- फिल्म रिव्यू: नो फादर्स इन कश्मीर
- स्टार रेटिंग: 3.5 / 5
- पर्दे पर: 5 अप्रैल 2019
- डायरेक्टर: अश्विन कुमार
- शैली: ड्रामा
Movie Review No Fathers In Kashmir: कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है, लेकिन निर्देशक अश्विन कुमार ने हमें 'नो फादर्स इन कश्मीर' के जरिए एक अलग कश्मीर की झलक दिखाई गई है। फिल्मों में कश्मीर के हालात को अब संजीदगी से लिया जाने लगा है। हाल ही में रिलीज हुई 'हामिद', 'नोटबुक' और अब 'नो फादर्स इन कश्मीर' इसी की कोशिश है। अश्विन कुमार ने फिल्म 'नो फादर्स इन कश्मीर' कश्मीर घाटी का अलग चेहरा प्रस्तुत किया है। इस फिल्म में उन फादर्स, उन हस्बैंड्स और उन बेटों की कहानी दिखाई गई है जिन्हें आर्मी आंतकी मानकर उठा लेती है।
अश्विन जिस तरह से कहानी प्रजेंट करते हैं ये आपको बिल्कुल रियल लगती है। चाहे वो लोकेशन्स हो या एक्टर्स का अभिनय, सब बिल्कुल नैचुरल है। अश्विन के काम में ईमानदारी दिखती है। उन्होंने इस मुद्दे पर फिल्म बनाने के लिए अश्विन ने 2 साल रिसर्च की और साल स्क्रिप्ट लिखी और फिर 1 साल फिल्म को शूट करने में लगाया। 5 साल की ये मेहनत आप जब देखेंगे तो वाह कह उठेंगे। आश्विन कुमार इससे पहले 'इंशाअल्लाह फुटबॉल' और 'इंशाअल्लाह कश्मीर' बना चुके हैं। अश्विन को दो नेशनल अवॉर्ड मिल चुका है, उनकी शॉर्ट फिल्म 'लिटिल टेररिस्ट' को ऑस्कर का नॉमिनेशन भी मिला था।
कहानी
'नो फादर्स इन कश्मीर' 16 साल की नूर (जारा वेब) के नजरिये से दिखाई जाती है। नूर अपनी मां (नताशा मागो) और होने वाले सौतेले पिता के साथ अपने पुश्तैनी घर दादा-दादी (कुलभूषण खरबंदा) और (सोनी राजदान) के पास कश्मीर आती है। उसे बताया गया था कि उसके अब्बा उसे छोड़कर गए हैं लेकिन यहां आने के बाद उसे पता चलता है कि उसके पिता आर्मी द्वारा उठा लिए गए हैं। सिर्फ उसके पिता ही नहीं कश्मीर में कई ऐसे परिवार हैं जिनके बेटे, पिता और भाई को आर्मी द्वारा उठा लिया गया है। उनकी पत्नियां आधी विधवा और आधी शादीशुदा जैसी जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। यहां उसकी मुलाकात माजिद (शिवम रैना) से होती है, उसके पिता भी गायब हैं। दोनों के पिता के पक्के दोस्त आर्शिद (अश्विन कुमार) से मिलने पर नूर को कश्मीर की एक नई असलियत पता चलती है।
निर्देशक अश्विन कुमार तारीफ के काबिल हैं जो उन्होंने कश्मीर की जटिलता दिखाने के साथ-साथ वहां के रिश्तों की नाजुक डोर और मजबूरी की गांठें भी दिखाई है। फिल्म की शुरुआत बहुत अच्छी होती है लेकिन बीच में फिल्म अपना रास्ता खो देती है। लेकिन फिल्म खत्म होने से आधे घंटे पहले जबरदस्त वापसी करती है और आपको हर सीन में हैरान करने और इमोशनल करने का माद्दा रखती है। एक सीन में जब माजिद की मां अपने बेटे के लिए रोती है वो सीन आपके रोंगटे खड़े कर देगा। और आर्मीमैन का डायलॉग जब वो कहता है ''यहां का हर गांव वाला यहां का निवासी भी है और दुश्मन भी, किसकी मैं रक्षा करूं और किससे लड़ाई करूं?'' आपको कश्मीर में आर्मी और वहां के निवासियों के बीच हालात को दर्शाने के लिए काफी है।
फिल्म के दोनों लीड किरदार जारा वेब और शिवम रैना (माजिद का रोल निभाने वाले एक्टर) ने दमदार एक्टिंग की है। दोनों को ही देखकर लगता है कि यह वाकई उसी परिस्थिति में हैं, लगता ही नहीं कि ये दोनों अभिनय कर रहे हैं। जारा अपनी खूबसूरत आंखों से आपका दिल जीत लेंगी। सोनी राजदान के हिस्से ज्यादा काम नहीं आया है लेकिन जितना आया है वो उन्होंने बखूबी निभाया है। कुलभूषण खरबंदा और अश्विन कुमार ने भी जबरदस्त काम किया है।
अगर आप रियलिस्टिक सिनेमा देखने के शौकीन हैं और मसाला फिल्मों से हटकर फिल्में देखना पसंद करते हैं तो आप ये फिल्म जरूर देखिए। आप देखेंगे तभी ऐसी रियलिस्टिक फिल्में बनेंगी। इंडिया टीवी इस फिल्म को दे रहा है 5 में से 3.5 स्टार।
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