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लिपस्टिक अंडर माय बुर्का

फिल्म रिव्यू लिपस्टिक अंडर माय बुर्का : बुर्के में लिपस्टिक छिप सकती है, ख्वाहिशें नहीं IPSTICK UNDER MY BURKHA, IPSTICK UNDER MY BURKHA REVIEW, IPSTICK UNDER

Jyoti Jaiswal
Updated on: August 11, 2017 19:31 IST
lipstick under my burkha
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  • फिल्म रिव्यू: लिपस्टिक अंडर माय बुर्का
  • स्टार रेटिंग: 3.5 / 5
  • पर्दे पर: 21 जुलाई 2017
  • डायरेक्टर: अलंकृता श्रीवास्तव
  • शैली: ब्लैक कॉमेडी

‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ 4 महिलाओं की कहानी है, जो उम्र के अलग-अलग पड़ाव पर हैं। फिल्म की खास बात यह है कि यह फिल्म महिलाओं की है लेकिन इस फिल्म में महिलाओं को महानता की देवी बनाकर पेश नहीं किया गया है, कोई भी महिला परफेक्ट नहीं है। एक लड़की है जिसके घर में तमाम बंदिशें हैं, उसे बुर्के में घर से निकलना पड़ता है, लेकिन उसकी ख्वाहिशों को कोई नहीं रोक पाता, वो लिपस्टिक, सैंडल्स, कपड़े मॉल से चोरी करके लाती थी और घर से निकलते ही बुर्का बैग में रखती है और वो आजाद हो जाती है तमाम बंधनों से। एक लड़की है जो अपनी सगाई वाले दिन अपने बॉयफ्रेंड के साथ संबंध बनाती है, और बाद में दोनों लड़कों के बीच फंसकर रह जाती है। एकअधेड़ महिला है जो रोमांटिक नॉवेल पढ़कर अपने से आधे उम्र के लड़के से फोन पर अश्लील बातें करती है और एक महिला है जो पति से छिपकर नौकरी करती है।

मुझे लगता है ये अपनी तरह की एकलौती ऐसी फिल्म है जिसमें इतनी खूबसूरती से और इतने करीब से महिलाओं की जिंदगी दिखाई गई है। फिल्म की पटकथा लिखने और निर्देशन का जिम्मा अलंकृता श्रीवास्तव ने संभाला था और इसमें वो पूरी तरह से कामयाब भी हुई हैं। फिल्म बहुत धीमी रफ्तार से आगे बढ़ती है लेकिन कहीं भी बोर नहीं करती है। फिल्म की कहानी भोपाल की है, जहां फिल्म की चारों लीड कैरेक्टर रहती हैं।

रत्ना पाठक (बुआ जी उर्फ ऊषा)

फिल्म में रत्ना पाठक ने बुआ जी उर्फ ऊषा का किरदार निभाया है, एक ऐसी महिला जो जिसके मन में हजारों ख्वाहिशें दफन हैं। वो छिपकर सस्ते उपन्यास पढ़ती है, सत्संग के बहाने स्विमिंग सीखने जाती है, और उसे स्विमिंग कोच से क्रश हो जाता है, क्या होता है जब उसके अंदर की दबी चिंगारी को हवा मिलती है?

कोंकणा सेन (शिरीन)

कोंकणा सेन ने फिल्म में शिरीन नाम की एक महिला का किरदार निभाया है, वो शादी-शुदा है और 3 बच्चों की मां है। वो अपने पति से छिपकर जॉब करती है, ताकि घर अच्छे से चल सके, लेकिन उसका पति (सुशांत सिंह) उसे सिर्फ सेक्स ऑब्जेक्ट समझता है, उसके लिए उसकी बीवी सिर्फ एक हाड़-मांस का पुतला है जिससे वो जब मर्जी संबंध बना सके। पार्लर वाली शिरीन से पूछती है क्या आपके पति आपको कभी किस करते हैं, इस पर उसका लाजवाब होना उसके मन की सारी व्यथा व्यक्त कर देता है। क्या होता है जब शिरीन को पता चलता है कि उसके पति का कहीं और अफेयर चल रहा है?

