- फिल्म रिव्यू: मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे
- स्टार रेटिंग: 3.5 / 5
- पर्दे पर: मार्च 17, 2023
- डायरेक्टर: आशिमा छिब्बर
- शैली: बायोग्राफी, ड्रामा
Mrs Chatterjee Vs Norway Movie Review: मिसेस चैटर्जी वर्सेस नॉर्वे सागरिका चक्रवर्ती की लिखी किताब 'द जर्नी ऑफ अ मदर' पर आधारित है। सागरिका एक एनआरआई है जिसके बच्चों को 2011 में नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज के तरफ से इसलिए छीन लिया गया था। क्योंकि उन्हें लगता था कि सागरिका एक अच्छी मां नहीं हैं और वह अपने बच्चों का ध्यान अच्छी तरह से नहीं रख पा रही हैं। इस पूरी प्रक्रिया में सागरिका को मानसिक रूप से अस्थिर भी साबित कर दिया गया था।
सागरिका की 2 साल का स्ट्रगल, विदेश मंत्रालय का हस्तक्षेप साथ ही नॉर्वे सरकार और उनके पति के परिवार दोनों के साथ अदालती लड़ाई के बाद सागरिका को अपने बच्चे वापस मिले थे। इस केस को लेकर देश दुनिया की तमाम मीडिया के जरिए काफी बातचीत भी हुई थी। अब फिल्म 'मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे' में इस पूरी जंग को दिखाया गया है।
क्या है फिल्म की कहानी
सागरिका के फिल्मी किरदार का नाम देबिका चटर्जी (रानी मुखर्जी) है, उसका पति अनिरुद्ध (अनिर्बान भट्टाचार्य) है, और बार्नवरनेट का नाम वेलफ्रेड रखा गया है। देविका अपने पति के साथ नॉर्वे में रहने आती है, वह एक मिडिल क्लास बंगाली हाउसवाइफ है जो शायद पहली बार अपने देश से बाहर अपने दायरे से बाहर निकल कर एक नई दुनिया में प्रवेश करती है। भारतीय कल्चर के अनुसार वह अपने बच्चे को हाथ से खाना खिलाती है, गाल या सर पर काला टीका लगाती है वगैरह। इतना ही नहीं यहां सागरिका के पति अनिरुद्ध पर भी डोमेस्टिक वायलेंस, पत्नी की मदद न करने का आरोप लगाया जाता है। साथ ही यह साबित करने की कोशिश की जाती है कि यह दोनों अपने बच्चों का ख्याल भली-भांति नहीं रख पा रहे हैं, इसलिए चाइल्ड वेलफेयर सर्विस की टीम इन पर लगातार नजर रखती है और अंततः वह उनके बच्चों को लेकर चली जाती है। फिर शुरू होती है ऐसी मां की लड़ाई। देविका कभी पोस्टर होम जाकर अपने बच्चों को चोरी से उठा लाती है तो कभी अदालत में चीखना चिल्लाना और तमाशा करने पर उतारू हो जाती है। पति के घर से भी सहारा ना मिलने पर उसकी लड़ाई और आगे तक जाती है और अंततः अपने बच्चों को लाने में कामयाब होती है।
कैसा है आशिमा छिब्बर का डायरेक्शन
चूंकि फिल्म की कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है और सागरिका ने इस फिल्म को तहे दिल से स्वीकार किया है तो कहानी पर किसी तरह का सवाल नहीं उठाया जा सकता है। निर्देशक आशिमा छिब्बर ने इस इमोशनल जर्नी को बहुत ही सेंसिटिव तरीके से हैंडल किया है मगर ऑडियंस के पॉइंट ऑफ यू से कुछ बातें जिसकी क्लियरिटी होनी चाहिए थी उसमें आशिमा छिब्बर ने थोड़ी कमी छोड़ दी। एग्जीक्यूशन थोड़ा बेहतर हो सकता था। फिल्म बाल कल्याण घोटाले से जुड़ी हुई है, लेकिन इससे बहुत गहराई से दिखाया नहीं गया है। एक देश जो इस तरह के कड़े नियम रखता है और एक मां से अपने बच्चों को जुदा करने में जरा भी रहम नहीं करता। वह ऐसा क्यों करता है इसकी पड़ताल अगर थोड़ी दिखाई जाती तो अच्छा रहता। कुछ लोग कह रहे हैं की फिल्म थोड़ी लाउड जरूर लग रही है लेकिन जरा सोचिए यह उस मां की कहानी है जिसके लिए उसकी दुनिया ही लुट गई हो और जो एक ऐसे प्रांत से आ रही हो जहां पर इस तरह की नाइंसाफी होने पर ऐसी ही प्रतिक्रिया देखने को मिलती है। वहां किस तरह से ध्यान रखा जाए कि आप को तेज बोलना चाहिए या फिर धीमा?
रानी की एक्टिंग ने फिर जीता दिल
अपनी पहली फिल्म से ही रानी मुखर्जी ने महिला प्रधान फिल्मों को एक नया मुकाम दिया है। 'राजा की आएगी बारात', 'मर्दानी', 'हिचकी', 'ब्लैक' या फिर उनकी अन्य फिल्में.. मिसेस चैटर्जी के रूप में भी रानी मुखर्जी ने कमाल का परफॉर्मेंस दिया है। उनकी अदायगी में खूबसूरती यही है कि वह अपने किरदार में इस तरह से रम जाती हैं कि वह एक कमर्शियल एक्ट्रेस या सुपरस्टार के इमेज को पीछे छोड़ आती है। रानी के पावरफुल एक्टिंग और किरदार के फेहरिस्त में 'मिसेस चैटर्जी...' भी अब शामिल है।
देविका चैटर्जी के पति के किरदार में अनिर्बन भट्टाचार्य ने अपने रोल के साथ जस्टिस किया है। दिवंगत नेता सुषमा स्वराज के योगदान से प्रेरित किरदार निभाने वाली नीना गुप्ता का कैमियो भी अच्छा है जो फिल्म में एक अहम मोड़ लेकर आती है। जिम सर्भ अपना काम बखूबी जानते हैं और इस फिल्म में भी वकील के रूप में उन्होंने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है काश उनके किरदार को और थोड़ी जगह मिलती। भारतीय वकील के किरदार में बालाजी गौरी का नाम स्पेशल मेंशन करना चाहूंगी।
ये हैं फिल्म की स्ट्रेंथ
- रानी मुखर्जी को एक वक्त के बाद बड़े पर्दे पर सशक्त किरदार में देखना।
- एक बेहद इमोशनल फिल्म जो आपके दिल को छूती है।
- कोर्टरूम ड्रामा जबरदस्त है।
- नए देश के नियमों को लेकर डरने की जरूरत नहीं बल्कि जागरूक होने की जरूरत है।
ये रह गईं कमियां
- फिल्म को थोड़ा सब प्लॉट की जरूरत है स्क्रीनप्ले थोड़ी बेहतर हो सकती थी।
- अमित त्रिवेदी का संगीत ठीक-ठाक है। एक गाने के अलावा कुछ और याद नहीं।