- फिल्म रिव्यू: मरजावां
- स्टार रेटिंग: 2 / 5
- पर्दे पर: Nov, 15, 2019
- डायरेक्टर: मिलाप झावेरी
- शैली: ड्रामा/थ्रिलर
Marjaavaan Review: 'मारूंगा तो मर जाएगा, दोबारा जन्म लेने से डर जाएगा...', 'मंदिर और मस्जिद दोनों मिलेंगे, गुजरेगा इस देश की जिस गली से...' कुछ इसी तरह के डायलॉग्स आपको पूरी फिल्म में मिलेंगे, लेकिन नहीं मिलेगी तो वो है अच्छी स्क्रिप्ट। जी हां, अगर आप 'मरजावां' का ट्रेलर देखने के बाद ये सोचकर मूवी देखने गए हैं कि एक शानदार कहानी देखने को मिलेगी तो आप निराश हो सकते हैं। फिल्म में एक्शन, इमोशंस, डायलॉग्स, रोमांस और डांस का तड़का भी है, लेकिन निर्देशक मिलाप झावेरी दर्शकों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए। पुरानी घिसी-पिटी प्रेम कहानी को सिर्फ एक नए टाइटल के साथ परोसा गया है। हालांकि, रितेश देशमुख ने अपने किरदार के साथ इंसाफ किया है और वे बौने के किरदार में छा गए हैं।
कहानी
फिल्म की कहानी शुरू होती है, रघु (सिद्धार्थ मल्होत्रा) और ज़ोया (तारा सुतारिया) के इंटरवेल वाले सीन से। जी हां, इस सीन में रघु अपनी प्रेमिका ज़ोया को खुद गोली मार रहा है। इसके बाद दिखाते हैं 6 महीने पहले का फ्लैशबैक। मुंबई में वॉटर सप्लाई का धंधा करने वाले नारायण अन्ना (नास्सर) से लोग डरते हैं। उन्होंने रघु को गटर के पास से उठाया था और पाल-पोस कर बड़ा किया। इसीलिए रघु उनका कर्ज़ अदा करता है। वो अन्ना के किसी भी काम में आने वाली बाधा को खत्म कर देता है, लेकिन अन्ना का बेटा विष्णु (रितेश देशमुख) उसे पसंद नहीं करता। बौना होने की वजह से वो हमेशा इसी कुंठा में रहता है कि उसका बाप उससे ज्यादा लावारिस रघु को प्यार करता है। फिल्म में रवि किशन भी हैं, जो पुलिस ऑफिसर के रोल में हैं और रघु को अन्ना और उसके बेटे के खिलाफ गवाही देने के लिए मनाते रहते हैं।
इसी बीच रघु की ज़िंदगी में ज़ोया (तारा सुतारिया) की एंट्री होती है, लेकिन कुछ ऐसा हो जाता है कि रघु को अपनी प्रेमिका को खुद मारना पड़ता है। आखिर वो ऐसा क्यों करता है? इसके बाद रघु के साथ क्या होता है? रघु ऐसा क्यों कहता है कि वो बदला नहीं, बल्कि इंतकाम लेगा? इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए आपको आपको सिनेमाघर जाना होगा।
डायरेक्शन
'सत्यमेव जयते' जैसी फिल्म का डायरेक्शन कर चुके मिलाप झावेरी इस बार उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए। उसी पुरानी लव स्टोरी और विलेन को पर्दे पर दिखाया गया है, जो दशकों पहले दिखाया जाता था। मूवी देखकर ऐसा लगता है कि एक ही लोकेशन पर सारी शूटिंग की गई है, जो इसे बोरिंग बनाती है। हिंदू-मुस्लिम एकता दिखाने के चक्कर में कई सीन्स को जबरदस्ती डाला गया है। फिल्म काफी प्रीडेक्टेबल है। आपको पहले से पता है कि फिल्म में क्या होगा, लेकिन कैसे होगा, बस यही देखना है। कई सारे इमोशनल सीन्स होने के बावजूद निर्देशन में कमी की वजह से आप खुद को कैरेक्टर्स से जोड़ नहीं पाएंगे। सिद्धार्थ मल्होत्रा और रितेश देशमुख जैसे उम्दा कलाकार ज्यादा निखर कर नहीं आ पाएं। इंटरवेल होने पर तो एक बार को ऐसा लगेगा कि मूवी खत्म हो गई है, लेकिन सेकंड हाफ भी देखना पड़ेगा।
एक्टिंग
एक्टिंग की बात करें तो रितेश देशमुख ने पहली बार किसी फिल्म में बौने का किरदार निभाया और उन्होंने पूरा न्याय भी किया है। जब-जब वो पर्दे पर नज़र आएं, उनकी एक्टिंग ने ताली बजाने पर मजबूर किया। सिद्धार्थ मल्होत्रा औसत लगे। ये भी कह सकते हैं कि रितेश के आगे उनकी एक्टिंग फीकी पड़ गई। तारा सुतारिया ने ठीक काम किया है। रकुल प्रीत सिंह ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाईं।
डायलॉग्स
'मरजावां' डायलॉग्स से भरी हुई है। शुरु से लेकर अंत तक आपको सिर्फ डायलॉग्स ही मिलेंगे। रितेश के डायलॉग्स 'पता है... कमीनेपन की हाइट क्या है.. 3 फुट' और 'मैं राक्षस नहीं हूं, मैं तो अवतार हूं' दमदार हैं। ज्यादातर किरदारों ने शेर-ओ-शायरी में ज्यादा बातें की हैं। हालांकि, यही बात आपको निराश भी करती है, क्योंकि कई बार बहुत ज्यादा फिल्मी डायलॉग्स आपको इरिटेट भी करेंगे।
म्यूजिक
फिल्म के गाने काफी अच्छे हैं। तनिष्क बागची, मीट ब्रोस और पायल देव ने म्यूजिक दिया है। 'तुम ही आना' और 'थोड़ी जगह' काफी इमोशनल सॉन्ग है। 'किन्ना सोना', 'एक तो कम जिंदगानी' और 'हैय्या हो' गाने भी सुनने में अच्छे लगेंगे।
फिल्म की कमियां
फिल्म की सबसे बड़ी खामी है इसकी घिसी-पिटी कहानी, जिसे देखकर आप बोर हो जाएंगे। क्लाइमैक्स की उम्मीद तो बिल्कुल भी ना करें। फिल्म काफी प्रीडेक्टेबल है। कलाकारों को और ज्यादा अच्छे से पर्दे पर दिखाया जा सकता था। 'मरजावां' दर्शकों को जोड़ नहीं पाती है।
क्यों देखें फिल्म
अगर आप रितेश देशमुख, सिद्धार्थ मल्होत्रा, तारा सुतारिया और रकुल प्रीत सिंह के फैन हैं, तभी ये मूवी देख सकते हैं।
इंडिया टीवी इस फिल्म को दे रहा है 5 में से 2 स्टार।