अहाना (लीला)

अहाना ने लीला नाम की एक लड़की का किरदार निभाया है, जो पार्लर चलाती है, आत्मनिर्भर है और घर संभालने में मां की मदद करती है। उसे अरशद (विक्रांत मेस्सी) नाम के एक लड़के से प्यार है जो फोटोग्राफर है, लेकिन मामला हिंदू-मुस्लिम का होता है, तो उसकी शादी कहीं और फिक्स हो जाती है, वो इतनी हिम्मत रखती है कि ब्वॉयफ्रेंड से खुद दिल्ली भाग चलने के लिए कहती है, लेकिन ब्वॉयफ्रेंड साथ नहीं देता। क्या होता है जब उसका होने वाला पति उसका एमएमएस देख लेता है?

प्लाबिता बोरठाकुर (रिहाना)

20-21 साल की एक कॉलेज गोइंग गर्ल, जिसे घर में हजार बंदिशों के नीचे रखा जाता है, वो डांस तक करती है तो उसके मां-बाप को लगता है उनकी नाक कट गई। घर से जरूर वो बुर्के में निकलती लेकिन उसके अंदर की ख्वाहिशें हिलोरें ले रही होती हैं, वो जींस के हक में कॉलेज में नारेबाजी भी करती है और थाने पहुंच जाती है, क्या होता है जब उसके अब्बू उसे पुलिस थाने से छुड़ाने जाते हैं?

ये 4 महिलाएं आपको भीतर तक सोचने पर मजबूर कर देंगी। आज की लड़कियां इस फिल्म में जहां रिहाना और लीला से खुद का जुड़ाव महसूस कर पाएंगी वहीं पति के अत्याचारों के बीच दबी महिलाओं को शिरीन उन जैसी ही लगेगी, जो टैलेंटेड होने के बावजूद घर में कैद हैं। वहीं ऊषा यानी बुआ जी का कैरेक्टर आपको अधेड़ महिला के अलग पहलू से अवगत कराएगा।

इन सभी का जवाबों को जानने के लिए आपको सिनेमाघरों का रुख करना पड़ेगा।

अभिनय

कलाकारों के अभिनय की बात करें तो हर किसी ने कमाल का अभिनय किया है, चाहे वो रत्ना पाठक हों, कोंकणा सेन हों, प्लाबिता ठाकुर हों या फिर अहाना। हर किसी ने अपने कैरेक्टर को पर्दे पर जीवंत कर दिया है। सुशांत सिंह और विक्रांत मेस्सी को देखकर आप हैरान रह जाएंगे। सुशांत को देखकर उनसे नफरत होने लगती है और यही उनकी जीत है।

फिल्म में कई सेक्स सीन होने के बावजूद इस बात का ख्याल रखा गया है कि कहीं से भी ये फूहड़ और अश्लील ना लगे। फिल्म देखकर ही समझ में आ जाता है कि इस फिल्म पर इतने लंबे वक्त से बैन क्यों लगा था?

डायरेक्शन, लोकेशंस और सिनेमेटोग्राफी कमाल की है। फिल्म की एडिटिंग बढ़िया तरीके से की गई है।  बैकग्राउंड स्कोर भी अच्छा है। फिल्म के क्लाइमेक्स में दीवाली और पटाखों के एंबियंस का बेहतरीन इस्तेमाल देखने को मिला है।

कमियां

फिल्म इंटरवल के बाद बहुत जल्दी खत्म हो जाती है, लगता है निर्देशक ने जल्दी में फिल्म खत्म कर दी। क्लाइमेक्स और बेहतर किया जा सकता है। निर्देशक ने क्लाइमेक्स अधूरा छोड़ दिया है, उसे आप अपने हिसाब से पूरा कर सकते हैं।

फिल्म में एक और खामी जो मुझे नजर आई वो ये कि एक लड़की होने के बावजूद मुझे ये फिल्म बहुत भावुक नहीं कर पाई, सिर्फ कोंकणा के कैरेक्टर से ही मुझे सहानुभूति हुई।

फिल्म में सारे पुरुषों का एक जैसा होना अजीब लगता है।

फिल्म को एडल्ट सर्टिफिकेट मिला है, इसलिए सभी वर्ग के दर्शक ये फिल्म नहीं देख पाएंगे।

देखें या नहीं

आप महिला हों या पुरुष, ये फिल्म आपको एक बार जरूर देखनी चाहिए। बॉलीवुड में ऐसी फिल्में बहुत कम बनती हैं और इस सराहनीय प्रयास के लिए मैं अलंकृता को बधाई देना चाहती हूं।

स्टार रेटिंग

मेरी तरफ से इस फिल्म को 3.5 स्टार।

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