- फिल्म रिव्यू: बाबूमोशाय बंदूकबाज
- स्टार रेटिंग: 3.5 / 5
- पर्दे पर: 25 अगस्त 2017
- डायरेक्टर: कुशान नंदी
- शैली: ऐक्शन-थ्रिलर
‘इंसान तो करके भूल जाता है लेकिन एक दिन उसका किया घूमकर वापस जरूर आता है।‘ ये लाइन आपने जरूर कई बार कई लोगों के मुंह से सुनी होगी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ इसी डॉयलॉग को चरितार्थ करती है। कुशान नंदी इस बार बिल्कुल देसी फिल्म लेकर हमारे सामने आए हैं। निर्देशक ने फिल्म का बहुत करीने से बुना है, फिल्म में उनकी मेहनत साफ नजर आती है। लंबे वक्त बाद एक ऐसी फिल्म आई है जिसका फर्स्ट हाफ जितना अच्छा है सेकंड हाफ भी उतना ही मजबूत है। ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ की कहानी एक कॉन्ट्रैक्ट किलर, उसके चेले और उसकी माशूका के इर्द गिर्द घूमती है। कहानी में मोहब्बत है, नफरत है बेवफाई है और बदला है।
क्या है कहानी में खास?
कहानी बाबू बिहारी (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) नाम के एक कॉन्ट्रैक्ट किलर की है, जिसे चश्मा लगाने का बहुत शौक है। वो 25 हजार लेकर किसी को भी मौत के घाट उतार सकता है। बाबू देसी नेता जीजी (दिव्या दत्ता) के लिए काम करता है। इसी बीच बाबू की मुलाकात फुलवा (बिदिता बाग) से होती है। दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है और फुलवा का बदला लेने के लिए बाबू दो ऐसे लोगों को मार देता है जो जीजी का खास होता है। इसके बाद बाबू बिहारी और जीजी में झगड़ा हो जाता है और बाबू उसके लिए काम करना बंद कर देता है। इसके बाद एंट्री होती है खुद को बाबू बिहारी का चेला कहने वाले बांके बिहारी (जतिन) की। फिल्म में आगे कई सनसनीखेज खुलासे होते हैं, जो हम आपको यहां नहीं बता सकते हैं।
इंटरवल के पहले तक जहां फिल्म हल्के-फुल्के डायलॉग और रोमांटिक सीन के साथ हमारा मनोरंजन करती है, वहीं इंटरवल के बाद फिल्म सीरियस हो जाती है। खास बात यह है कि दोनों ही पार्ट आपको बांधे रखेंगे और फिल्म के दोनों ही पार्ट काफी मजबूत हैं। फिल्म का अंत हैरान करने वाला है। काफी समय बाद बॉलीवुड में ऐसी फिल्म आई है जिसमें छोटी से छोटी चीज का ख्याल रखा गया है।
एक्टिंग में कितना है दम?
फिल्म के हीरो नवाजुद्दीन सिद्दीकी हैं। नवाज की खासियत ही यही है कि वो हीरो कम और अभिनेता ज्यादा हैं। जितने सहज अंदाज में वो डायलॉग बोलते हैं,लगता ही नहीं कि वो एक्टिंग कर रहे हैं। जब वो कहते हैं कि ‘कालापन डिमांड में है आजकल’ और ‘माना की टाल नहीं लेकिन डार्क और हैंडसम तो हैं, तभी तो लड़कियां हमपर मरती है।‘ तो हंसी आ जाती है। एक्टिंग में नवाज का भरपूर साथ दिया है बिदिता बाग ने। फुलवा के किरदार में वो बहुत अच्छी लगी हैं। फिल्म में जतिन सरप्राइज पैकेज की तरह सामने आते हैं, उन्होंने कई जगह हैरान किया है। श्रद्धा दास अच्छी लगी हैं। दिव्या दत्ता ने भी देसी नेता के रूप में अच्छा काम किया है। फिल्म में तारा शंकर चौहान पुलिस अधिकारी हैं। उनके घर में बेटी के चक्कर में बेटों का अंबार लगा है, जो लगातार जारी है। गलत वक्त पर उनकी बीवी का फोन आना और उनके फोन की रिंगटोन और उनका फोन में नंबर सेव करने का तरीका आपको हंसाएगा।
डायलॉग्स हैं निराले
फिल्म में वनलाइनर और चुटीले डायलॉग्स का भरपूर इस्तेमाल हुआ है, जो पूरी तरह से सीटीमार और पैसा वसूल है। ‘हम तो आउटसोर्सिंग करते हैं यमराज के लिए।‘ और ‘काहे घबरा रहे हो, फ्री में थोड़ी मारेंगे, एक ही का पैसा मिला है।‘ जैसे डायलॉग आपका खूब मनोरंजन करेंगे।
म्यूजिक और गाने
फिल्म के गाने अच्छे हैं। फिल्म में गानों की भरमार नहीं हैं, लेकिन जब भी आते हैं हमें बांधकर रखते हैं। ‘बर्फानी’ और ‘सैंया’ गाना अच्छा लगता है। ‘घुंघटा’ गाना पहले ही हिट है।
कमियां
फिल्म में हिंसा बहुत ज्यादा दिखाई गई है। इंटरवल के बाद का खून खराबा आपको विचलित कर सकता है। खासकर जीजी और पुलिसवाले की मौत का सीन भयावह है।
क्यों देखें?
लंबे समय बाद ऐसी फिल्म आई है जो हर लिहाज से काफी मजबूत है। फिल्म के हर सीन पर की गई मेहनत साफ दिख रही है। ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ इस साल की बेहतरीन फिल्मों में से एक है। अगर आपको 'गैंग ऑफ वासेपुर' पसंद आई थी तो ये फिल्म भी आप एन्जॉय करेंगे।
-ज्योति जायसवाल
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