Thursday, November 21, 2024
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न गुड्डू...न कालीन भैया, मिर्जापुर की गद्दी का असली बाहुबली कौन? पल-पल बदलेंगे डायनेमिक्स, नए मोड़ पर आकर फिर शुरू होगा बाहुबल का किस्सा

'मिर्जापुर' के तीसरे सीजन की घोषणा ने ही लोगों को बेक़रार कर दिया था। अब सीजन अमेज़न प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रहा है। 5 जुलाई को रिलीज़ हुए तीसरे सीजन का सटीक रिव्यू आपके लिए लाए हैं।

Jaya Dwivedie
Updated on: July 05, 2024 7:36 IST
Mirzapur 3
Photo: X मिर्जापुर 3
  • फिल्म रिव्यू: मिर्जापुर 3
  • स्टार रेटिंग: 3.5 / 5
  • पर्दे पर: 5.07.2024
  • डायरेक्टर: गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर
  • शैली: क्राइम थ्रिलर

'मिर्जापुर' के दूसरे सीजन की कहानी के अंत तक कई किरदार निपट चुके थे, यानी उनके वर्चस्व का एक सिरे से खात्मा हो गया था। इस कड़ी में सबसे ज्यादा जख्मी हालत में थे कालीन भैया (पंकज त्रिपाठी), इसी बीच गुड्डू पंडित (अली फजल) नई राह पर निकल पड़े थे, एक नए बाहुबली साम्राज्य की स्थापना करने। मुन्ना त्रिपाठी (दिव्येंदु शर्मा) और बाबू जी का खात्मा त्रिपाठी परिवार की नींव को और कमज़ोर कर गया था। हमलावर गुड्डू पंडित के गोलीकांड में कालीन भैया की कहानी एक दिलचस्प मोड़ पर आकर ख़त्म हुई थी और इसी के साथ ही नए आगाज़ का बिगुल बज गया था। दर्शक इस बारे में तो आश्वस्त थे कि तीसरा सीजन आएगा, लेकिन सवाल कई थे। बाहुबल की दुनिया में किसका वर्चस्व होगा? मिर्ज़ापुर की गद्दी का हक़दार कौन होगा? कालीन भैया की बदहाली पर सवाल से लेकर छोटे त्यागी की मौत पर सस्पेंस तक हर जवाब के साथ तीसरा सीजन आ गया है... बाहुबलियों के युद्ध का बिगुल बज गया है और इसी के साथ हम फिर लौटे हैं 'मिर्ज़ापुर 3' के रिव्यू के साथ। इसे पढ़ने के साथ ही आपकी हर अटकलें दूर होंगी।

नए सीजन में क्या है खास 

पहले दो सीजन सफल रहे ऐसे में मेकर्स के सामने कुछ नया परोसने की चुनौती थी। पुराने कई मंझे कलाकारों की मौत दिखाए जाने के बाद कहानी को नया मोड़ देना था। आगे की कहानी को लेकर दर्शक पहले ही अंदाज़े लगा रहे थे, ऐसे में इस बार मेकर्स चूके नहीं हैं, कहानी को सिरे भी चढ़ाया और इसे नई दिशा भी दी है। खून-खराबे के अलावा इस बार कहानी में सच्चा प्यार, सर्वाइवल की स्स्ट्रैटेजी और खूब सारी मॉरल लर्निंग भी परोसी गई है। इतना ही नहीं कहानी नए सस्पेंस पैदा करते हुए उस मोड़ पर ख़त्म होती है जिससे जाहिर है कि नए सूरज का उदय होगा, यानी सीजन चार भी आएगा जिसमें गुड्डू पंडित और कालीन भैया के नए रूप देखने मिलेंगे। अगले सीजन की कहानी में असली तड़का सीरीज की लेडीज लगाएंगी। इस सीजन का अंत ये सीधा इशारा कर रहा है कि अब परिवर्तन होगा और महिलाएं मिर्जापुर की गद्दी संभालने का ख्वाब बुनेंगी। माधुरी यादव, गोलू, डिंपी और बीना के किरदार इस सीजन के खत्म होने तक काफी सशक्त हो जाएंगे। 

अब आते हैं तीसरे सीजन कि कहानी पर 

जौनपुर और मिर्जापुर के अलावा इस बार भी बिहार के सिवान के बाहुबलियों कि कहानी प्रमुखता से दिखाई गई है। जौनपुर के बाहुबली शरद शुक्ल (अंजुम शर्मा) का वर्चस्व बढ़ा दिखेगा।शुरुआती एपिसोड्स में सीधी लड़ाई मिर्ज़ापुर की गद्दी के लिए शरद शुक्ल और गुड्डू पंडित के बीच देखने को मिलेगी। शुरू के चार एपिसोड्स में कालीन भैया की कमी खलेगी। कहानी के पहले भाग में शरद शुक्ल को मुख्यमंत्री माधुरी यादव (ईशा तलवार) से लेकर दद्दा त्यागी (लिलिपुट फारुकी) और उनके बेटे (विजय वर्मा) का समर्थन मिलेगा, जो गुड्डू को कमज़ोर करने में कारगर साबित होगा। गुड्डू पंडित का परिवार कटता और बिखरता दिखेगा, इसका असर गुड्डू के दिल और दिमाग दोनों पर होगा। कहानी और गुड्डू पंडित की लाइफ में बड़ा रोल गोलू गुप्ता का होगा, जो न सिर्फ ढाल बनेगी बल्कि इमोशनल सपोर्ट भी देंगी। जेल में बीत रही रमाकांत पंडित यानी गुड्डू पंडित के पिता की जिंदगी कई सीख देगी। नई दुश्मनी और दोस्ती पैदा होने के साथ ही कालीन भैया का पुनर जन्म होगा। मिर्ज़ापुर को गद्दी का नया और आखिरी हक़दार भी मिलेगा। छोटे त्यागी (विजय वर्मा) की मौत पर भी खुलासा होगा, जिसे देखने के बाद आपका रिएक्शन शॉकिंग भी हो सकता है। बीना त्रिपाठी के बच्चे के असल बाप को लेकर पहले ही संदेह है, जिसका सीजन में एक क्लू मिलने वाला है। कालीन भैया अंत में पूरा खेल पलटते दिखेंगे और असल तड़का लगाने का काम उनका ही है। 

