![Pagglait Review](https://static.indiatv.in/khabar-global/images/new-lazy-big-min.jpg)
हल्के फुल्के अंदाज में मर्दवादी सोच पर कड़ी चोट, शानदार कलाकारों की जमात ने बांधा समां
- फिल्म रिव्यू: पगलैट
- स्टार रेटिंग: 3.5 / 5
- पर्दे पर: 26 मार्च, 2021
- डायरेक्टर: उमेश बिष्ट
- शैली: कॉमेडी-ड्राम
किसी के पति की मौत हो जाए और भी शादी के महज पांच महीनों में तो बीवी का रो रोकर बुरा हाल होता है। लेकिन लखनऊ की संध्या को रोना नहीं आ रहा। उसे पति की मौत पर न तो सदमा लगा और न शॉक। उसे बस भूख लगी है और वो भी दबा कर। पति की मौत के 13 दिनों तक के माहौल को बतौर कथानक कैसे शानदार तरीके से पेश किया जा सकता है, कोई उमेश बिष्ट से पूछे। सान्या मलहोत्रा के मुख्य किरदार से सजी फिल्म पगलैट आपको हर पल अपने आस पास के माहौल से रूबरू करवाएगी। फिल्म में एक से बढ़कर एक शानदार कलाकार है और बड़ी बात ये कि किसी ने भी निराश नहीं किया है।
चलिए जानते हैं कि कैसी है फिल्म और क्या कहती है।
फिल्म लखनऊ की संध्या (सान्या मलहोत्रा) की कहानी कही जा सकती है। संध्या एक ऐसी लड़की है जिसकी पांच महीने पहले आस्तिक नाम के युवक से शादी हुई था और पांच महीने बाद आस्तिक की मौत हो गई। आस्तिक का पूरा परिवार शोक में हैं, लखनऊ के पुश्तैनी मकान 'शांति कुंज' आस्तिक के रिश्तेदारों का तांता लग जाता है। लोग शोक जताने आ रहे हैं। सबको बेचारी बहु यानी संध्या की चिंता है। लेकिन इन सबसे अलग संध्या अपने कमरे में है। वो न शोक में है और न खुशी में। वो फेसबुक पर आस्तिक की खबर पर आए कमेंट्स पढ़ रही है। उसे चिप्स चाहिए और मनचाही खाने की चीजे। जबकि रिश्तेदार समझ रहे हैं कि वो इसलिए नहीं रो रही क्योंकि वो सदमें में है।
Classics Review Katha: चूसे हुए आम की मानिंद है 'कथा' का आम आदमी, दिखा है फारूख शेख, नसीर साहब और दीप्ति नवल का शानदार काम
परिवार में चलती इधर उधर की बातें, जायदाद की बातें, आस्तिक के बीमे के पैसे की बातें और लालच के लिए संध्या की दूसरी शादी की बातों से दर्शक समझ पाते हैं कि कैसे परिवारों में ही महिलाएं अब भी अपने लिए फैसले लेने को स्वतंत्र क्यों नहीं है।
दूसरी तरफ इन्हीं सब चीजों के बीच संध्या को पति के पुराने अफेयर के बारे में पता चलता है। वो चिंहुक उठती है और खोजने लगती है उन पुराने रिश्तों की नए परिवेश से जुडी कोई डोर। उसे पता चलता है कि पति शादी के बाद से सिर्फ उसका ही थी। पति के पुराने प्रेम की इन्हीं दरारों को खंगालते वक्त सान्या को प्रेम के नए स्वरूप की पहचान होती है।
आस्तिक के बीमे के 50 लाख पर नजर गढ़ाए चाचा जी अपने बेटे की शादी सान्या से करवाना चाहते हैं। सान्या अलग सोच में। किसी को घर चलाने की चिंता है किसी को पैसे की। मिडिल क्लास फैमिली में दर्जनों ऐसी कड़ियां है जो बाहर घूमकर आखिर में अंदर ही अंदर जुड़ जाती हैं।
ऐसे में संध्या 13वीं के दिन ऐसा फैसला करती है जो केवल उसके लिए बना है। वो दूसरों के लिए सोचने से पहले अपने लिए सोचती है क्योंकि यहां आपके लिए फैसले दूसरे लेते हैं भले ही वो आपके लिए सही हो या न हों।
साइना रिव्यू: खेल के साथ साथ देशभक्ति का भी डोज, जानिए कैसी है परीणिति चोपड़ा की फिल्म
अंत में कहानी समझा ही देती है कि अगर लड़कियां अक्ल की बात करें तो उन्हें पगलैट कहा जाता है।
जहां तक सान्या मलहोत्रा की बात है, उन्होंने फिल्म में जादू भर दिया है। आशुतोष राणा, रघुबीर यादव, राजेश तैलंग, शीबा चड्ढा जैसे बड़े कलाकारों से फिल्म भरी पड़ी है। किसी के हिस्से कम सीन आए हैं तो किसी के हिस्से ज्यादा सीन आए हैं। निर्देशन करने के साथ साथ पटकथा भी उमेश बिष्ट ने ही लिखी है और उसकी कसावट फिल्म को शानदार बना देती है।