कहानी में लपेटकर वो हमारे सामने पेश करते हैं जो कि एक अच्छी कोशिश है लेकिन बजरंगी भाईजान जैसी यादगार नहीं।
कहानी है देश में सबसे खतरनाक हमले के गुनहगारों को मौत के घाट उतारने के बारे में जो कई दूसरे देशों में रह रहे हैं। भारत की रॉ एजेन्सी इस काम को अंजाम देने के लिए एक सरफिरे भारतीय सेना के अफसर दनियाल (सैफ अली खान) को बुलाती है। दनियाल की मदद करती हैं रॉ की एजेंट रह चुकीं नवाज (कैटरीना कैफ)। मिशन की शुरुआत होती है मुंबई से, उसके बाद कारवां पहुंचता है कश्मीर, लंदन, शिकागो, बीरट, सीरीया और आखिर में पाकिस्तान।
लेखक हुसैन जैदी की किताब 'मुंबई एवेंजर्स' से उठाई गई कहानी, कबीर खान की फिल्म से काफी अलग है। 'मुंबई एवेंजर्स' जहां सच्चाई के काफी करीब थी वहीं फैंटम ज्यादा काल्पनिक है। उसके बावजूद फिल्म में देशभक्ति की जो भावना है उससे हर एक भारतीय बहुत अच्छी तरह से जुड़ सकता है।
जब भी 26/11 हमले की बात होती है, क्रोध हमारी समझदारी पर हाबी हो जाता है, पर कबीर खान और हुसैन जैदी कोशिश करते है जात-पात जैसी भावना हमारे पड़ोसी देश की शुद्धता पर दाग बिल्कुल भी न करें।
फिल्म का एक डायलॉग ये साफ करता है कि अगर हम आतंकवाद की क्रूरता के शिकार हो रहे हैं तो पाकिस्तान में तो ये राजमर्रा की कहानी है। एक पाकिस्तानी नर्स जो अपने इकलौते लड़के को LeT के मिशन के दौरान खो देती है, उसका फिल्म के क्लाइमेक्स का हिस्सा हमारी मानसिकता को बदलने के लिए काफी है। क्या पाकिस्तान के सभी लोग लश्कर के समर्थक है? जवाब है नहीं और फिल्म में ये काफी समझदारी से बताया गया है।
कबीर खान फिल्म में कैटरीना कैफ और सैफ अली खान जैसे कलाकारों पर ज्यादा निर्भर नहीं होते और ज्यादा वक्त वो फिल्म की गति को लगातार दिल दहला देने वाले एक्शन सीन्स से बढ़ाते रहते है हालांकि उनमें लॉजिक्स की कमी हैं।
लंडन में एक ऑपरेशन को आसानी से अंजाम तक पहुंचाना काफी अविश्वसनीय है। सैफ अली खान का आइएसआइ को अपनी असली जानकारी दे देना आपके गले नहीं उतरता। अलग-अलग देशों में एक्शन से भरपूर ऑपरेशन को देख आपके रोंगटे तो खड़े हो जाएंगे लेकन तर्क की कमी से आप उससे संतुष्ट नहीं हो पाते।
लेकिन फिर भी 2 घंटे 25 मिनट की इस फिल्म में काफी कुछ है आपको अंत तक बांधे रखने के लिए। फिल्म का क्लाइमेक्स काम करता है बावजूद इसके वो सच से दूर है। फिर भी पिछले कुछ साल में ऐसी कोई भी फिल्म नहीं आई जिसने 26/11 हमले में मारे गए बेगुनाहों के लिए इंसाफ की गुहार लगाई हो। फैंटम इंसाफ की मांग करती है और आपके दिलों को छूती है।
फिल्म के कलाकार निष्ठावान है और सैफ इन सबमें सबसे ऊपर। सैफ अपने कैरेक्टर में पूरे ढ़ले हुए नजर आते है हालांकी उनके बीती हुए कल में जिस मेलोड्रामा का इस्तेमाल है वो कम किया जा सकता था। लेकिन ये कोई बड़ी रुकावट का काम नहीं करती।
कैटरीना और अच्छा कर सकती थीं। वो फिल्म में अदाकारी के नाम पर कुछ भी नया नहीं पेश करती।
फिल्म का संगीत खासकर एक्शन सीन्स में कमाल है।
इस फिल्म को आप देख सकते हैं कबीर की बेहतरीन सोच के लिए जो हर भारतीय के दिमाग में एक न एक बार तो आई ही होगी। 26 नवम्बर की रात को मारे गए लोगों को इंसाफ तो जरूर मिलेगा और ये फिल्म हमें इस बात पर विश्वास दिलाती है।