- फिल्म रिव्यू: मणिकर्णिका
- स्टार रेटिंग: 2.5 / 5
- पर्दे पर: 25 जनवरी 2019
- डायरेक्टर: कंगना रनौत, कृष
- शैली: पीरियड-ड्रामा
Manikarnika Movie Review: ''खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी'' सुभद्रा कुमारी चौहान की रानी लक्ष्मी बाई पर लिखी ये कविता बचपन में हमने और आपने खूब पढ़ी और सुनी हैं, कंगना रनौत डेब्यू डायरेक्टर के तौर पर झांसी की रानी लक्ष्मी बाई पर आधारित फिल्म 'मणिकर्णिका' लेकर आई हैं। निर्देशक कृष के बीच में फिल्म छोड़ देने के बाद कंगना रनौत ने निर्देशन की कमान थामी और फिल्म को रीशूट किया। कंगना ने क्या एक निर्देशक के तौर पर इस फिल्म के साथ न्याय किया है, और क्या यह फिल्म रानी लक्ष्मी बाई के साथ न्याय करती है? आइए जानते हैं।
इस फिल्म की कहानी विजयेंद्र प्रसाद ने लिखी है, वो साउथ से हैं शायद इसलिए उनकी कहानी में उत्तर भारत के काशी, झांसी और ग्वालियर की जो झलक दिखती है उसमें वहां की खुश्बू नहीं आती है। इसमें कोई शक नहीं कि फिल्म को बहुत भव्य बनाया गया है, कंगना जब-जब भी स्क्रीन पर आती हैं रौनक आ जाती है, लेकिन कंगना की पतली आवाज और उनका दुबला-पतला शरीर और गोरा रंग देखकर आपका मन उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मी बाई मानने से इनकार कर देगा। हालांकि कुछ सीन उन्होंने लाजवाब तरीके से किए हैं जैसे उनके बेटे और पति के निधन वाले सीन हों या अंग्रेजों के सामने उनका सिर झुकाने से इनकार करने वाले सीन। इसमें कोई शक नहीं कि कंगना रनौत एक अच्छी एक्ट्रेस हैं, और अपने अभिनय से उन्होंने एक बार फिर इम्प्रेस किया है लेकिन डायरेक्टर के तौर पर वो मात खा गईं। फिल्म में फ्लो नहीं है, ऐसा लगता है हम कोई किताब पढ़ रहे हों और उसके बीच के पन्ने फट गए हों, कहानी बहुत बिखरी है कमजोर स्क्रिप्ट की वजह से यह फिल्म महान बनने से रह गई।
फिल्म में दो सस्पेंस सीन हैं वो बहुत बेहतरीन तरीके से फिल्माए गए हैं, जो आप फिल्म देखेंगे तो अपने आप समझ जाएंगे।
फिल्म में इस्तेमाल डिजाइनर जूलरी और कपड़ों से कहीं भी उस काल की झलक नहीं मिलती है जिस वक्त की यह फिल्म है। साथ ही रानी लक्ष्मी बाई जिस तरह गांव में जाकर डांस करती हैं उसे देखकर आपको हैरत होगी कि क्या यह फिल्म वाकई रानी लक्ष्मी बाई पर आधारित है?
बड़े कलाकारों के रोल
अतुल कुलकर्णी, जीशान आयूब, कुलभूषण खरबंदा जैसे कई बड़े चेहरों को फिल्म में इस्तेमाल किया गया है लेकिन इन कलाकारों के टैलेंट का ठीक तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया हैं। टीवी से फिल्मों में आईं अंकिता लोखंडे का किरदार निखर कर सामने आया है वो भी शायद इसलिए क्योंकि उनके ज्यादातर सीन कंगना के साथ थे।
फिल्म में एक्शन सीन अच्छे हैं, लक्ष्मी बाई के तलवारबाजी वाले कुछ सीन बहुत अच्छे हैं, खासकर बीमार पति के साथ एक सीन में लक्ष्मी बाई का तलवार बाजी करना आपको इमोशनल कर जाएगा।
प्रसून जोशी ने किया निराश
'मणिकर्णिका' काफी बिखरी हुई है, हिस्सों-हिस्सों में कहानी आती है, जिसमें इमोशन का गहरा अभाव है। किसी भी किरदार को ठीक तरीके से गढ़ा नहीं गया है। इस फिल्म के डायलॉग्स प्रसून जोशी ने लिखे हैं, लेकिन इस बार उन्होंने भी कुछ कमाल नहीं किया है। आपको हैरानी होगी कि 'रंग दे बसंती' जैसी फिल्मों के डायलॉग्स लिखने वाले प्रसून जोशी को क्या हो गया है।
महान बन सकती थी 'मणिकर्णिका'
इस बात से कोई इनकार नहीं करेगा कि कंगना रनौत एक बेहतरीन अभिनेत्री हैं, लेकिन डायरेक्शन में अभी उनको अपना सिक्का जमाने में समय लगेगा। 'मणिकर्णिका' के लिए संजय लीला भंसाली जैसे निर्देशक की जरूरत थी, शायद वो इस फिल्म को लेकर आते तो यह फिल्म भी महान फिल्मों की श्रेणी में शामिल हो सकती थी।
अगर आप कंगना के डाई-हार्ड फैन हैं और गणतंत्र दिवस के मौके पर रानी लक्ष्मी बाई को याद करना चाहते हैं तो यह फिल्म आप देख सकते हैं। इंडिया टीवी इस फिल्म को दे रहा है 5 में से 2.5 स्टार।
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