असल मज़ा क्लाइमैक्स में ही है, जो धमाका आखिर के १० मिनट में होगा उसका अंदाज़ा पूरे 10 एपिसोड में नहीं लगता यानी कहानी सस्पेंस से भरी पड़ी है। एक तरफ एक राज से पर्दा उठेगा लेकिन वहीं दूसरी तरफ सस्पेंस तैयार खड़ा मिलेगा जो कहानी को अंत तक बांधे  रखेगा और जरा भी बोझिल नहीं होने देगा, यानी इस बार भी कहानी में दम है और आप इसे बिंज वॉच कर सकते हैं। फ़िलहाल ये कहना हरगिज़ गलत नहीं होगा कि इस बार इसे अलग धारा देने की कोशिश की गई है। कहानी को आप उत्तर प्रदेश की हालिया राजनीति से भी जोड़ के देख पाएंगे। बार -बार हो रही भयमुक्त प्रदेश की बात योगी राज की याद दिलाएगी। प्रशाशन का बाहुबलियों में डर भी देखने को मिलेगा जो उत्तर प्रदेश में अतीक अहमद की मौत के बाद दिखा। दल बदल वाले मुद्दे की भी झलक दिखती है। ये सारी बातें इस सीजन को हालिया परिस्थितियों से रिलेटेबल बना रही हैं।  

एक्टिंग और डायरेक्शन 

एक्टिंग और डायरेक्शन के मामले में टमिर्जापुर-3' को वैसे ही फुल नंबर मिलते हैं जैसे गुड्डू भैया को चाहिए फुल इज़्ज़त। अली फजल पहले से ज्यादा पावरफुल लगने के साथ ही गंभीर होते नज़र आएंगे, लेकिन इस बार भी भौकाल टाइट है। उनकी एक्टिंग तो एक नंबर है और उनके डायलॉग भी असरदार हैं। पंकज त्रिपाठी का किरदार इस बार पहले की अपेक्षा कम दिखा है लेकिन वो कुछ सीनों में ही अपनी नई और पहले ज्यादा प्रभावी छवि स्थापित करने में कामयाब हो ही गए हैं। शरद के किरदार में नज़र आने वाले अंजुम शर्मा को अच्छा स्क्रीन टाइम मिला है और वो इसका पूरा-पूरा फ़ायदा उठा रहे हैं। अली फजल के सामने वो कहीं भी उन्नीस नहीं पड़े हैं, इस सीजन की कहानी में वो निखर के सामने आए हैं। विजय वर्मा कई इमोशन दिखाने में सफल हैं, उनका किरदार एक बेहतर छवि की ओर बढ़ता दिख रहा है। गोलू गुप्ता का किरदार निभाने वाली श्वेता त्रिपाठी ही इस सीजन की असल बाहुबली यानी लीडिंग लेडी हैं। हर परिस्थिति में उनकी हाज़िरजवाबी आपको इम्प्रेस करेगी। ईशा तलवार ने लंबी स्क्रीन टाइमिंग का अच्छा इस्तेमाल किया है। माधुरी यादव के रोल के लिए वो परफेक्ट हैं। रसिका दुग्गल इस बार भी दिल जीतने से नहीं चूक हैं। गुड्डू पंडित की बहन डिम्पी का किरदार निभाने वाली हर्षिता गौर कुछ ही सीन्स में असरदार हैं। गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर के डायरेक्शन में कमी खोजना जरा भी आसान नहीं है। कहानी को गढ़ने में ये एक चिड़िया की तरह हैं जो अपने घोसले को बारीकी से रचती है। 

क्या रहा हल्का?

पंकज त्रिपाठी को स्क्रीन पर कम दिखाया जाना जरूर खलेगा। उनकी प्रभावी एक्टिंग रह-रह कर याद आएगी। 'केकड़ा माने आशिकी', 'सिवान में कोई त्यागियों से गद्दारी करे इतना पोटाश किसी के पिछवाड़ा में है नहीं', 'पत्ते खेलते हैं, किस्मत वाले नहीं गूदे वाले...', 'सर्वाइवल के जो जरुरी है वही उसूल है', जैसे फिल्म में कई दमदार डायलॉग जरूर हैं लेकिन पहले दो सीजन वालों की तरह मींम मेकर नहीं हैं, जिसके चलते मामला थोड़ा ठंडा पड़ता है। इसके हर एपिसोड लगभग एक घंटे के हैं, बस अच्छे डायरेक्शन के चलते ये बोझिल होने से बचे हैं।    

लब्बोलुबाब

एक बार फिर कहानी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचेगी जो थोड़ा निराशाजनक जरूर है लेकिन जिस नए और दिलचस्प मोड़ पर यह सीजन खत्म हो रहा है, यह आपके अंदर जिज्ञासा पैदा जरूर करेगा और आप पूछेंगे कि अब आगे क्या होगा? और यही इसका एक्स फैक्टर है। ऐसे में इस सीजन के लिए 3.5 स्टार्स बनते हैं।

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