- फिल्म रिव्यू: पागलपंती
- स्टार रेटिंग: 1.5 / 5
- पर्दे पर: Nov 22, 2019
- डायरेक्टर: अनीस बज्मी
- शैली: कॉमेडी/ड्रामा
"इस मतलबी दुनिया में अगर कोई बेमतलब की बात बोल जाए तो उस बेमतलबी बात का भी कोई मतलब होता है..." भले ही इस डायलॉग में काफी दम हो, लेकिन 'पागलपंती' देखने के बाद ऐसा लगा कि स्क्रिप्ट राइटर को कहानी से कोई मतलब ही नहीं है। फिल्म में अरशद वारसी, सौरभ शुक्ला और अनिल कपूर जैसे उम्दा कलाकार हैं, जो लगभग हर शैली की फिल्मों को अपना बना लेते हैं। जॉन अब्राहम और पुलकित सम्राट का चार्म है। इलियाना डिक्रूज, कृति खरबंदा और उर्वशी रौतेला की ब्यूटी का तड़का भी खूब डाला गया है। एक्शन है। हॉरर है। शेर वाला सीन भी है। कॉमेडी है, लेकिन मजबूत कहानी के बिना सिर-पैर की ये 'पागलपंती' बेमतलब की लगेगी।
कहानी
फिल्म की कहानी शुरू होती है जंकी (अरशद वारसी) और चंदू (पुलकित सम्राट) के इंट्रोडक्शन से, जिन्होंने अपने मां-बाप का पैसा अपने दोस्त राज किशोर (जॉन अब्राहम) के बिजनेस पर लगाया है। फिल्म में एक पंडित है, जो शुरुआत में ही बता देते हैं कि राजकिशोर पर साढ़े साती चल रही है और वो जिसके पास जाता है, वो बर्बाद हो जाता है। पहले तो जंकी और चंदू का पैसा डूब जाता है। फिर तीनों जुगाड़ करके संजना (इलियाना डिक्रूज) और उसके मामा (बृजेंद्र काला) को जाल में फंसा लेते हैं और नया बिजनेस शुरू करते हैं, लेकिन कुछ ऐसा होता है, जिसकी वजह से उनसे 7 करोड़ का नुकसान हो जाता है। इसकी भरपाई के लिए उन्हें गैंगस्टर राजा साहब (सौरभ शुक्ला) और उनके साले वाई-फाई भाई (अनिल कपूर) का नौकर बनना पड़ता है, लेकिन राजकिशोर की साढ़े साती उन पर भी भारी पड़ती है और फिर कहानी में कई ट्विस्ट आते हैं।
डायरेक्शन
'पागलपंती' को अनीस बज्मी ने डायरेक्ट किया है। भूषण कुमार, कृष्णा कुमार के बैनर टी-सीरीज और कुमार मंगत पाठक, अभिषेक पाठक के बैनर पैनोरोमा स्टूडियो के तहत प्रोड्यूस किया गया है। 'सिंह इज किंग' और 'वेलकम' जैसी सुपरहिट फिल्में देने वाले अनीस बज्मी इस बार चूक गए। पूरी फिल्म बिखरी-बिखरी लगती है। अंत में जाकर कहानी को देशभक्ति का मोड़ देना बेहद बचकाना है। अनिल कपूर, सौरभ शुक्ला और अरशद वारसी जैसे कलाकारों की एक्टिंग को और निखारा जा सकता था, लेकिन उन्हें स्क्रीन पर कम समय दिया गया। इलियाना, उर्वशी और कृति के हिस्से में तो 3-4 से ज्यादा डायलॉग्स आए ही नहीं। फिल्म की शूटिंग बहुत ही अच्छे लोकेशंस पर गई हैं, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट के कारण बड़े-बड़े पैलेस, महंगी गाड़ियां और अफ्रीकन शेर भी फीके लगते हैं।
एक्टिंग
अरशद वारसी की कॉमिक टाइमिंग और वन लाइनर आपको हंसाएंगे। अनिल कपूर पहले भी कॉमेडी वाली फिल्में कर चुके हैं। इसलिए उन्हें देखकर ऐसा लगा कि उनसे और अच्छा काम कराया जा सकता था। सौरभ शुक्ला ने शानदार एक्टिंग की है। जॉन अब्राहम अब कॉमेडी से ज्यादा गंभीर मुद्दों वाली फिल्मों में अच्छे लगते हैं। फिल्म में नीरज मोदी का रोल निभाने वाले इनामुल्लाहक अपने किरदार में खूब जमे हैं। इलियाना डिक्रूज, कृति खरबंदा और उर्वशी रौतेला को ज्यादा कुछ करने का मौका नहीं मिला।
डॉयलॉग्स
कॉमेडी फिल्मों में दर्शकों का ध्यान सबसे ज्यादा डायलॉग्स ही खींचते हैं। 'पागलपंती' की बात करें तो इसमें कुछ ही वन लाइनर्स और पंच अच्छे हैं, बाकि डायलॉग्स लोगों को हंसा नहीं पाते हैं।
म्यूजिक
इस फिल्म में सलमान खान की मूवी का हिट सॉन्ग 'तुम पर हम हैं अटके यारा' का रीमिक्स है। 'बीमार दिल' का म्यूजिक अच्छा है। 'वल्ला वल्ला' और 'ठुमका' गाना ठीक-ठाक है, लेकिन फिल्म में इन गानों की टाइमिंग सही नहीं है। ऐसा लगता है कि गानों ने मूवी की ड्यूरेशन बढ़ाने से ज्यादा और कुछ नहीं किया है।
फिल्म में कमियां
'पागलपंती' में जमकर मस्ती और पागलपंती है, लेकिन इसकी कहानी कमजोर है। यही वजह है कि 2 घंटे और 40 मिनट तक सीट पर बैठे रहना मुश्किल है। कॉमेडी का तड़का भी उतना नहीं डाला गया है, जितना होना चाहिए था। मल्टीस्टारर मूवी होने के बावजूद कोई भी किरदार दर्शकों को खुद से जोड़ नहीं पाया। जबरदस्ती के गानों की वजह से बिना वजह फिल्म की टाइमिंग बढ़ गई है, जो इसे बोरिंग बना देती है।
क्यों देखें फिल्म
अगर आप जॉन अब्राहम, अनिल कपूर, अरशद वारसी, इलियाना डिक्रूज और कृति खरबंदा के फैन हैं तो ही मूवी देखने जाएं।